रॉबर्ट वाड्रा का बड़ा बयान: ‘देश को नफरत नहीं, भाईचारे की जरूरत’; प्रियंका गांधी को PM उम्मीदवार बनाने की मांग और प्रदूषण पर भी रखी बेबाक राय
नई दिल्ली: देश के जाने-माने उद्योगपति और कांग्रेस की दिग्गज नेता व सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा ने वर्तमान राष्ट्रीय परिदृश्य, बढ़ती राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और आम जनजीवन को प्रभावित करने वाले गंभीर संकटों पर खुलकर अपनी बात साझा की है। एक विस्तृत साक्षात्कार के दौरान वाड्रा ने समाज में बढ़ती दूरियों पर चिंता जताई और स्पष्ट किया कि आज का आम नागरिक सांप्रदायिक विवादों में नहीं, बल्कि अपने भविष्य को सुरक्षित करने वाले बुनियादी मुद्दों पर समाधान चाहता है। क्रिसमस के पावन अवसर पर देश को बधाई देते हुए उन्होंने एक ऐसी समावेशी प्रार्थना की, जो आज के समय में प्रासंगिक और विचारणीय है।
वाड्रा ने कहा कि उत्सव के इस माहौल में उन्होंने ईश्वर से यही प्रार्थना की है कि समूचे भारतवर्ष में भाईचारा बना रहे और समाज के हर तबके के बीच सौहार्द की भावना कायम हो। उनका मानना है कि किसी भी देश की प्रगति उसके नागरिकों के बीच आपसी प्रेम और विश्वास पर टिकी होती है। उन्होंने साझा किया कि वे अक्सर देश के विभिन्न हिस्सों का भ्रमण करते हैं और अलग-अलग धर्मों, जातियों और समुदायों के लोगों से मिलते हैं। इस अनुभव के आधार पर उन्होंने दावा किया कि हर इंसान की मौलिक प्रार्थना और उम्मीद एक जैसी ही होती है—कि उनकी मुश्किलें कम हों, उनके बच्चों को अच्छा भविष्य मिले और उनका जीवन बेहतर बने।
बच्चों के सपनों और बेरोजगारी की कड़वी सच्चाई
रॉबर्ट वाड्रा ने अपने साक्षात्कार में सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी संवेदनशीलता को भी रेखांकित किया। उन्होंने हाल ही में स्कूली बच्चों के साथ बिताए गए समय का जिक्र करते हुए बताया कि बच्चों के उत्साह और उनकी मेहनत को देखकर बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इन बच्चों ने उन्हें क्रिसमस कैरल के गीत सुनाए और अपने स्कूल व भविष्य के सपनों के बारे में विस्तार से बताया। वाड्रा ने कहा कि यह देखना सुखद है कि नई पीढ़ी आगे बढ़ने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही है, लेकिन इसके पीछे एक गहरा डर और एहसास भी छिपा है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि आज के बच्चों और युवाओं को इस बात का भली-भांति एहसास है कि देश में बेरोजगारी एक बड़ी और डरावनी चुनौती बन चुकी है। यही कारण है कि वे शिक्षा को अपना एकमात्र हथियार मान रहे हैं ताकि वे एक बेहतर भविष्य की उम्मीद कर सकें। वाड्रा ने कहा कि बेरोजगारी केवल एक आर्थिक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह करोड़ों परिवारों की मानसिक शांति और स्थिरता से जुड़ा विषय है। उन्होंने नीति-निर्माताओं का ध्यान इस ओर खींचते हुए कहा कि जब तक हम अपने युवाओं के लिए पर्याप्त अवसर पैदा नहीं करेंगे, तब तक विकास की बातें अधूरी रहेंगी।
प्रियंका गांधी को पीएम उम्मीदवार बनाने की मांग पर क्या बोले वाड्रा
राजनीतिक गलियारों में इन दिनों यह चर्चा जोरों पर है कि क्या प्रियंका गांधी वाड्रा को आगामी चुनावों में प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश किया जाना चाहिए। हाल ही में कांग्रेस के लोकसभा सांसद इमरान मसूद ने सार्वजनिक रूप से प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री पद का संभावित और उपयुक्त उम्मीदवार बताया था। इस बयान पर जब रॉबर्ट वाड्रा से उनकी प्रतिक्रिया पूछी गई, तो उन्होंने बहुत ही नपे-तुले लेकिन स्पष्ट शब्दों में अपनी बात रखी।
वाड्रा ने स्वीकार किया कि जनता के बीच प्रियंका गांधी की लोकप्रियता बहुत अधिक है। उन्होंने कहा कि यह सच है कि सब की मांग होती है और अक्सर लोग यह कहते हुए मिल जाते हैं कि प्रियंका को सक्रिय नेतृत्व संभालना चाहिए और उन्हें आगे आना चाहिए। हालांकि, उन्होंने इस मांग को सीधे तौर पर स्वीकार या अस्वीकार करने के बजाय इसे जनभावनाओं से जोड़ा। जब उनसे स्वयं के राजनीति में आने की संभावनाओं पर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि जनता की ओर से इस तरह की मांगें उनके लिए भी आती रहती हैं। लेकिन उन्होंने साफ किया कि फिलहाल उनका और उनके परिवार का सबसे बड़ा लक्ष्य उन असल मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है, जो वास्तव में देश को पीछे धकेल रहे हैं। उनके अनुसार, पद से अधिक महत्वपूर्ण वे समस्याएं हैं जिनका समाधान जनता चाहती है।
प्रदूषण का जानलेवा संकट और संसद की भूमिका
देश की राजधानी दिल्ली और पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर रॉबर्ट वाड्रा ने गहरी पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने इसे केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य आपातकाल करार दिया। वाड्रा, जो अपनी फिटनेस और खेलकूद के प्रति जुनून के लिए जाने जाते हैं, ने स्वीकार किया कि प्रदूषण ने उनकी जीवनशैली को भी बदल दिया है। उन्होंने कहा कि वे पहले नियमित रूप से दौड़ और अन्य बाहरी खेल गतिविधियों में सक्रिय रहते थे, लेकिन अब प्रदूषण के जहरीले स्तर के कारण उन्हें घर के बाहर निकलने से बचना पड़ता है।
उन्होंने आम जनता, विशेषकर युवाओं और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों से अपील की कि वे ऐसे प्रदूषित माहौल में बाहर दौड़ लगाने या साइकिल चलाने से बचें। वाड्रा ने चेतावनी दी कि खराब हवा में भारी व्यायाम करना फेफड़ों और समग्र स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक नुकसानदायक हो सकता है। उन्होंने राजनीतिक व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रदूषण जैसे जीवन-मरण से जुड़े मुद्दे पर संसद में व्यापक और अर्थपूर्ण चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि प्रियंका गांधी इस गंभीर विषय को संसद के पटल पर उठाना चाहती थीं और उन्होंने इसकी पूरी तैयारी भी कर ली थी, लेकिन सदन की कार्यवाही लगातार स्थगित होने के कारण वह जनता की इस आवाज को सही मंच पर नहीं रख पाईं।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समाधान की तलाश
प्रदूषण की समस्या का कोई ठोस समाधान न निकल पाने पर रॉबर्ट वाड्रा ने एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि यदि देश के भीतर हमारे मौजूदा संसाधन और तकनीकें इस संकट को दूर करने में विफल साबित हो रही हैं, तो हमें अंतरराष्ट्रीय सहयोग लेने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को चीन या अन्य उन देशों के अनुभवों से सीखना चाहिए जिन्होंने अपने प्रमुख शहरों में प्रदूषण के स्तर को कम करने में सफलता हासिल की है।
वाड्रा के अनुसार, प्रदूषण एक सीमाहीन समस्या है और इसके समाधान के लिए वैश्विक स्तर पर उपलब्ध सर्वोत्तम प्रथाओं और तकनीकों को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें यह देखना चाहिए कि दूसरे देशों ने किस प्रकार के नीतिगत बदलाव किए और किस तरह की तकनीक का उपयोग कर अपनी हवा को साफ किया। भारत को उन सफल मॉडलों से प्रेरणा लेकर अपने यहाँ लागू करने का रास्ता निकालना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों को जहरीली हवा में सांस न लेना पड़े।
आंतरिक मुद्दे बनाम बाहरी राजनीति
साक्षात्कार के अंतिम चरण में रॉबर्ट वाड्रा ने देश की प्राथमिकताओं को लेकर एक बहुत ही बेबाक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश का आम नागरिक हिंदू-मुस्लिम जैसे धार्मिक विवादों में कतई नहीं उलझना चाहता। जनता की असली चिंताएं बेरोजगारी, आसमान छूती महंगाई, जानलेवा प्रदूषण और महिलाओं की सुरक्षा जैसे वास्तविक मुद्दे हैं। उन्होंने आलोचना करते हुए कहा कि अक्सर देखा जाता है कि देश के आंतरिक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए अन्य विषयों को हवा दी जाती है।
वाड्रा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हमें सबसे पहले अपने देश के भीतर मौजूद इन मूलभूत समस्याओं का हल निकालना चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि बांग्लादेश या अन्य पड़ोसी देशों के मुद्दों पर चर्चा करने से पहले हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे अपने नागरिक सुरक्षित हों, उन्हें रोजगार मिले और वे स्वस्थ वातावरण में रह सकें। उनके अनुसार, जब तक हम अपने घर की समस्याओं को ठीक नहीं कर लेते, तब तक बाहरी दुनिया के मुद्दों पर हमारी ऊर्जा का व्यय होना व्यर्थ है।
अंत में, रॉबर्ट वाड्रा ने उम्मीद जताई कि आने वाले समय में देश के राजनेता और सरकारें आपसी खींचतान छोड़कर उन विषयों पर काम करेंगी जिनसे आम आदमी का जीवन सीधा प्रभावित होता है। उन्होंने एक बार फिर भाईचारे की मजबूती को ही भारत की असली प्रगति का आधार बताया और कहा कि एकता के बिना कोई भी राष्ट्र महान नहीं बन सकता।