• October 14, 2025

मौत के बाद भी जिंदा रिश्ते: इंडोनेशिया की टोराजा जनजाति की विचित्र परंपरा

सुलावेसी, 14 अक्टूबर 2025: दुनिया में जहां मौत को अंत माना जाता है, वहां इंडोनेशिया की टोराजा जनजाति में मृत्यु एक यात्रा का हिस्सा मात्र है। दक्षिण सुलावेसी के पहाड़ी इलाकों में बसे ये लोग शवों को घर में रखकर जीवित मानते हैं—खाना खिलाते, कपड़े बदलते, बातें करते। सालों बाद भी कब्रों से निकालकर नहलाते-धुलाते हैं। बच्चों के लिए तो पेड़ों में दफनाने का अनोखा रिवाज, जहां आत्मा प्रकृति से जुड़ जाती। आखिर क्यों ये परंपरा इतनी खास? आर्थिक मजबूरी या आध्यात्मिक विश्वास? इस विचित्र रिवाज की पूरी परतें आगे…

घर में शव का स्वागत: बीमार, न कि मृत

टोराजा जनजाति में मौत पर शोक नहीं, बल्कि उत्सव की तैयारी होती है। मृतक को ‘तो माकुला’ कहते हैं—बीमार व्यक्ति। शव को ताबूत में घर के कमरे में लिटाते, जैसे वो जिंदा हो। रोज खाना, पानी, सिगरेट रखते; कपड़े बदलते, साफ-सफाई करते। परिवार बातें करते, ‘कैसा लग रहा है?’ पूछते। वजह? अंतिम संस्कार (रंबू सोलो) बेहद महंगा—सैकड़ों भैंसों-सूअरों की बलि, मेहमानों को भोज, कई दिनों का आयोजन। लाखों रुपये खर्च, जो गरीब परिवार सालों जुटाते। तब तक शव फॉर्मेलिन से संरक्षित रखा जाता। विकिपीडिया के अनुसार, ये रिवाज पूर्वजों की आस्था (अलुक टोडोलो) से जुड़ा, जहां जीवित और मृत का बंधन टूटता नहीं। 1900s में डच मिशनरियों ने ईसाई बनाया, लेकिन परंपरा बची। पर्यटक अब इसे देखने आते, लेकिन स्थानीयों के लिए ये प्यार का इजहार।

दफन के बाद भी मुलाकात: मानेने रिवाज में शवों का ‘फैमिली रीयूनियन’

अंतिम संस्कार के बाद शव चट्टानों में कटे कब्रों (लोंडा गुफाएं) या टॉवरों में दफन होते। अमीरों के लिए तौ तौ—लकड़ी के पुतले बनवाते, जो कब्र पर रखे जाते। लेकिन कहानी यहीं न थमती। अगस्त में मानेने (शवों की देखभाल) रिवाज होता, जहां कब्रें खोदकर शव निकालते। नहलाते, बाल संवारते, नए कपड़े पहनाते, सिगरेट मुंह में रखते। फिर गांव घुमाते, नए सदस्यों से ‘मिलवाते’। गार्जियन की रिपोर्ट: ये हर 1-3 साल में, परिवार की सहमति से। बुजुर्गों के साथ बच्चों के शव भी—मृत्यु यात्रा का हिस्सा। रास्ता सीधा, मुड़ना वर्जित। एनवाईटाइम्स: ये आध्यात्मिक सफर का प्रतीक, जहां मृत आत्मा जीवितों की रक्षा करती। ईसाई प्रभाव से अब कम बलि, लेकिन उत्सव बरकरार। पर्यटन ने इसे जिंदा रखा, लेकिन युवा आधुनिकता से दूरी बना रहे।

बच्चों का पेड़ दफन: प्रकृति की गोद में अमर आत्मा

टोराजा का सबसे विचित्र रिवाज—दांत न निकले बच्चों का ‘पासिलिरान’ या बेबी ट्री बुरियल। नवजात या छोटे शिशु को न जलाते-दफनाते, बल्कि जीवित पेड़ के खोखले तने में रखते। शव को कपड़े लपेट, ताड़ के रेशों से सील। मान्यता: पेड़ का दूधिया सैप बच्चे को पोषित करेगा, आत्मा पेड़ बनकर परिवार के पास रहेगी। एंशेंट ओरिजिन्स: ये कम्बिरा गांवों में, 50 साल पहले आखिरी बार। सरकारी नियमों और ईसाई प्रभाव से बंद, लेकिन पुराने पेड़ आज भी दिखते। न्यूयॉर्क टाइम्स: रोटी फल वाले पेड़ में छेद, रात में टॉर्चलाइट से। ये प्रथा जीवन चक्र का प्रतीक—बच्चा प्रकृति में समा जाता। टोराजा में मौत शोक नहीं, सामाजिक उत्सव; परिवार की एकता। आधुनिक चुनौतियां हैं, लेकिन ये रिवाज सांस्कृतिक धरोहर बने। क्या ये हमें मौत के डर से रूबरू कराता?
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Rama Niwash Pandey

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