झारखंड हाई कोर्ट में हाजिर हुए माइंस विभाग के प्रभारी प्रधान सचिव
रांची, 24 जून। सारंडा के जंगल में डंप पड़े हुए लोग अयस्कों को हटाने से संबंधित मामले में झारखंड हाई कोर्ट में माइंस विभाग के प्रभारी प्रधान सचिव सोमवार को सशरीर उपस्थित हुए और कोर्ट के सवालों का जवाब दिया।
सचिव ने कोर्ट को बताया कि सारंडा जंगल में बंद पड़े 16 माइनिंग कंपनियों के लौह अयस्कों में से 11 माइनिंग कंपनियों का मामला विभिन्न अदालत में लंबित है। साथ ही पांच माइनिंग कंपनियों के लौह अयस्कों को हटाने की प्रक्रिया राज्य सरकार की ओर से चल रही है। इनमें कोई कानूनी बाधा नहीं है। इससे संबंधित फाइल विभाग के मंत्री के पास है। वहां से अनुमति मिलने पर पांच माइनिंग कंपनियों के लौह अयस्कों को हटाने के लिए चालान जारी किया जाएगा।
मामले में सरकार की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया गया, जिस पर कोर्ट ने याचिकाकर्ता सरयू राय को इसका प्रति उत्तर देने का निर्देश देते हुए मामले के अगली सुनवाई 31 जुलाई निर्धारित की है। राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता अशोक यादव ने पैरवी की।
पूर्व की सुनवाई में राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया था कि सारंडा के जंगल में डंप पड़े लौह अयस्कों को कैसे हटाया जाएगा, इसके लिए राज्य सरकार की ओर से स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) बनाया जा रहा है।एसओपी पर विभागीय मंत्री से अनुमति मिलने के बाद सारंडा के जंगल से लौह अयस्कों को हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
सरयू राय ने सारंडा के जंगलों में हो रही गैरकानूनी माइनिंग को बंद करवाने और पर्यावरण को बचाने के लिए झारखंड हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। कोर्ट को सरयू राय के अधिवक्ता ने बताया था कि सारंडा के जंगलों में कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सारी माइनिंग एक्टिविटी तो बंद हो गई लेकिन अत्यधिक मात्रा में माइनिंग की गई लौह-अयस्क को खुले में छोड़ दिया गया है। इससे पर्यावरण दूषित हो रहा है। सरकार इस मामले में टालमटोल कर रही है। पिछले डेढ़-दो साल से राज्य सरकार कोर्ट को गुमराह कर रही है।
इस पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताते हुए पूछा कि क्यों सरकार इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रही है? कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि सरकार अगली तिथि के पहले स्थिति स्पष्ट करें या तो लौह-अयस्क को बेचने की प्रक्रिया सरकार पूरी करे या फिर कोई ऐसी जगह (वन क्षेत्र के बाहर) चिन्हित करे, जहां इन लौह-अयस्क को डंप किया जा सके।