बलिया में सियासी बवाल: बीजेपी नेता की रिहाई के लिए प्रदर्शन, करणी सेना का समर्थन
उत्तर प्रदेश के बलिया में बीजेपी नेता मुन्ना बहादुर सिंह द्वारा बिजली विभाग के दलित अधीक्षण अभियंता लाल सिंह को जूते से पीटने की घटना ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। 23 अगस्त 2025 को हुई इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया। बुधवार, 27 अगस्त 2025 को बलिया कलेक्ट्रेट में उनकी रिहाई की मांग को लेकर सैकड़ों समर्थकों ने प्रदर्शन किया, जिसमें करणी सेना ने भी मोर्चा खोलकर समर्थन दिया। इस घटना ने न केवल स्थानीय राजनीति को गरमाया, बल्कि जातिगत और सामाजिक तनाव को भी बढ़ाया। मुन्ना के समर्थकों का दावा है कि यह मामला बिजली कटौती की शिकायत से शुरू हुआ, जबकि लाल सिंह ने मारपीट और जातिसूचक गालियों का आरोप लगाया। यह विवाद बलिया में सियासी और सामाजिक माहौल को और जटिल बना रहा है।
जूते से पिटाई का मामला
23 अगस्त 2025 को बलिया के सिविल लाइन स्थित बिजली विभाग कार्यालय में बीजेपी नेता मुन्ना बहादुर सिंह ने अधीक्षण अभियंता लाल सिंह पर जूते से हमला किया। वायरल वीडियो में दिखता है कि मुन्ना, 20-25 लोगों के साथ कार्यालय में घुसे और लाल सिंह को कुर्सी पर बैठाकर जूतों से पीटा। लाल सिंह ने आरोप लगाया कि मुन्ना ने उनके साथ जातिसूचक गालियां दीं और बिना कारण मारपीट की। मुन्ना का कहना है कि वे क्षेत्र में बिजली कटौती की शिकायत लेकर गए थे, लेकिन इंजीनियर ने उनके साथ बदतमीजी की। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की और मुन्ना के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट सहित कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया। इस घटना ने बलिया में सियासी तनाव बढ़ा दिया और बीजेपी की छवि पर सवाल उठाए। यह मामला स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है।
गिरफ्तारी और समर्थकों का प्रदर्शन
पुलिस ने घटना के अगले दिन, 24 अगस्त 2025 को मुन्ना बहादुर सिंह को गिरफ्तार कर लिया। रविवार को मेडिकल जांच के लिए जिला अस्पताल ले जाते समय मुन्ना ने पुलिस की गाड़ी में बैठने से इनकार कर दिया, जिसके बाद पुलिस को उन्हें जबरन ले जाना पड़ा। इस दौरान उनके समर्थकों ने अस्पताल के बाहर हंगामा किया और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की। 27 अगस्त को बलिया कलेक्ट्रेट में सैकड़ों समर्थकों ने मुन्ना की रिहाई की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि मुन्ना ने जनता की बिजली समस्या को उठाया, लेकिन उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया। पुलिस ने प्रदर्शन को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त बल तैनात किया। सीओ सिटी श्यामाकांत ने बताया कि मुन्ना को कोर्ट में पेश किया जाएगा और जांच निष्पक्ष होगी। इस प्रदर्शन ने स्थानीय प्रशासन के लिए चुनौती खड़ी कर दी, क्योंकि मामला अब सियासी रंग ले चुका है।
करणी सेना का समर्थन और जातिगत तनाव
मुन्ना बहादुर सिंह की रिहाई की मांग में करणी सेना का शामिल होना इस विवाद को नया आयाम दे रहा है। करणी सेना ने 27 अगस्त को बलिया कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन में हिस्सा लिया और मुन्ना के समर्थन में नारेबाजी की। संगठन के नेताओं ने दावा किया कि यह मामला राजपूत समुदाय के सम्मान से जुड़ा है और मुन्ना को गलत तरीके से निशाना बनाया गया। इस बीच, लाल सिंह के दलित समुदाय से होने के कारण मामला जातिगत तनाव का रूप ले रहा है। दलित संगठनों ने लाल सिंह के समर्थन में आवाज उठाई और एससी/एसटी एक्ट के तहत सख्त कार्रवाई की मांग की। इस घटना ने बलिया में सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है, जिससे प्रशासन के सामने कानून-व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती है। करणी सेना के मोर्चे ने बीजेपी पर भी दबाव बढ़ाया है, क्योंकि पार्टी को इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी।
सियासी और सामाजिक प्रभाव
इस घटना ने बीजेपी के लिए सियासी संकट खड़ा कर दिया है। मुन्ना बहादुर सिंह के बीजेपी नेता होने के कारण पार्टी की छवि पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी दलों, खासकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, ने इस घटना को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है। सपा ने इसे बीजेपी की गुंडागर्दी का उदाहरण बताया, जबकि बसपा ने दलित उत्पीड़न का मुद्दा उठाया। बीजेपी ने अभी तक इस मामले पर आधिकारिक बयान नहीं दिया, लेकिन पार्टी के स्थानीय नेताओं ने इसे व्यक्तिगत विवाद करार दिया। इस घटना का असर बलिया की स्थानीय राजनीति पर पड़ सकता है, क्योंकि यह क्षेत्र पहले भी सियासी और सामाजिक तनाव का गवाह रहा है। यदि यह मामला और तूल पकड़ता है, तो यह 2027 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। प्रशासन और बीजेपी दोनों के लिए इस संकट को संभालना अब एक बड़ी चुनौती है।
