• December 25, 2025

मनरेगा का नाम बदलने और फंडिंग कटौती पर छिड़ा सियासी संग्राम: डीके शिवकुमार ने केंद्र पर साधा निशाना

बेंगलुरु: ग्रामीण भारत की जीवनरेखा मानी जाने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) एक बार फिर देश की राजनीति के केंद्र में आ गई है। केंद्र सरकार द्वारा इस योजना का नाम बदलकर ‘विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन’ यानी ‘वीबी-जी राम जी’ (VB-G RAM JI) करने के प्रस्ताव और इसके फंडिंग नियमों में बदलाव को लेकर विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया है। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने इस कदम को महात्मा गांधी के नाम पर बनी इस ऐतिहासिक योजना का ‘गला घोंटने’ की साजिश करार दिया है। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह न केवल इस योजना का नाम बदलकर इतिहास को मिटाने की कोशिश कर रही है, बल्कि आर्थिक कटौती के जरिए इसे पूरी तरह खत्म करने का आधार तैयार कर रही है।

वीबी-जी राम जी: नाम बदलने के पीछे का कानूनी बदलाव

हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद ‘विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन’ यानी वीबी-जी राम जी कानून अस्तित्व में आया है। इसके साथ ही मनरेगा योजना का नाम अब इसी नए शीर्षक के तहत जाना जाएगा। इस बदलाव ने देशभर में एक बड़ी बहस छेड़ दी है। विपक्षी दलों का तर्क है कि ‘महात्मा गांधी’ का नाम हटाना उनकी विचारधारा और ग्रामीण सशक्तिकरण के उनके दृष्टिकोण का अपमान है। डीके शिवकुमार ने कहा कि यह केवल नाम का बदलाव नहीं है, बल्कि उस संवैधानिक अधिकार पर हमला है जिसे कांग्रेस सरकार ने देश के सबसे गरीब नागरिकों को काम की गारंटी देने के लिए प्रदान किया था।

फंडिंग अनुपात में बदलाव: 90:10 से 60:40 का नया गणित

डीके शिवकुमार ने केंद्र सरकार के एक और नीतिगत बदलाव पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि पहले इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले भवनों और अन्य स्थायी निर्माण कार्यों में केंद्र सरकार 90 प्रतिशत पैसा खर्च करती थी, जबकि राज्य सरकारों को केवल 10 प्रतिशत का योगदान देना होता था। लेकिन अब केंद्र सरकार ने इस अनुपात को बदलकर 60:40 कर दिया है। शिवकुमार के अनुसार, इस बदलाव का सीधा बोझ राज्य सरकारों के खजाने पर पड़ेगा, जिससे योजना के क्रियान्वयन में भारी कमी आएगी। उन्होंने इसे योजना को आर्थिक रूप से पंगु बनाने की रणनीति बताया है और कहा कि इससे धीरे-धीरे यह योजना दम तोड़ देगी।

“कनकपुरा में मैंने किया था पहला प्रयोग”

पत्रकारों से बातचीत के दौरान भावुक होते हुए डीके शिवकुमार ने याद दिलाया कि पूरे देश में उनका विधानसभा क्षेत्र कनकपुरा वह स्थान था, जहां उन्होंने नरेगा (NREGA) योजना का सबसे पहले प्रयोग किया था। उन्होंने कहा कि उनके क्षेत्र में इस योजना के सफल संचालन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई मजबूती मिली थी। उन्होंने भाजपा पर पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि उनकी सफलता से घबराकर भाजपा ने वहां बेवजह जांच बैठाई और अनियमितताओं के झूठे आरोप लगाकर उन्हें परेशान करने की कोशिश की। उन्होंने दावा किया कि भाजपा हमेशा से इस जनहितैषी योजना के खिलाफ रही है।

पंचायती राज सिस्टम के लिए एक “सदमा”

कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री ने कहा कि इस नए कानून और नाम बदलने की प्रक्रिया से पूरा पंचायती राज सिस्टम और इसके अधिकारी ‘सदमे’ में हैं। उन्होंने बताया कि मनरेगा की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि इसका पैसा सीधे उन मजदूरों के खातों में जाता था जिन्होंने काम के लिए पंजीकरण कराया था, जिससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हो गई थी। शिवकुमार ने कहा, “हमें कभी उम्मीद नहीं थी कि भाजपा कांग्रेस सरकार द्वारा दिए गए इस संवैधानिक अधिकार को छूने की हिम्मत करेगी।” उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि यह कदम भाजपा के अंत की शुरुआत साबित होगा, क्योंकि ग्रामीण जनता अपने रोजगार के अधिकार के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करेगी।

प्रियंक खड़गे की दिल्ली में अहम बैठक

इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए कर्नाटक के ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री प्रियंक खड़गे ने दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है। इस बैठक में विपक्षी दलों के नेताओं और विशेषज्ञों के साथ मिलकर केंद्र सरकार के इस नए कानून का कानूनी और राजनीतिक मुकाबला करने की रणनीति तैयार की जाएगी। डीके शिवकुमार ने स्पष्ट किया कि उनकी सरकार ग्राम पंचायतों को मजबूत करने और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगी और केंद्र के इस ‘मनमाने’ फैसले के आगे नहीं झुकेगी।

नरेगा से मनरेगा और अब वीबी-जी राम जी: एक सफर

यह जानना महत्वपूर्ण है कि यह योजना समय-समय पर बदलावों से गुजरी है। इसकी शुरुआत यूपीए सरकार के दौरान 2005 में ‘नरेगा’ (NREGA) के नाम से हुई थी। अगस्त 2005 में संसद ने इस कानून को पारित किया और 2 फरवरी 2006 को इसे देशभर में लागू किया गया। इसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम 100 दिन की शारीरिक श्रम वाली नौकरी की गारंटी देना था। 2009 में राष्ट्रपिता के सम्मान में इसका नाम बदलकर ‘मनरेगा’ किया गया। अब, 16 साल बाद केंद्र सरकार ने इसे ‘विकसित भारत’ के विजन से जोड़ते हुए ‘वीबी-जी राम जी’ नाम दिया है, जिसे लेकर देश की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है।

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