RSS के शताब्दी वर्ष पर पीएम मोदी का संदेश: अनादि राष्ट्र चेतना का अवतार
नई दिल्ली, 2 अक्टूबर 2025: विजयादशमी के पावन पर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष पूरे होने की खुशी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयंसेवकों को बधाई दी है। अपने लेख में उन्होंने संघ को ‘अनादि राष्ट्र चेतना का पुण्य अवतार’ बताया, जो राष्ट्र निर्माण की प्राचीन परंपरा का पुनरुद्धार है। क्या यह संगठन मात्र 100 साल पुराना है या हजारों वर्षों की विरासत का प्रतीक? पीएम ने संघ की शाखाओं, स्वयंसेवकों की भूमिका और भविष्य की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज की सामाजिक समरसता तक—यह यात्रा कई सवाल छोड़ती है। संघ का अगला शतक कैसा होगा? पूरी कहानी और पीएम के विचारों की गहराई आगे खुलती है।
स्थापना का महात्म्य: विजयादशमी पर राष्ट्र चेतना का जागरण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लेख में लिखा कि ठीक 100 वर्ष पूर्व, विजयादशमी के दिन RSS की स्थापना हुई, जो हजारों वर्षों से चली आ रही राष्ट्र चेतना की परंपरा का पुनर्स्थापन था। उन्होंने कहा, “इस युग में RSS उसी अनादि राष्ट्र-चेतना का पुण्य अवतार है।” संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को याद करते हुए पीएम ने श्रद्धांजलि अर्पित की। यह स्थापना संयोग नहीं थी, बल्कि उस समय की चुनौतियों का सामना करने का संकल्प था। पीएम ने जोर दिया कि संघ ने हमेशा ‘देश प्रथम’ का भाव रखा। स्वतंत्रता संग्राम में डॉ. हेडगेवार समेत कई स्वयंसेवकों ने भाग लिया, जो संगठन की राष्ट्रभक्ति को दर्शाता है।
राष्ट्र निर्माण का पथ: व्यक्ति-निर्माण से शाखाओं तक
पीएम मोदी ने संघ के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गठन के बाद से RSS राष्ट्र-निर्माण का विराट लक्ष्य लेकर चला। व्यक्ति-निर्माण को राष्ट्र-निर्माण का आधार बनाया, और शाखाओं को इसकी सरल कार्यपद्धति चुनी। “शाखा का मैदान ‘अहम् से वयं’ की यात्रा का प्रारंभ बिंदु है, जो व्यक्ति-निर्माण की यज्ञ-वेदी है।” इन स्तंभों पर खड़े होकर संघ ने लाखों स्वयंसेवकों को गढ़ा, जो विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रसेवा कर रहे हैं। आजादी के बाद भी संघ राष्ट्र साधना में लगा रहा, भले ही साजिशें और दमन के प्रयास हुए। स्वयंसेवकों ने कभी कटुता नहीं पाली, क्योंकि “समाज हमसे अलग नहीं, हमसे ही बना है।” यह दृष्टिकोण संघ की मजबूती का राज है।
सामाजिक समरसता का संकल्प: भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष
लेख में पीएम ने RSS की 100 वर्षीय यात्रा में समाज के विभिन्न वर्गों में आत्मबोध और स्वाभिमान जगाने की भूमिका पर जोर दिया। संघ ने कठिन पहुंच वाले क्षेत्रों, आदिवासी इलाकों में काम किया और परंपराओं को संरक्षित किया। डॉ. हेडगेवार से लेकर वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत तक, हर विभूति ने छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी। गुरुजी एमएस गोलवलकर ने ‘न हिंदू पतितो भवेत्’ की भावना फैलाई। बाला साहब देवरस ने कहा, “छुआछूत पाप नहीं, तो दुनिया में कोई पाप नहीं!” रज्जू भैया, केएस सुदर्शन और मोहन भागवत ने समरसता को मजबूत किया। भागवत ने ‘एक कुआं, एक मंदिर, एक श्मशान’ का लक्ष्य रखा। यह संघ की समावेशी सोच को रेखांकित करता है।
भविष्य की चुनौतियां: पंच परिवर्तन का रोडमैप
पीएम ने कहा कि 100 वर्ष पूर्व की चुनौतियां अलग थीं, आज विकसित भारत के दौर में नई बाधाएं हैं। RSS ने इनसे निपटने के लिए ‘पंच परिवर्तन’ का ठोस रोडमैप बनाया: स्व-बोध, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, नागरिक शिष्टाचार और पर्यावरण संरक्षण। स्व-बोध गुलामी की मानसिकता से मुक्ति और स्वदेशी को मजबूत बनाता है। सामाजिक समरसता वंचितों को वरीयता देकर न्याय स्थापित करती है, खासकर घुसपैठ से डेमोग्राफी परिवर्तन की चुनौती के बीच। कुटुंब प्रबोधन परिवार मूल्यों को सशक्त बनाता है, जबकि नागरिक शिष्टाचार कर्तव्यबोध जगाता है। पर्यावरण रक्षा आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित करती है। पीएम ने कहा, “ये संकल्प हर स्वयंसेवक के लिए प्रेरणा हैं। 2047 के विकसित भारत में संघ का योगदान देश को ऊर्जा देगा।” यह रोडमैप संघ की अगली शताब्दी की दिशा तय करता है।
