• October 26, 2025

बनने लगा प्लान 2024 डिंपल यादव हार गई थीं गढ़ कन्नौज अब अखिलेश खुद बचाने को उतरेंगे

 बनने लगा प्लान 2024 डिंपल यादव हार गई थीं गढ़ कन्नौज अब अखिलेश खुद बचाने को उतरेंगे

लोकसभा चुनाव में अब बमुश्किल एक साल ही वक्त बचा है। इस बीच चर्चाएं तेज हैं कि समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव कन्नौज से ही चुनाव लड़ सकते हैं। इसी सीट से उन्होंने अपने चुनावी करियर की शुरुआत की थी। अब एक बार फिर से वह कन्नौज से ही मैदान में उतर सकते हैं, जहां से उनकी पत्नी डिंपल यादव भी सांसद रही हैं। हालांकि 2019 में भाजपा के सुब्रत पाठक यहां से जीते थे। अखिलेश यादव ने 2019 में आजमगढ़ सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और अब वह वहां वापसी नहीं करना चाहते क्योंकि बीते साल उपचुनाव में उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को हार सामना करना पड़ा था। दरअसल अखिलेश यादव ने मैनपुरी की करहल सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था और आजमगढ़ की सीट खाली हो गई थी। इसके चलते चुनाव हुआ तो फिर धर्मेंद यादव सपा की जीती हुई सीट पर भी हार गए थे। इससे समाजवादी पार्टी को उस सीट पर झटका लगा, जिसे वह अपना गढ़ मान रही थी। इस बीच सपा के कन्नौज के स्थानीय नेताओं का कहना है कि अखिलेश यादव यहीं से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। एक नेता ने कहा कि अखिलेश यादव तो पहले ही साफ कर चुके हैं कि वह कन्नौज से चुनाव में उतरेंगे। इसके लिए बूथ कमेटियां तैयार की जाने लगी हैं।बीते साल पूर्व मुख्यमंत्री जब कन्नौज गए थे तो उन्होंने यहां से लोकसभा चुनाव लड़ने के सवाल पर कहा था कि हम खाली बैठ के क्या करेंगे। हमारा काम ही है चुनाव लड़ना। हम यहां से पहला चुनाव लड़े थे तो वहां से फिर लड़ेंगे। उनकी इस टिप्पणी से अनुमान लगने लगा था कि वह 2024 में कन्नौज सीट से ही मैदान में आ सकते हैं। यादव परिवार का इस सीट पर 1999 से 2018 तक कब्जा रहा था। लेकिन 2019 में डिंपल यादव को यहां भाजपा कैंडिडेट सुब्रत पाठक के हाथों हार झेलनी पड़ी थी। मुलायम सिंह यादव इस सीट से 1999 में जीते थे। इसके बाद उन्होंने इस सीट को खाली कर दिया था और संभल से लड़े थे। फिर अखिलेश ने 2000 में यहां पहला चुनाव लड़ा था।उन्होंने बसपा के दिग्गज नेता अकबर अहमद डंपी को हराकर लोकसभा का रास्ता तय किया था। इसके बाद 2004 और 2009 में भी अखिलेश ने इस सीट को जीता था। फिर वह 2012 में सीएम बने तो 2014 में डिंपल यादव मैदान में उतरीं। वह जीत गईं और सांसद बनीं, लेकिन 2019 में वह इस जीत को दोहरा नहीं सकीं। इस तरह दो दशक के बाद सपा का यह गढ़ उससे छिन गया। अब अखिलेश यादव को उम्मीद है कि कन्नौज से लड़कर वह गढ़ को बचाने में सफल हो जाएंगे।

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