• December 25, 2025

नेशनल हेराल्ड मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोनिया और राहुल गांधी को जारी किया नोटिस, ईडी की याचिका पर मांगा जवाब

दिल्ली : नेशनल हेराल्ड से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सोमवार को एक नया और महत्वपूर्ण मोड़ आया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से जवाब तलब किया है, जिसमें जांच एजेंसी ने ट्रायल कोर्ट (निचली अदालत) के एक हालिया आदेश को चुनौती दी है। ट्रायल कोर्ट ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग की शिकायत का संज्ञान लेने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट के इस हस्तक्षेप के बाद अब यह बहुचर्चित मामला एक बार फिर कानूनी और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है।

हाईकोर्ट में ईडी की दलील और सोनिया-राहुल को नोटिस

दिल्ली हाईकोर्ट में सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। ईडी ने ट्रायल कोर्ट के 16 दिसंबर के उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें निचली अदालत ने एजेंसी की मनी लॉन्ड्रिंग शिकायत को संज्ञान लेने योग्य नहीं माना था। हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर उनका पक्ष जानने की इच्छा जताई है। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 12 मार्च 2026 की तारीख मुकर्रर की है। तब तक के लिए ईडी की याचिका पर प्रतिवादियों को अपना विस्तृत जवाब दाखिल करना होगा।

ट्रायल कोर्ट का वह आदेश जिसे ईडी ने दी चुनौती

मामले की जड़ 16 दिसंबर को ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाया गया वह फैसला है, जिसमें विशेष जज विशाल गोगने ने ईडी की शिकायत पर संज्ञान लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि यह कानूनन ‘अस्वीकार्य’ है। निचली अदालत का तर्क था कि चूंकि यह शिकायत किसी प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (FIR) पर आधारित नहीं है, इसलिए इसके आधार पर कानूनी कार्यवाही आगे नहीं बढ़ाई जा सकती। इसी कानूनी तकनीकी बिंदु को आधार बनाकर ईडी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। ईडी का तर्क है कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में जांच और संज्ञान लेने की प्रक्रिया सामान्य आपराधिक मामलों से भिन्न होती है और इसमें एजेंसी की शिकायत ही पर्याप्त आधार होनी चाहिए।

निचली अदालत और एफआईआर की प्रति का विवाद

इस मामले में एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब विशेष जज विशाल गोगने ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसमें गांधी परिवार को एफआईआर की प्रति देने का निर्देश दिया गया था। जज ने दिल्ली पुलिस की याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि गांधी परिवार पुलिस की एफआईआर पाने का हकदार नहीं है, हालांकि उन्हें यह सूचना दी जा सकती है कि उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली पुलिस ने 3 अक्टूबर को सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य के खिलाफ इस मामले में औपचारिक एफआईआर दर्ज की थी। इसी एफआईआर और उसके बाद ईडी की जांच को लेकर कानूनी खींचतान जारी है।

क्या है नेशनल हेराल्ड का पूरा मामला?

नेशनल हेराल्ड मामले का इतिहास दशकों पुराना है, लेकिन इसकी वर्तमान कानूनी लड़ाई एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) और यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड (YI) के बीच हुए सौदे के इर्द-गिर्द घूमती है। ईडी का आरोप है कि कांग्रेस नेताओं ने एक सोची-समझी साजिश के तहत यंग इंडियन नामक कंपनी बनाई, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी की 76 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इस कंपनी ने एजेएल के ऊपर कांग्रेस पार्टी के 90 करोड़ रुपये के बकाया कर्ज को महज 50 लाख रुपये में अधिग्रहित कर लिया। इसके बदले में यंग इंडियन ने एजेएल की लगभग 2000 करोड़ रुपये की रियल एस्टेट संपत्तियों पर नियंत्रण हासिल कर लिया। एजेएल वही कंपनी है जो जवाहरलाल नेहरू द्वारा शुरू किए गए ‘नेशनल हेराल्ड’ अखबार का प्रकाशन करती थी।

मनी लॉन्ड्रिंग और 988 करोड़ की संपत्तियों का आरोप

प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी चार्जशीट में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, दिवंगत नेता मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीस, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे के साथ-साथ यंग इंडियन कंपनी को मुख्य आरोपी बनाया है। ईडी का दावा है कि आरोपियों ने धोखाधड़ी और जालसाजी के जरिए एजेएल की संपत्तियों पर कब्जा किया। एजेंसी ने इस पूरे कथित घोटाले से प्राप्त आय (Proceeds of Crime) को 988 करोड़ रुपये से अधिक आंका है। ईडी का आरोप है कि कर्ज के निपटारे के नाम पर जिस तरह से संपत्तियों का हस्तांतरण हुआ, वह मनी लॉन्ड्रिंग कानून (PMLA) के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।

राजनीतिक माहौल और भविष्य की राह

नेशनल हेराल्ड मामले में हाईकोर्ट के इस ताजा रुख ने एक बार फिर कांग्रेस और केंद्र सरकार के बीच राजनीतिक टकराव को तेज कर दिया है। जहां कांग्रेस इसे राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से की गई कार्रवाई बताती रही है, वहीं ईडी का कहना है कि वह भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं के ठोस सबूतों के आधार पर काम कर रही है। अब सबकी निगाहें 12 मार्च 2026 पर टिकी हैं, जब गांधी परिवार हाईकोर्ट में अपना जवाब दाखिल करेगा। यदि हाईकोर्ट ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा देता है या उसे पलट देता है, तो ईडी को इस मामले में गांधी परिवार के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ाने का रास्ता मिल जाएगा।

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