सस्ती शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पर मोहन भागवत का बड़ा बयान: “अस्पतालों को धन से अधिक सेवा और समय की आवश्यकता”
महाराष्ट्र : महाराष्ट्रके चंद्रपुर में एक महत्वपूर्ण सामाजिक और स्वास्थ्य सरोकार के कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने देश की बुनियादी व्यवस्थाओं को लेकर एक नई दृष्टि पेश की है। पंडित दीनदयाल कैंसर अस्पताल के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए भागवत ने स्पष्ट किया कि वर्तमान समय में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का लोकतंत्रीकरण और विकेंद्रीकरण अनिवार्य हो गया है। उन्होंने समाज को चेताया कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां केवल शारीरिक कष्ट नहीं देतीं, बल्कि पूरे परिवार की आर्थिक और मानसिक नींव हिला देती हैं। भागवत का यह संबोधन केवल एक उद्घाटन भाषण नहीं था, बल्कि समाज के प्रति सेवा के दृष्टिकोण में बदलाव का एक आह्वान था।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का विकेंद्रीकरण अनिवार्य
मोहन भागवत ने अपने संबोधन की शुरुआत इस बात पर जोर देते हुए की कि हर नागरिक को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा मिलना उसका बुनियादी अधिकार है। उन्होंने कहा कि इन दो क्षेत्रों को केवल बड़े शहरों या चुनिंदा केंद्रों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। “विकेंद्रीकरण” शब्द का प्रयोग करते हुए उन्होंने संकेत दिया कि स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षण संस्थान दूर-दराज के गांवों और कस्बों तक पहुंचने चाहिए ताकि अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को इलाज के लिए महानगरों की ओर न भागना पड़े। भागवत के अनुसार, जब तक ये सेवाएं सुलभ और सस्ती नहीं होंगी, तब तक समाज का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है।
कैंसर: एक बीमारी जो पूरे परिवार को तोड़ देती है
कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के प्रभाव पर चर्चा करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि यह रोग केवल मरीज के शरीर को प्रभावित नहीं करता, बल्कि उसके पूरे परिवार पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। उन्होंने इसे एक “पारिवारिक संकट” करार दिया। कैंसर के इलाज की लंबी प्रक्रिया, भारी खर्च और अनिश्चितता परिवार के सदस्यों को भावनात्मक और आर्थिक रूप से थका देती है। भागवत ने कहा कि ऐसी स्थिति में समाज का कर्तव्य केवल अस्पताल बनाना नहीं, बल्कि पीड़ित परिवारों को संबल देना भी है। उन्होंने समाज के समृद्ध वर्ग और आम नागरिकों से आग्रह किया कि वे आगे आएं और कैंसर रोगियों के परिवारों के लिए एक सहायता तंत्र (Support System) विकसित करें।
आधुनिक जीवनशैली और बीमारियों का बढ़ता जाल
बीमारियों के कारणों पर प्रकाश डालते हुए मोहन भागवत ने कहा कि कैंसर के कारण आज पूरी तरह से निश्चित नहीं हैं, लेकिन हमारी आधुनिक जीवनशैली इसमें बड़ी भूमिका निभा रही है। उन्होंने तनाव (Stress), बढ़ते प्रदूषण और भोजन में मिलावट को आधुनिक समय की सबसे बड़ी चिंता बताया। उन्होंने कहा कि आज हम जो कुछ भी खा रहे हैं या जिस वातावरण में रह रहे हैं, वह हमें बीमारियों की ओर धकेल रहा है। भागवत ने सुझाव दिया कि शरीर को केवल व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं, बल्कि समाज की सेवा के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने सात्विक जीवन और मानसिक शांति को स्वास्थ्य की पहली सीढ़ी बताया।
सेवा के लिए धन नहीं, समय और समर्पण की आवश्यकता
इस कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण संदेश सेवा की प्रकृति को लेकर था। मोहन भागवत ने दो टूक शब्दों में कहा कि समाज और जरूरतमंदों की सेवा के लिए केवल पैसा देना पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा, “हमें पैसे की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी जरूरतमंदों की सेवा के लिए समय की है।” उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अपने व्यस्त जीवन से कुछ समय निकालकर मरीजों के बीच जाएं, उनसे बात करें और उन्हें भावनात्मक शक्ति प्रदान करें। भागवत का मानना है कि कैंसर जैसे रोगियों को दवा से अधिक दुआ और अपनेपन की जरूरत होती है। पैसे से दवा खरीदी जा सकती है, लेकिन जीने की इच्छा केवल मानवीय संवेदना से ही पैदा की जा सकती है।
मानवता की सेवा ही ईश्वर की सबसे बड़ी पूजा
धर्म और अध्यात्म को सेवा से जोड़ते हुए सरसंघचालक ने कहा कि ईश्वर ने हमें यह शरीर मानवता की सेवा के लिए दिया है। उन्होंने पंडित दीनदयाल कैंसर अस्पताल के प्रबंधन और वहां काम करने वाले डॉक्टरों से अपेक्षा की कि यह संस्थान केवल एक ईंट-पत्थर की इमारत बनकर न रह जाए, बल्कि यह सेवा का एक जीवंत केंद्र बने। उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अस्पताल की सुविधाएं हर जरूरतमंद तक प्रभावी ढंग से पहुंचें। उन्होंने आह्वान किया कि व्यक्ति को अपने जीवन का कुछ हिस्सा ‘स्व’ से ऊपर उठकर ‘परहित’ यानी दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित करना चाहिए।
निष्कर्ष: समाज की नई जिम्मेदारी
चंद्रपुर के इस मंच से मोहन भागवत ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्र निर्माण का रास्ता स्वस्थ और शिक्षित समाज से होकर गुजरता है। उनका यह बयान कि स्वास्थ्य सेवाओं का विकेंद्रीकरण होना चाहिए, सरकार और निजी क्षेत्र दोनों के लिए एक नीतिगत संकेत है। साथ ही, उन्होंने आम आदमी को उसकी सामाजिक जिम्मेदारी याद दिलाई है कि अस्पताल खोलना संस्थाओं का काम हो सकता है, लेकिन उन अस्पतालों में करुणा और सेवा का भाव भरना समाज का काम है। कैंसर जैसी चुनौतियों से लड़ने के लिए आज भारत को आधुनिक मशीनों के साथ-साथ उन संवेदनशील हाथों की भी जरूरत है जो मरीज का हाथ थामकर कह सकें कि “तुम अकेले नहीं हो।”