महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा धमाका: बरसों की कड़वाहट खत्म, बीएमसी चुनाव के लिए एक हुए उद्धव और राज ठाकरे
मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में वह ऐतिहासिक पल आ गया है जिसका इंतजार करोड़ों मराठी मानुष और शिवसैनिक पिछले दो दशकों से कर रहे थे। राज्य के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक परिवार ‘ठाकरे परिवार’ ने एक बड़ा फैसला लेकर प्रदेश की सियासी बिसात को पूरी तरह बदल दिया है। आगामी बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) और अन्य स्थानीय निकाय चुनावों के लिए उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने हाथ मिला लिया है। इस गठबंधन की आधिकारिक घोषणा से पहले दोनों भाइयों ने अपने परिवारों के साथ दादर स्थित शिवाजी पार्क पहुंचकर शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के स्मृति स्थल पर माथा टेका और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
शिवाजी पार्क में भावुक मिलन और गठबंधन की नींव
मंगलवार की सुबह मुंबई के शिवाजी पार्क में एक अलग ही नजारा देखने को मिला। सालों तक एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे न केवल एक साथ नजर आए, बल्कि उनके चेहरों पर एक नई एकजुटता का भाव भी दिखा। दोनों नेताओं ने सपरिवार बालासाहेब ठाकरे के स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की। राजनीति के जानकारों का मानना है कि यह केवल एक चुनावी गठबंधन नहीं है, बल्कि एक भावनात्मक मेल-मिलाप भी है। बालासाहेब के स्मारक पर एकजुट होकर दोनों भाइयों ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि ‘मराठी अस्मिता’ और ‘हिंदुत्व’ के मुद्दे पर अब ठाकरे परिवार बंटा हुआ नहीं रहेगा।

इस मौके पर शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने इस मिलन को महाराष्ट्र के लिए सुखद बताया। उन्होंने कहा कि यह पल महाराष्ट्र और विशेष रूप से मराठी जनता के लिए गौरव का क्षण है। राउत ने याद दिलाया कि बालासाहेब ठाकरे ने इसी धरती पर भूमिपुत्रों के अधिकारों के लिए शिवसेना की स्थापना की थी और आज उनके दोनों वारिसों का साथ आना उस सपने को मजबूती देगा।
20 साल का सूखा खत्म, भाजपा के खिलाफ ‘ठाकरे कवच’
ठाकरे बंधुओं के अलग होने के बाद से ही महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा शून्य पैदा हो गया था, जिसका फायदा समय-समय पर अन्य दलों को मिलता रहा। संजय राउत ने इस पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि पिछले 20 वर्षों से दोनों भाई साथ नहीं थे, जिसका खामियाजा महाराष्ट्र को भुगतना पड़ा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह गठबंधन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सबक सिखाने के लिए हुआ है। राउत का आरोप है कि वर्तमान में मुंबई और महाराष्ट्र के संसाधनों की जो ‘लूट’ चल रही है, उसे रोकने के लिए ठाकरे परिवार का एकजुट होना अनिवार्य था।
रणनीति के अनुसार, शिवसेना (यूबीटी) और मनसे केवल मुंबई ही नहीं, बल्कि ठाणे, पुणे और नासिक सहित महाराष्ट्र की कुल 10 प्रमुख नगर निगमों में मिलकर चुनाव लड़ेंगे। यह गठबंधन सीधे तौर पर भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी वाले ‘महायुति’ गठबंधन को चुनौती देगा। स्थानीय निकाय चुनावों में जहां महायुति ने पिछले दिनों बढ़त बनाई थी, वहीं ठाकरे बंधुओं की इस ‘पॉवर पैक्ट’ ने अब सत्ताधारी खेमे की चिंता बढ़ा दी है।
कार्यकर्ताओं में उत्साह की लहर और ‘ऐतिहासिक दिन’ का उद्घोष
गठबंधन की खबर फैलते ही दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। मनसे नेता यशवंत किल्लेदार ने इस मिलन पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि कार्यकर्ता लंबे समय से इस दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दोनों भाइयों का एक साथ आना महाराष्ट्र के भविष्य के लिए शुभ संकेत है। वहीं, शिवसेना (यूबीटी) के विधायक सचिन अहीर ने इसे महाराष्ट्र की राजनीति का ‘ऐतिहासिक दिन’ करार दिया। अहीर के अनुसार, राज्य में वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता के बीच यह गठबंधन लोगों के लिए आशा की एक नई किरण है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भाजपा की विभाजनकारी राजनीति को मात देने के लिए सभी विरोधियों का एकजुट होना समय की मांग है।
महाविकास अघाड़ी में हलचल और कांग्रेस के सवाल
ठाकरे भाइयों के इस गठबंधन ने न केवल विरोधियों बल्कि सहयोगियों के बीच भी नई चर्चा छेड़ दी है। कांग्रेस नेता अतुल लोंढे ने इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कुछ गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने चर्चाओं का हवाला देते हुए कहा कि यदि उद्धव और राज एक हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ अजित पवार और शरद पवार के बीच भी गठबंधन की खबरें आ रही हैं। लोंढे ने तंज कसते हुए पूछा कि क्या इसका अर्थ यह निकाला जाए कि मौजूदा ‘महायुति’ गठबंधन के अंदर बड़ी फूट पड़ चुकी है? कांग्रेस की यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि स्थानीय निकाय चुनावों से पहले राज्य के गठबंधन समीकरण बेहद जटिल और दिलचस्प मोड पर पहुंच गए हैं।
बीएमसी चुनाव की बदली हुई तस्वीर
मुंबई नगर निगम (बीएमसी) पर दशकों तक शिवसेना का कब्जा रहा है, लेकिन पार्टी में फूट के बाद भाजपा और शिंदे गुट ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। ऐसे में राज ठाकरे का उद्धव के साथ आना ‘मराठी वोट बैंक’ को बिखरने से रोकने की एक बड़ी कोशिश मानी जा रही है। राज ठाकरे की जनसभाओं का प्रभाव और उद्धव ठाकरे का संगठन अगर एक साथ काम करते हैं, तो बीएमसी की सत्ता पर दोबारा काबिज होना महायुति के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
दोपहर में होने वाली औपचारिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों नेता साझा न्यूनतम कार्यक्रम और सीटों के बंटवारे पर विस्तार से बात कर सकते हैं। फिलहाल, मुंबई की सड़कों पर ‘एक ठाकरे, एक महाराष्ट्र’ के नारे गूंजने लगे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि शिंदे, फडणवीस और अजित पवार की तिकड़ी इस नए ‘ठाकरे चक्रव्यूह’ का मुकाबला कैसे करती है। महाराष्ट्र की राजनीति अब एक नए अध्याय की ओर बढ़ चुकी है, जहाँ परिवारवाद और क्षेत्रीय अस्मिता के मुद्दे एक बार फिर केंद्र में आ गए हैं।