• December 25, 2025

‘कैश फॉर क्वेरी’ मामले में महुआ मोइत्रा को बड़ी राहत, दिल्ली हाईकोर्ट ने सीबीआई चार्जशीट की मंजूरी देने वाला लोकपाल का आदेश किया रद्द

नई दिल्ली: तृणमूल कांग्रेस (TMC) की वरिष्ठ नेता और मुखर सांसद महुआ मोइत्रा के लिए कानूनी मोर्चे पर एक बड़ी जीत की खबर आई है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ (Cash for Query) के मामले में महुआ मोइत्रा के खिलाफ आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल करने की लोकपाल की मंजूरी को रद्द कर दिया है। अदालत के इस फैसले के बाद मोइत्रा ने राहत की सांस ली है, क्योंकि इस आदेश से सीबीआई की जांच प्रक्रिया के अगले चरण पर फिलहाल रोक लग गई है।

दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला और लोकपाल का आदेश

महुआ मोइत्रा ने दिल्ली उच्च न्यायालय में लोकपाल के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को उनके खिलाफ औपचारिक आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति प्रदान की गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने महुआ के तर्कों को गंभीरता से सुना। इससे पहले 21 नवंबर को अदालत ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था।

अदालत ने अपने हालिया फैसले में लोकपाल के उस आदेश को प्रक्रियात्मक खामियों के आधार पर रद्द कर दिया। महुआ मोइत्रा की ओर से दलील दी गई थी कि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत जो प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए थी, लोकपाल ने उसका पालन करने में स्पष्ट रूप से चूक की है। अदालत ने माना कि वैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन किसी भी जांच की वैधता को प्रभावित करता है।

क्या है ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ का पूरा विवाद?

यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ था जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को एक पत्र लिखकर महुआ मोइत्रा पर गंभीर आरोप लगाए थे। दुबे का दावा था कि महुआ मोइत्रा ने कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के व्यावसायिक हितों को साधने के लिए संसद में सवाल पूछे और इसके बदले में उनसे महंगे उपहार और नकद राशि स्वीकार की।

इस शिकायत का आधार महुआ मोइत्रा के पूर्व मित्र और अधिवक्ता जय अनंत देहादराई द्वारा उपलब्ध कराए गए कथित सबूत थे। देहादराई ने दावा किया था कि उन्होंने इस विषय पर विस्तृत शोध किया है, जिसके आधार पर यह पाया गया कि महुआ ने संसद में जो कुल 61 प्रश्न पूछे थे, उनमें से लगभग 50 प्रश्न सीधे तौर पर हीरानंदानी और उनकी कंपनी के हितों की रक्षा करने या उनके प्रतिस्पर्धियों को निशाना बनाने के लिए थे।

महुआ मोइत्रा के तर्क और अब तक की कार्यवाही

महुआ मोइत्रा शुरू से ही इन आरोपों को निराधार और राजनीतिक द्वेष से प्रेरित बताती रही हैं। उन्होंने तर्क दिया था कि लोकपाल द्वारा अपनाई गई जांच की प्रक्रिया कानूनन त्रुटिपूर्ण थी और उन्हें अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दिया गया। इसी मामले में महुआ मोइत्रा को पहले ही लोकसभा की सदस्यता से निष्कासित किया जा चुका है, जिसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की है।

सीबीआई ने इस मामले में लोकपाल के निर्देश पर प्रारंभिक जांच शुरू की थी और छापेमारी भी की थी। हालांकि, हाईकोर्ट के ताजा फैसले ने सीबीआई को आरोप पत्र दाखिल करने से रोक दिया है, जो महुआ के लिए एक बड़ी प्रक्रियात्मक जीत मानी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला न केवल महुआ के व्यक्तिगत करियर के लिए अहम है, बल्कि यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत लोकपाल की शक्तियों और प्रक्रियाओं की व्याख्या को भी स्पष्ट करता है।

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