जापान का ऐतिहासिक मोड़: साने ताकाइची बनीं LDP की नई नेता, पहली महिला PM की दहलीज पर
टोकियो, 4 अक्टूबर 2025: जापान की राजनीति में एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) ने साने ताकाइची को अपना नया अध्यक्ष चुना है, जो देश को पहली महिला प्रधानमंत्री देने की ओर बढ़ने का संकेत देता है। 64 वर्षीय ताकाइची ने रनऑफ वोट में शिंजिरो कोइजुमी को हराया, लेकिन यह जीत सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पार्टी के दक्षिणपंथी धड़े की वापसी की कहानी है। 1955 से लगभग बिना रुके सत्ता में काबिज LDP हालिया चुनावी हार से जूझ रही है, और ताकाइची को अब जनता का भरोसा जीतना है। बूढ़ी होती आबादी, आर्थिक मंदी और बढ़ते आप्रवासन जैसे मुद्दों के बीच उनका रुख क्या होगा? संसद में 15 अक्टूबर को होने वाले वोट से पहले कई सवाल खड़े हैं—क्या यह बदलाव जापान को नई दिशा देगा, या चुनौतियां और बढ़ाएगा?
ताकाइची की जीत और कोइजुमी का संघर्ष
जापान की सत्ताधारी LDP में शनिवार को हुए नेतृत्व चुनाव ने सबको चौंका दिया। पूर्व आर्थिक सुरक्षा मंत्री साने ताकाइची ने पहले दौर में बहुमत न मिलने के बाद रनऑफ में कृषि मंत्री शिंजिरो कोइजुमी को 185-156 वोटों से हरा दिया। पहले राउंड में ताकाइची को 149 विधायकों और 36 प्रांतीय चैप्टर्स से समर्थन मिला, जबकि कोइजुमी को 145 विधायकों का। 44 वर्षीय कोइजुमी, पूर्व पीएम जुनिचिरो कोइजुमी के बेटे, अगर जीतते तो एक सदी में सबसे युवा पीएम बनते। लेकिन ताकाइची की रणनीति ने दक्षिणपंथी वोटों को एकजुट कर लिया। यह चुनाव सिर्फ आंतरिक नहीं था—यह LDP के भविष्य की जंग थी, जहां पार्टी हाल के घोटालों और चुनावी नुकसान से उबरने को बेताब है। केवल 295 विधायकों और 10 लाख सदस्यों ने वोट डाला, जो जापानी जनता का महज 1% प्रतिनिधित्व करता है। ताकाइची की जीत ने पार्टी के कट्टरपंथी धड़े को मजबूत किया, लेकिन विपक्षी दलों के साथ गठबंधन की जरूरत बनी हुई है। क्या यह युवा बनाम अनुभव की लड़ाई थी, या विचारधारा की? ताकाइची अब शिगेरु इशिबा की जगह लेने को तैयार हैं, जो एक साल में इस्तीफा देकर चले गए।
आप्रवासन पर सख्त रुख
LDP 1955 से जापान की सत्ता की धुरी रही है, लेकिन हालिया चुनावों में फंडिंग घोटाले और जीवनयापन संकट ने इसे दोनों सदनों में अल्पमत में धकेल दिया। ताकाइची को अब विपक्षी सहयोग से सरकार चलानी होगी, खासकर सेंट्रिस्ट कोमेइतो के साथ। उनकी जीत पार्टी के दक्षिणपंथी पंख की वापसी का संकेत है, जो शिंजो आबे की नीतियों से प्रेरित है। अभियान में ताकाइची ने आप्रवासन पर फोकस किया—विदेशियों को संपत्ति खरीदने पर पाबंदी और अवैध प्रवास पर सख्ती की वकालत की। उन्होंने कहा, “जापान को उन नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए जो अलग संस्कृतियों वाले लोगों को आने की अनुमति देती हैं।” कोइजुमी ने भी अवैध रोजगार और सुरक्षा चिंताओं का जिक्र किया। उभरती पार्टी सांसेइतो के “चुपचाप आक्रमण” जैसे नारों से प्रभावित वोटरों को लौटाने की कोशिश थी। जापान में विदेशी मूल के लोग सिर्फ 3% हैं, फिर भी पर्यटकों और मजदूरों पर असंतोष बढ़ रहा है। ताकाइची ने आबे की तरह मौद्रिक ढील और वित्तीय खर्च का समर्थन किया, लेकिन चीन पर मध्यम रुख अपनाया। यासुकुनी मंदिर की नियमित दौरों वाली ताकाइची का यह बदलाव डिप्लोमेसी का हिस्सा लगता है।
ताकाइची की चुनौतियां और जापान का भविष्य
साने ताकाइची, 64 वर्षीय दक्षिणपंथी नेता, मार्गरेट थैचर को अपना रोल मॉडल मानती हैं। पूर्व आर्थिक सुरक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा पर फोकस किया। अगर 15 अक्टूबर को संसद उन्हें चुन लेती है, तो जापान को पहली महिला पीएम मिलेगी—एक ऐसा देश जहां जेंडर इक्वालिटी में रैंकिंग खराब है। लेकिन चुनौतियां पहाड़ जैसी हैं: बूढ़ी आबादी, आर्थिक मंदी, पूर्वी एशिया में भू-राजनीतिक तनाव (चीन, रूस, उत्तर कोरिया), और ट्रंप के अमेरिका से आर्थिक रिश्ते। हाल के चुनावों में LDP की हार ने इसे विपक्ष पर निर्भर कर दिया। ताकाइची को भ्रष्टाचार पर विश्वास बहाल करना होगा, जो घोटाले का शिकार बना। विशेषज्ञों का कहना है कि उनका कट्टर रुख पड़ोसियों से टकराव बढ़ा सकता है, लेकिन घरेलू स्तर पर “अपना देश पहले” वाली वैश्विक लहर से फायदा हो सकता है। पार्टी सदस्यों ने उन्हें चुना, जो जनभावना को दर्शाता है। जापान अब दक्षिणपंथी शिफ्ट की ओर बढ़ रहा है, जहां एंटी-एस्टैब्लिशमेंट ग्रुप्स मजबूत हो रहे हैं।
