• December 25, 2025

भारत-न्यूजीलैंड ऐतिहासिक व्यापार समझौता: द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों के एक नए युग का सूत्रपात

भारत और न्यूजीलैंड के बीच कूटनीतिक और आर्थिक रिश्तों ने सोमवार को एक ऐतिहासिक मील का पत्थर पार कर लिया। दोनों राष्ट्रों ने बहुप्रतीक्षित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वार्ताओं को सफलतापूर्वक अंतिम रूप देने की आधिकारिक घोषणा की है। इस रणनीतिक समझौते का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं, सेवाओं और निवेश के प्रवाह को सुगम बनाकर द्विपक्षीय व्यापार को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन ने इस उपलब्धि को दोनों देशों की प्रगाढ़ मित्रता का परिणाम बताया और विश्वास व्यक्त किया कि यह समझौता विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था, भारत के 1.4 अरब उपभोक्ताओं तक न्यूजीलैंड के व्यवसायों की पहुंच को क्रांतिकारी तरीके से बदल देगा।

प्रधानमंत्री लक्सन और पीएम मोदी के बीच सफल वार्ता

मुक्त व्यापार समझौते की औपचारिकताओं को अंतिम रूप देने के तुरंत बाद न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बातचीत की। इस उच्च स्तरीय संवाद के दौरान लक्सन ने इस बात पर जोर दिया कि यह समझौता केवल व्यापारिक आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दो लोकतांत्रिक देशों के बीच बढ़ते विश्वास और साझा हितों का प्रतिबिंब है। प्रधानमंत्री लक्सन ने रेखांकित किया कि भारत के साथ व्यापारिक बाधाओं को दूर करना न्यूजीलैंड की विदेश व्यापार नीति की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस समझौते का स्वागत करते हुए इसे भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और वैश्विक व्यापारिक भागीदारी के विस्तार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

टैरिफ कटौती: न्यूजीलैंड के 95% निर्यात को मिलेगा सीधा लाभ

इस समझौते की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता निर्यात शुल्कों में की गई भारी कटौती है। प्रधानमंत्री लक्सन के अनुसार, एफटीए के प्रावधानों के तहत भारत को होने वाले न्यूजीलैंड के लगभग 95 प्रतिशत निर्यात पर टैरिफ (आयात शुल्क) या तो काफी हद तक घटा दिए गए हैं या उन्हें पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। यह निर्णय न्यूजीलैंड के डेयरी, कृषि और कच्चे माल के निर्यातकों के लिए भारतीय बाजार के द्वार खोल देगा। अनुमान है कि इस नीतिगत बदलाव के परिणामस्वरूप अगले दो दशकों में भारत को न्यूजीलैंड का वार्षिक निर्यात वर्तमान के 1.1 अरब डॉलर से बढ़कर 1.3 अरब डॉलर प्रति वर्ष तक पहुंच सकता है। यह शुल्क कटौती न्यूजीलैंड के उन उत्पादों को भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाएगी जो अब तक उच्च आयात शुल्क के कारण सीमित पहुंच रखते थे।

एक दशक लंबा इंतजार और वार्ता की सफल वापसी

भारत और न्यूजीलैंड के बीच व्यापारिक वार्ता का सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। दोनों देशों के बीच एफटीए को लेकर आधिकारिक बातचीत वर्ष 2010 में शुरू हुई थी। हालांकि, 2015 तक नौ दौर की विस्तृत चर्चा के बावजूद कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर सहमति न बन पाने के कारण यह प्रक्रिया रुक गई थी। लगभग नौ वर्षों के अंतराल के बाद, इस वर्ष मई में वार्ताओं को फिर से जीवित किया गया। 5 से 9 मई के बीच आयोजित पहले दौर की बैठक ने एक नई गति प्रदान की और आश्चर्यजनक रूप से कुछ ही महीनों के भीतर दोनों पक्ष एक व्यापक समझौते पर सहमत हो गए। यह त्वरित प्रगति दोनों सरकारों की राजनीतिक इच्छाशक्ति और व्यापारिक लचीलेपन को दर्शाती है।

वर्तमान व्यापारिक परिदृश्य: संतुलन और संभावनाएं

वित्त वर्ष 2025 के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत और न्यूजीलैंड के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 1.3 अरब डॉलर के स्तर पर है। इसमें भारत का पलड़ा थोड़ा भारी रहा है, जहां भारत ने 711.1 मिलियन डॉलर का निर्यात किया, जबकि न्यूजीलैंड से आयात 587.1 मिलियन डॉलर रहा। व्यापारिक शुल्कों के मामले में न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था पहले से ही काफी खुली हुई है, जिसका औसत आयात शुल्क मात्र 2.3 प्रतिशत है और उसकी 58.3 प्रतिशत टैरिफ लाइनें पहले से ही शुल्क-मुक्त हैं। इसके विपरीत, भारत का औसत आयात शुल्क 17.8 प्रतिशत के आसपास रहा है। नया समझौता इस अंतर को पाटने और व्यापार को अधिक संतुलित व सुगम बनाने की दिशा में काम करेगा।

भारत का निर्यात: ईंधन, कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स की ताकत

न्यूजीलैंड के बाजार में भारत की उपस्थिति मुख्य रूप से तीन स्तंभों पर टिकी है—पेट्रोलियम उत्पाद, वस्त्र और दवाएं। वित्त वर्ष 2025 में विमानन टरबाइन ईंधन (ATF) 110.8 मिलियन डॉलर के साथ भारत के निर्यात चार्ट में शीर्ष पर रहा। इसके बाद रेडिमेड कपड़े और घरेलू वस्त्रों का स्थान रहा, जिसका मूल्य 95.8 मिलियन डॉलर था। फार्मास्यूटिकल्स यानी दवाओं के क्षेत्र में भारत ने 57.5 मिलियन डॉलर का कारोबार किया। इनके अलावा, भारत मशीनरी, ऑटोमोबाइल पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक्स, लोहा-इस्पात और प्रीमियम कृषि उत्पाद जैसे बासमती चावल, झींगा और सोने के आभूषणों का भी बड़े पैमाने पर निर्यात करता है। एफटीए के बाद इन क्षेत्रों में भारतीय निर्यातकों को न्यूजीलैंड के बाजार में अधिक हिस्सेदारी मिलने की उम्मीद है।

न्यूजीलैंड का निर्यात: कच्चा माल और कृषि इनपुट का योगदान

न्यूजीलैंड से भारत को होने वाला निर्यात मुख्य रूप से औद्योगिक कच्चे माल और उच्च गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादों पर आधारित है। न्यूजीलैंड भारत की विनिर्माण इकाइयों के लिए लकड़ी और लकड़ी के उत्पादों, लकड़ी के गूदे, स्टील और एल्युमिनियम स्क्रैप के साथ-साथ कोकिंग कोयले का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। इसके अलावा, टर्बोजेट विमान, ऊन और दूध एल्ब्यूमिन जैसे विशेष डेयरी उत्पाद भी सूची में शामिल हैं। उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में न्यूजीलैंड के सेब और कीवी फल भारतीय बाजारों में पहले से ही लोकप्रिय हैं, जिन्हें अब कम टैरिफ का लाभ मिलेगा। यह समझौता भारतीय उद्योगों को सस्ता कच्चा माल उपलब्ध कराने में भी सहायक होगा।

सेवा क्षेत्र: शिक्षा और आईटी व्यापार के मजबूत स्तंभ

वस्तुओं के व्यापार के साथ-साथ सेवाओं का आदान-प्रदान भी भारत-न्यूजीलैंड संबंधों का एक अहम हिस्सा है। वित्त वर्ष 2024 में भारत ने न्यूजीलैंड को 214.1 मिलियन डॉलर की सेवाओं का निर्यात किया, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी (IT), टेलीकॉम सपोर्ट, स्वास्थ्य सेवाएं और वित्तीय सेवाएं प्रमुख रहीं। दूसरी ओर, न्यूजीलैंड ने भारत को 456.5 मिलियन डॉलर की सेवाएं निर्यात कीं। न्यूजीलैंड के सेवा निर्यात में ‘शिक्षा क्षेत्र’ का निर्विवाद दबदबा है, जो मुख्य रूप से वहां पढ़ने वाले हजारों भारतीय छात्रों द्वारा संचालित होता है। इसके अलावा पर्यटन, फिनटेक समाधान और विशेष विमानन प्रशिक्षण भी ऐसे क्षेत्र हैं जहां न्यूजीलैंड भारत को अपनी विशेषज्ञता प्रदान कर रहा है।

निष्कर्ष: भविष्य का रोडमैप

भारत-न्यूजीलैंड एफटीए केवल एक व्यापारिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण खिलाड़ियों के बीच एक रणनीतिक आर्थिक साझेदारी का रोडमैप है। जहां न्यूजीलैंड को भारत के विशाल मध्यम वर्ग और उभरते बाजार का लाभ मिलेगा, वहीं भारत को न्यूजीलैंड की उन्नत तकनीक, कृषि विशेषज्ञता और विश्वसनीय कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित होगी। यह समझौता आने वाले वर्षों में न केवल व्यापारिक आंकड़ों को बढ़ाएगा, बल्कि दोनों देशों के बीच निवेश, रोजगार सृजन और लोगों से लोगों के संपर्क (People-to-People ties) को भी एक नई दिशा प्रदान करेगा।

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