• December 25, 2025

भारत-बांग्लादेश संबंधों में ऐतिहासिक गिरावट: हिंसा, कूटनीतिक गतिरोध और अनिश्चित भविष्य

नई दिल्ली/ढाका: दक्षिण एशिया के दो पड़ोसी देश, भारत और बांग्लादेश, इस समय अपने द्विपक्षीय संबंधों के सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में आए भूचाल ने न केवल वहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था को हिला कर रख दिया है, बल्कि दशकों पुराने मैत्रीपूर्ण संबंधों की नींव को भी कमजोर कर दिया है। शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से शुरू हुआ यह सिलसिला अब कूटनीतिक युद्ध और वीजा सेवाओं के निलंबन तक पहुंच गया है। वर्तमान में स्थिति यह है कि दोनों देशों के बीच संवाद के रास्ते लगभग बंद होते जा रहे हैं और सीमा के दोनों ओर अविश्वास और आक्रोश की गहरी खाई पैदा हो गई है।

कूटनीतिक संकट और वीजा सेवाओं का निलंबन

भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव का सबसे बड़ा संकेत तब मिला जब दोनों देशों ने एक-दूसरे के नागरिकों के लिए वीजा सेवाओं को सीमित या निलंबित कर दिया। हालिया घटनाक्रम में, बांग्लादेश सरकार ने भारत में अपनी सभी वीजा सेवाएं अनिश्चित काल के लिए बंद करने का निर्णय लिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम ढाका द्वारा नई दिल्ली के प्रति एक कड़ा कूटनीतिक संदेश देने का प्रयास है।

दरअसल, इस संकट की शुरुआत तब हुई जब भारत ने बांग्लादेश के चटगांव स्थित अपने मिशन की सेवाओं को सुरक्षा कारणों से निलंबित कर दिया था। बांग्लादेश में भारतीय राजनयिकों और मिशनों के बाहर कट्टरपंथियों द्वारा किए जा रहे हिंसक प्रदर्शनों और सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए भारत ने यह कड़ा कदम उठाया था। हालांकि, बांग्लादेश द्वारा भारत में वीजा सेवाएं बंद करने के फैसले को ‘प्रतिशोध’ की कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि भारत में बांग्लादेशी मिशनों के बाहर सुरक्षा की वैसी कोई गंभीर स्थिति नहीं है जैसी बांग्लादेश में भारतीय मिशनों के साथ है। इस कूटनीतिक गतिरोध का सीधा असर उन हजारों लोगों पर पड़ेगा जो इलाज, व्यापार और शिक्षा के लिए सीमाओं के पार आते-जाते हैं।

उस्मान हादी की हत्या और हिंसा का नया दौर

दोनों देशों के बीच हालिया उबाल का मुख्य कारण कट्टरपंथी नेता उस्मान हादी की हत्या है। उस्मान हादी, जो अपनी भारत-विरोधी बयानबाजी और शेख हसीना सरकार के कट्टर विरोध के लिए जाना जाता था, की हाल ही में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्या ने बांग्लादेश में बारूद के ढेर पर चिंगारी का काम किया। हादी के समर्थकों और कट्टरपंथी संगठनों ने बिना किसी ठोस प्रमाण के इस हत्या का आरोप भारत पर मढ़ दिया।

कट्टरपंथियों का दावा है कि हादी के हत्यारे वारदात को अंजाम देने के बाद भारतीय सीमा में प्रवेश कर गए हैं और वहां सुरक्षित छिपे हुए हैं। यद्यपि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने स्पष्ट किया है कि संदिग्धों के भारत भागने के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं और भारत सरकार ने भी इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है, लेकिन जमीन पर स्थिति बेकाबू बनी हुई है। उस्मान हादी की मौत को कट्टरपंथियों ने भारत के खिलाफ नफरत फैलाने के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है, जिससे वहां के भारतीय मिशनों और अल्पसंख्यकों के लिए खतरा बढ़ गया है।

अल्पसंख्यकों पर जुल्म और वैश्विक चिंता

बांग्लादेश में जारी इस अस्थिरता की सबसे भारी कीमत वहां के अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर हिंदुओं को चुकानी पड़ रही है। उस्मान हादी की मौत के बाद भड़की हिंसा में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है। मयमनसिंह इलाके में हाल ही में हुई एक घटना ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। वहां ईशनिंदा के महज एक आरोप में एक हिंदू युवक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या (मॉब लिंचिंग) कर दी गई और अमानवीयता की सारी हदें पार करते हुए उसके शव को आग के हवाले कर दिया गया।

इस जघन्य हत्याकांड का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बांग्लादेश की आलोचना हो रही है। संयुक्त राष्ट्र ने भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के उल्लंघन पर गहरी चिंता व्यक्त की है। भारत सरकार ने इस मुद्दे पर अपना कड़ा रुख अपनाते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है। हालांकि, ढाका की सड़कों पर अब अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए प्रदर्शन करने को मजबूर हैं।

मोहम्मद यूनुस सरकार पर चौतरफा दबाव

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस इस समय कड़े दबाव में हैं। एक तरफ उन्हें बिगड़ती अर्थव्यवस्था और कानून-व्यवस्था को संभालना है, तो दूसरी तरफ कट्टरपंथी संगठनों की धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। उस्मान हादी के संगठन ‘इंकलाब मोर्चा’ ने सीधे तौर पर यूनुस सरकार को चेतावनी दी है कि यदि हादी के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार नहीं किया गया और मामले की सुनवाई में तेजी नहीं लाई गई, तो वे इस अंतरिम सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आंदोलन शुरू कर देंगे।

इसी दबाव के बीच, मोहम्मद यूनुस ने अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के लिए अमेरिका का दरवाजा खटखटाया है। हाल ही में उन्होंने अमेरिका के विशेष दूत सर्जियो गोर से फोन पर लंबी बातचीत की। इस बातचीत का मुख्य उद्देश्य अमेरिका को यह विश्वास दिलाना था कि बांग्लादेश में 12 फरवरी को होने वाले आम चुनाव समय पर ही होंगे। हिंसा और अराजकता के माहौल के बीच चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यूनुस जानते हैं कि बिना वैश्विक समर्थन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के उनकी सरकार की वैधता पर सवाल उठते रहेंगे।

भारत में बढ़ता आक्रोश और विरोध प्रदर्शन

बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा का असर अब भारत की सड़कों पर साफ देखा जा रहा है। भारत के कई प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, सूरत और पटना में लोग गुस्से में हैं। प्रदर्शनकारी बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं और मोहम्मद यूनुस के पुतले फूंके जा रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) जैसे संगठनों ने नई दिल्ली स्थित बांग्लादेशी उच्चायोग के बाहर बड़े विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया है।

भारत में बढ़ते इस आक्रोश ने कूटनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने नई दिल्ली में अपने मिशन के बाहर हो रहे विरोध प्रदर्शनों पर आपत्ति जताते हुए भारतीय उच्चायुक्त को समन भेजा है। यह पहली बार है जब इतने कम समय में दोनों देशों के बीच इतने कड़े कूटनीतिक कदम उठाए गए हैं।

शेख हसीना के गंभीर आरोप और भविष्य की राह

अपनी सत्ता खोने के बाद भारत में रह रही पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी इस पूरे घटनाक्रम पर चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने बांग्लादेश में जारी अराजकता के लिए सीधे तौर पर मोहम्मद यूनुस की सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। हसीना का आरोप है कि वर्तमान सरकार जानबूझकर कट्टरपंथियों को बढ़ावा दे रही है, जिससे न केवल बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय छवि धूमिल हो रही है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता भी खतरे में है।

शेख हसीना ने दावा किया है कि कट्टरपंथी ताकतें अब बांग्लादेश की विदेश नीति को नियंत्रित कर रही हैं, जिसका परिणाम भारत के साथ बिगड़ते संबंधों के रूप में सामने आ रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि जब बांग्लादेश में एक निर्वाचित और विधायी सरकार वापस आएगी, तभी दोनों देशों के बीच संबंधों को फिर से पटरी पर लाया जा सकेगा।

प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला और अराजकता

बांग्लादेश में केवल आम नागरिक या अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ‘मीडिया’ भी कट्टरपंथियों के निशाने पर है। उस्मान हादी की मौत के बाद हिंसक भीड़ ने कई प्रमुख मीडिया संस्थानों के कार्यालयों में तोड़फोड़ और आगजनी की। कट्टरपंथियों का उद्देश्य उन आवाजों को दबाना है जो उनकी विचारधारा के खिलाफ हैं या जो हिंसा की निष्पक्ष रिपोर्टिंग कर रहे हैं। मीडिया संस्थानों पर हुए इन हमलों ने बांग्लादेश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है।

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