• October 14, 2025

‘अगर आप किसी ग्रुप का हिस्सा हैं…’ अली फजल ने बॉलीवुड में नेपोटिज्म पर तोड़ी चुप्पी

मुंबई, 7 जुलाई 2025: बॉलीवुड में नेपोटिज्म की बहस लंबे समय से गर्म रही है। इस मुद्दे पर ताजा बयान एक्टर अली फजल का आया है, जिन्होंने हाल ही में बॉलीवुड और हॉलीवुड के कास्टिंग सिस्टम की तुलना करते हुए नेपोटिज्म पर खुलकर बात की। अली ने कहा कि उन्हें बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद से कोई खास परेशानी नहीं है, क्योंकि इंडस्ट्री में इससे भी बड़ी समस्याएं मौजूद हैं। उनके मुताबिक, बॉलीवुड में काम पाना इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस सर्कल या ग्रुप का हिस्सा हैं। वहीं, हॉलीवुड में एजेंसी-आधारित सिस्टम नए और प्रतिभाशाली कलाकारों को समान अवसर देता है। अली की यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गई है, जहां कुछ लोग उनकी राय का समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ इसे नेपोटिज्म को हल्का करने वाला बयान मान रहे हैं।
अली फजल का बयान और नेपोटिज्म पर विचार 
अली फजल ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा, “मुझे नेपोटिज्म से परेशानी नहीं है, क्योंकि इंडस्ट्री में इससे भी बड़े मुद्दे हैं। बॉलीवुड में काम पाने के लिए यह मायने रखता है कि आप किस ग्रुप का हिस्सा हैं।” उन्होंने हॉलीवुड के कास्टिंग सिस्टम की तारीफ की, जहां एजेंसियां कलाकारों को उनकी प्रतिभा के आधार पर मौके देती हैं। अली का मानना है कि हॉलीवुड का सिस्टम अधिक पारदर्शी है, हालांकि वहां भी खामियां हैं। उन्होंने भारत में कास्टिंग प्रक्रिया में सुधार की वकालत की और कहा कि कास्टिंग डायरेक्टर्स जैसे निकिता ग्रोवर और टेस जोसेफ इंडस्ट्री को सही दिशा में ले जा रहे हैं। अली के इस बयान ने बॉलीवुड में मौजूद सर्कल और नेटवर्किंग की समस्या को उजागर किया है, जो नए कलाकारों के लिए चुनौती बनती है

बॉलीवुड बनाम हॉलीवुड का कास्टिंग

सिस्टमअली फजल ने बॉलीवुड और हॉलीवुड के कास्टिंग सिस्टम के बीच अंतर को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि बॉलीवुड में काम पाने के लिए अक्सर सही कनेक्शन जरूरी होते हैं, जबकि हॉलीवुड में एजेंसी-आधारित सिस्टम नए कलाकारों को भी अवसर देता है। “हॉलीवुड में एक ट्रांसपेरेंट ढांचा है, जो भारत में सीखा जा सकता है,” अली ने कहा। उन्होंने भारत में कास्टिंग डायरेक्टर्स की भूमिका की सराहना की, जो धीरे-धीरे प्रक्रिया को बेहतर बना रहे हैं। अली का मानना है कि जैसे-जैसे कास्टिंग प्रोफेशनल्स को समर्थन मिलेगा, इंडस्ट्री में पारदर्शिता बढ़ेगी। उनके इस बयान ने उन कलाकारों की आवाज को बल दिया है, जो बिना फिल्मी बैकग्राउंड के इंडस्ट्री में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह बहस एक बार फिर बॉलीवुड की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है।
अली फजल का करियर और प्रभाव
अली फजल ने 2008 में हॉलीवुड फिल्म ‘द अदर एंड ऑफ द लाइन’ से करियर शुरू किया और ‘थ्री इडियट्स’ में छोटी भूमिका निभाई। लेकिन उन्हें असली पहचान ‘फुकरे’ और ‘मिर्जापुर’ में गुड्डू पंडित के किरदार से मिली। हॉलीवुड में ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ और ‘डेथ ऑन द नील’ जैसी फिल्मों में काम कर चुके अली ने अपनी प्रतिभा साबित की है। हाल ही में रिलीज हुई ‘मेट्रो इन दिनों’ में उनकी एक्टिंग को सराहा गया। अपनी पत्नी ऋचा चड्ढा के साथ मिलकर उन्होंने ‘पुशिंग बटन स्टूडियो’ शुरू किया, जो नई कहानियों को बढ़ावा दे रहा है। अली का यह बयान उनके अनुभवों का नतीजा है, जो बिना किसी फिल्मी बैकग्राउंड के इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने की उनकी जर्नी को दर्शाता है।
निष्कर्ष
अली फजल का नेपोटिज्म पर बयान बॉलीवुड में लंबे समय से चली आ रही बहस को नया आयाम देता है। उनका मानना है कि नेपोटिज्म से ज्यादा चिंता का विषय इंडस्ट्री में सर्कल और कनेक्शंस की संस्कृति है, जो नए टैलेंट के लिए बाधा बनती है। हॉलीवुड के पारदर्शी सिस्टम की तारीफ करते हुए उन्होंने भारत में कास्टिंग प्रक्रिया में सुधार की जरूरत पर जोर दिया। यह बयान उन कलाकारों के लिए प्रेरणा है, जो बिना किसी बैकग्राउंड के इंडस्ट्री में संघर्ष कर रहे हैं। अली की जर्नी, जो छोटे रोल से शुरू होकर ‘मिर्जापुर’ और हॉलीवुड तक पहुंची, इस बात का सबूत है कि प्रतिभा और मेहनत से सफलता हासिल की जा सकती है। हालांकि, उनके बयान ने कुछ लोगों में असहमति भी पैदा की है, जो मानते हैं कि नेपोटिज्म को हल्का करना ठीक नहीं। यह बहस बॉलीवुड में पारदर्शिता और समान अवसरों की जरूरत को फिर से उजागर करती है।

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Rama Niwash Pandey

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