गांधी की अनसुनी इच्छा: बंटवारे के बाद क्यों जाना चाहते थे पाकिस्तान?
नई दिल्ली, 2 अक्टूबर 2025: महात्मा गांधी की 156वीं जयंती के मौके पर उनकी एक ऐसी इच्छा फिर चर्चा में है, जो इतिहास के पन्नों में छिपी रही। बापू, जिन्हें देश की आजादी का प्रतीक माना जाता है, बंटवारे के बाद पाकिस्तान में बसना चाहते थे। यह इच्छा न तो जिन्ना के सपनों को समर्थन थी, न ही कोई राजनीतिक चाल। इसके पीछे की वजहें गांधी के उसूलों और मानवता के प्रति उनकी गहरी चिंता को उजागर करती हैं। क्या थी वह वजह जो गांधी को सीमा पार ले जाना चाहती थी? बंटवारे की त्रासदी और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा से जुड़ा उनका यह सपना आज भी कई सवाल छोड़ता है। आइए, इस अनकही कहानी को समझें।
गांधी का बंटवारे पर रुख: एकजुट भारत का सपना
महात्मा गांधी भारत के बंटवारे के सख्त खिलाफ थे। उनकी किताब हिंद स्वराज (1909) में वे लिखते हैं, “भारत हिंदू, मुस्लिम, पारसी और ईसाई सभी का है। एक राष्ट्रीयता और एक धर्म कभी पर्यायवाची नहीं हो सकते।” गांधी का मानना था कि भारत में सभी धर्मों का सह-अस्तित्व संभव है। वे बंटवारे को “थोड़े समय का पागलपन” मानते थे और सीमाओं के निर्माण में विश्वास नहीं रखते थे। उनकी हिंदू विचारधारा समावेशी थी, जो सांप्रदायिक एकता पर जोर देती थी। जब 1947 में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत भारत और पाकिस्तान बने, तो गांधी ने इसे देश की आत्मा पर चोट माना। उनकी यह सोच बंटवारे की हिंसा और दंगों को देखकर और गहरी हो गई थी।
पाकिस्तान जाने की इच्छा: अल्पसंख्यकों की चिंता
पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की किताब गांधीज हिंदुज्म: द स्ट्रगल अगेंस्ट जिन्ना इस्लाम के अनुसार, गांधी 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में आजादी का पहला दिन बिताना चाहते थे। उनकी इच्छा का मकसद जिन्ना के इस्लामिक राष्ट्र के विचार का समर्थन नहीं था। गांधी दोनों देशों में अल्पसंख्यकों—पाकिस्तान में हिंदुओं और भारत में मुसलमानों—की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। खासकर 1946 के नोआखाली दंगों ने, जहां हिंदुओं पर भयानक अत्याचार हुए, गांधी को झकझोर दिया था। वे पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) के नोआखाली में रहकर शांति स्थापित करना चाहते थे, ताकि ऐसी हिंसा दोबारा न हो।
गांधी की योजना: पश्चिमी फ्रंटियर और साहस
किताब के मुताबिक, गांधी ने 31 मई 1947 को पठान नेता अब्दुल गफ्फार खान (फ्रंटियर गांधी) से कहा कि वे पश्चिमी फ्रंटियर का दौरा करना चाहते हैं और आजादी के बाद पाकिस्तान में बसना चाहते हैं। गांधी ने कहा, “मैं बंटवारे को नहीं मानता। अगर पाकिस्तान बनता है, तो मैं वहां जाऊंगा और देखूंगा कि वे मेरे साथ क्या करते हैं। अगर वे मुझे मारते हैं, तो मैं हंसते हुए मौत को गले लगाऊंगा।” यह बयान गांधी की निर्भीकता और सांप्रदायिक सौहार्द के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। वे हिंसा प्रभावित इलाकों में जाकर शांति का संदेश देना चाहते थे।
क्यों नहीं पूरी हुई गांधी की इच्छा?
गांधी की पाकिस्तान जाने की योजना को तत्कालीन नेताओं ने गंभीरता से नहीं लिया। एमजे अकबर की किताब बताती है कि उनकी घोषणाओं पर ध्यान नहीं दिया गया। बंटवारे की हिंसा और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच गांधी भारत में ही दंगों को शांत करने में जुटे रहे। 1947 में वे दिल्ली और कोलकाता जैसे हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में शांति स्थापित करने में लगे थे। उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई, और 30 जनवरी 1948 को उनकी हत्या कर दी गई। गांधी का यह सपना आज भी हमें सिखाता है कि सच्ची आजादी तभी संभव है, जब सभी धर्मों और समुदायों का सह-अस्तित्व हो।
