किसानों को धान सोयाबीन के नहीं मिल रहे सही दाम, लागत निकालना भी हो रहा मुश्किल
हिन्दुस्थान की आधी से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में बसती है, जहां पर मूल्य रूप से खेती किसानी का काम होता है। वही अन्नदाता को कई बार विपदाओं का सामना करना पड़ता है। मंडी में फसल तैयार करके लेकर आते हैं, लेकिन प्रशासनिक व्यवस्थाएं ठीक न होने के कारण किसानों को यहां भी कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मंगलवार को ग्रामीण क्षेत्रों से धान और सोयाबीन की उपज लेकर आए किसान उस समय परेशान हो गए जब उन्हें उचित दाम नहीं मिला। उन्होंने शासन की कार्यप्रणाली को लेकर विरोध दर्ज्र कराया।
किसानों का कहना था कि कृषि उपज मंडी मिजार्पुर में सोयाबीन उड़द और धान की फसल लेकर आए हैं। लेकिन यहां व्यापारियों के माध्यम से जो खरीदी की जा रही है उसे वह संतुष्ट नहीं है लागत की राशि भी किसानों को नहीं मिल पा रही जबकि शासन स्तर पर तय किए गए दाम कहीं अधिक है। किसानों ने बताया की बारिश कम होने से फसल पर वैसे ही असर पड़ा था और उसे पर कम दाम मिलने की वजह से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है, लेकिन अन्नदाता की समस्या की और किसी का ध्यान नहीं है। किसान संतोष सिंह ने बताया कि हम लोगों को दाम सही से नहीं मिल रहे। सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है। किसान हाकम सिंह रजा ने कहा कि परेशान होकर कई घंटे मंडी में इंतजार करना पड़ता है। इसके बाद व्यापारी खरीददारी करता है। उसमें भी किसानों को सही रेट नहीं मिलते।
हमेशा किसान ही ठगा जाता है। वही किसान दिनेश सिंह ने बताया कि रेट कम लगाने के कारण व्यापारी फसल गीली बता रहे हैं। जबकि ऐसा नहीं है। चुनावी साल होने के कारण किसानों के साथ इस तरह का व्यवहार ठीक नहीं और न तो मंडी प्रबंधन तथा व्यापारियों पर सरकार का अंकुश नहीं है। जिसके चलते मनमानी की जाती है। किसान पूनम दुबे का कहना था कि मंडी में अव्यवस्थाओं का आलम है। वर्षो से समस्या विदिशा कृषि उपज मंडी में खत्म नहीं हो पा रही। तभी व्यापारियों का तालमेल नहीं रहता। हम्माल हरकत करते हैं और मंडी प्रबंधन इन पर कोइ कार्यवाही नहीं करता। ऐसा लगता है कि व्यापारियों की मंडी प्रबंधन से सांठगाठ रहती है। जिसके चलते यह लोग अपनी मर्जी से कार्य करते हैं और किसी की नहीं सुनते अन्नदाता तो नाम मात्र का बचा है। बाकी उसे लूटने और छल्लने यहां कई लोग बैठे हैं।
इंटरनेशनल भाव होते हैं फिक्स।
बताया गया कि मंडी में जो भी जिंसों की खरीददारी की जाती है उसके रेट में न तो मंडी प्रबंधन कुछ कर पाता और न ही व्यापारी। किसान की उपज के दाम इंटरनेशनल स्तर पर तय किए जाते हैं। और उसे आधार पर खरीददारी की जाती है। किसान इस बात से अंजान हैं कि व्यापारी ही खरीददारी के दाम तय करते हैं। इसमें गलती मंडी प्रबंधन की है। जो व्यापारियों को आज तक अवगत कराकर उसे इस बात विश्वास नहीं दिला पाई कि रेट का दाम मंडी प्रबंधन का नही है।
17 हजार 671 बोरों की रही आवक।
मंगलवार को कृषि उपज मंडी में विभिन्न जिंसों में कुल मिलाकर 17 हजार 671 बोरी आवक रही। जिसमें सोयाबीन के सात हजार आठ सौ चार बोरी तथा धान की 42 सौ 04 बोरी तथा उड़द की 38 बोरियां शामिल हैं। सोयाबीन का न्यूनतम भाव 25 सौ रुपए रहा। और अधिकतम 4684 धान का न्यूनतम रेट दो हजार और अधिकतम रेट 3852 उड़द का न्यूनतम 4 हजार 525 अधिकतम 6 हजार 730 रुपए रहा। इसके अलावा मंडी में मसूर की 383 बोरी आवक रही। जिसका न्यूनतम रेट 5 हजार 50 और अधिकतम 6 हजार 400 रहा। इसके अलावा गेंहू सरबती की आवक 343 बोरी गेंइू 1544, 43 सौ 34 बोरी चना 317 बोरी सरसों 209 बोरी धनिया 25 तेवरा 02 और मूंगफली 7 बोरी आवक रही। कुल मिलाकर आज 17 हजार 671 बोरी की आवक रही।
इनका कहना है।
किसानों की उपज की खरीदी का रेट इंटरनेशनल से चलता है। स्थानीय व्यापारियों के हाथ में कुछ नहीं रहता। किसान यदि रेट को लेकर विरोध भी करता है तो उसकी नाराजी जायज है, लेकिन उसमें हमारा कोई योगदान नहीं है। किसानों के लिए सरकार ने विकल्प दे रखा है यदि उन्हें रेट उचित नहीं मिल रहे ऐसा लगता है तो वह नीलामी के बाद खुद कराकर माल वापस ले जा सकते हैं। और फिर जहां उन्हें रेट उचित लगता वहां वह मंडी या व्यापारी के पास बेच सकते हैं। किसान के नाराज होने से कोई समस्या का हल नहीं निकलता। किसान इस बात को समझता ही नहीं है कि रेट कहां से चलते हैं।
राधेश्याम माहेश्वरी, अध्यक्ष अनाज तिलहन संघ।
रेट किसान की उपज का इंटरनेशनल पॉलीसी का हिस्सा है। धान और सोयाबीन फसल के दाम अच्छे मिल रहे हैं आवक भी अच्छी हो रही है। हरियाणा,पंजाब, औदुल्लागंज सहित अन्य स्थानों पर यह दोनों फसल जाती हैं। और इन सबका निर्धारण ऊपर से ही होता है। मंडी प्रबंधन तो मात्र देखरेख का हिस्सा है। आज लगभग 17 हजार 671 बोरी की आवक रही है।
कमल बगबैया, सचिव,कुषि उपज मंडी विदिशा।



