• December 3, 2025

सीएम बनने के बाद भी लालू प्रसाद यादव ने नहीं छोड़ा था सर्वेंट क्वाटर, सुरक्षा को भी कर दिया नजरअंदाज

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव का नाम बिहार की राजनीति में एक अलग ही छाप छोड़ता है। उनकी सादगी और जनता से जुड़ाव की कहानियां आज भी चर्चा में हैं। 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी लालू ने सरकारी बंगले की बजाय सर्वेंट क्वार्टर में रहना पसंद किया, जो उनकी सादगी और “पिछड़े वर्गों के मसीहा” की छवि को दर्शाता है। इसके साथ ही, उन्होंने अपनी सुरक्षा को भी नजरअंदाज किया, जिसे उन्होंने जनता के बीच अपनी पहुंच को बनाए रखने का हिस्सा माना। हालांकि, यह सादगी बाद में विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों से प्रभावित हुई। इस लेख में, हम लालू के इस फैसले, उनके ट्रैक रिकॉर्ड, और इसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव को  समझेंगे।

लालू का सर्वेंट क्वार्टर में रहना

1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू प्रसाद यादव ने सरकारी बंगले की बजाय पटना में एक साधारण सर्वेंट क्वार्टर में रहने का फैसला लिया। यह क्वार्टर उनके साले के घर के पास था, और वहां वह अपनी पत्नी राबड़ी देवी के साथ रहे। लालू ने इसे अपनी सादगी और पिछड़े वर्गों से जुड़ाव का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा था कि वह जनता के बीच एक आम आदमी की तरह रहना चाहते हैं। बाद में प्रशासनिक सुविधा के लिए वह मुख्यमंत्री आवास में चले गए, लेकिन यह कहानी उनकी छवि का हिस्सा बनी रही। सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसे उनकी सादगी मानते हैं, तो कुछ इसे “पब्लिक स्टंट” कहते हैं। यह फैसला उनकी “पिछड़े वर्गों के मसीहा” की छवि को मजबूत करने में मददगार रहा।

सुरक्षा को नजरअंदाज करने का निर्णय

लालू ने मुख्यमंत्री बनने के बाद सुरक्षा को भी कम महत्व दिया। उस समय बिहार में सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता थी, फिर भी उन्होंने Z+ या अन्य भारी सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया। वह अक्सर बिना भारी सुरक्षा के जनता के बीच जाते थे, जो उनकी सुलभता को दर्शाता था। हालांकि, 2017 में गृह मंत्रालय ने उनकी Z+ सुरक्षा को Z श्रेणी में और 2019 में इसे पूरी तरह हटा दिया, क्योंकि वह चारा घोटाले में जेल में थे। लालू का तर्क था कि उनकी ताकत जनता का प्यार है, न कि बंदूकें। लेकिन इस निर्णय ने उनके विरोधियों को मौका दिया, जो इसे लापरवाही या पब्लिसिटी का तरीका कहते थे। उनकी यह रणनीति बाद में उनकी सुरक्षा और छवि पर सवाल उठाने का कारण बनी।

लालू का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

लालू प्रसाद यादव ने 1990 के दशक में बिहार की राजनीति को नया मोड़ दिया। उनकी नीतियों, जैसे चारवाहा स्कूल और पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में भर्ती, ने उन्हें OBC, दलित, और मुस्लिम समुदायों का “मसीहा” बनाया। सर्वेंट क्वार्टर में रहने और सुरक्षा न लेने का उनका फैसला उनकी इस छवि को और मजबूत करता था। वह खुद को एक साधारण किसान का बेटा बताते थे, जो जनता के दुख-दर्द समझता है। हालांकि, उनके शासनकाल में बिहार में “जंगल राज” के आरोप भी लगे, जिसमें अपराध और भ्रष्टाचार बढ़ने की बात कही गई। सोशल मीडिया पर कुछ लोग उनकी सादगी की तारीफ करते हैं, तो कुछ इसे उनकी गलतियों को छिपाने का तरीका मानते हैं। यह विरोधाभास उनकी छवि का हिस्सा रहा।

विवाद और भ्रष्टाचार के आरोप

लालू की सादगी की कहानियां उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से प्रभावित हुईं। 1996 में चारा घोटाले में उनकी संलिप्तता सामने आई, जिसके कारण 1997 में उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया गया, जिसे कई लोग लालू की “प्रॉक्सी गवर्नेंस” मानते हैं। 2022 में “लैंड फॉर जॉब्स” घोटाले में भी उन पर और उनके परिवार पर आरोप लगे। इन विवादों ने उनकी सादगी की छवि पर सवाल उठाए। सोशल मीडिया पर कुछ लोग कहते हैं कि सर्वेंट क्वार्टर में रहना उनकी छवि बनाने का हिस्सा था, ताकि भ्रष्टाचार के आरोपों से ध्यान हटाया जा सके। इन आरोपों ने उनकी विश्वसनीयता को प्रभावित किया, लेकिन उनका जनाधार बरकरार रहा।

वर्तमान परिदृश्य और राजनीतिक प्रासंगिकता

2025 में लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक सक्रियता कम हो गई है, क्योंकि वह उम्र और स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। फिर भी, वह RJD के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हुए हैं और बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अपने बेटे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश में हैं। उनकी सर्वेंट क्वार्टर वाली कहानी आज भी उनके समर्थकों के बीच प्रेरणा का स्रोत है। हालांकि, BJP और JDU जैसे विरोधी दल उनकी सादगी को “नाटक” बताते हैं और उनके शासनकाल को “जंगल राज” कहकर निशाना बनाते हैं। लालू की यह छवि बिहार की सियासत में ध्रुवीकरण का कारण बनी हुई है। भविष्य में, उनकी सादगी और विवादों का यह मिश्रण RJD के लिए चुनौती और ताकत दोनों रहेगा।

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Rama Niwash Pandey

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