• October 14, 2025

‘देश में अंग्रेजी बोलने वालों को अपने ऊपर आएगी शर्म’, जानें क्यों बोले गृहमंत्री अमित शाह?

Amit Shah on English Language: नई दिल्ली में पूर्व आईएएस अधिकारी आशुतोष अग्निहोत्री की पुस्तक के विमोचन के दौरान अमित शाह ने कहा, “अब वह दिन दूर नहीं जब अंग्रेजी बोलने वालों को शर्म महसूस होगी.

Amit Shah on English Language: गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि भारतीय भाषाएं देश की आत्मा और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं, और अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषाई विरासत को दोबारा अपनाएं और दुनिया के सामने गर्व से आगे बढ़ें.

भारतीय भाषाएं ही हमारी असली पहचान हैं- शाह
गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्व IAS अधिकारी आशुतोष अग्निहोत्री की किताब ‘मैं बूंद स्वयं, खुद सागर हूं’ के विमोचन के दौरान कहा कि भारत में जल्द ही ऐसा समाज तैयार होगा, जिसमें अंग्रेज़ी बोलने वालों को खुद पर शर्म आने लगेगी. उन्होंने कहा, “जो लोग यह सोचते हैं कि बदलाव नहीं हो सकता, वे भूल रहे हैं कि परिवर्तन सिर्फ निश्चयी लोग ही ला सकते हैं. हमारी भाषाएं हमारी संस्कृति के रत्न हैं, और इनके बिना हम भारतीय नहीं रह सकते.”

देश को समझने के लिए विदेशी भाषा पर्याप्त नहीं
शाह ने कहा कि भारत, उसका इतिहास, उसकी संस्कृति और धर्म को समझने के लिए विदेशी भाषाएं कभी भी पर्याप्त नहीं हो सकतीं. उन्होंने कहा, “अधूरी विदेशी भाषाओं से भारत को पूरी तरह नहीं समझा जा सकता. मुझे पता है यह संघर्ष आसान नहीं है, लेकिन मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि भारतीय समाज इस लड़ाई को ज़रूर जीतेगा. हम आत्मसम्मान के साथ अपनी भाषाओं में देश चलाएंगे और दुनिया का नेतृत्व भी करेंगे.”

‘पंच प्रण’ ही है भारत के अमृतकाल का रास्ता
अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तुत ‘पंच प्रण’ (पांच संकल्प) का उल्लेख करते हुए कहा कि ये आज 130 करोड़ भारतीयों का संकल्प बन चुके हैं. उन्होंने कहा, “विकसित भारत का लक्ष्य, गुलामी की हर मानसिकता से मुक्ति, अपने गौरवशाली अतीत पर गर्व, एकता और अखंडता के प्रति समर्पण, और नागरिकों में कर्तव्यबोध—इन पाँच प्रणों से हम 2047 तक दुनिया के सर्वोच्च शिखर पर होंगे. और इसमें हमारी भाषाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी.”

प्रशासनिक अफसरों की ट्रेनिंग में हो बदलाव
किताब के लेखक आशुतोष अग्निहोत्री के अनुभवों पर बात करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों की ट्रेनिंग प्रणाली में बदलाव की जरूरत है. उन्होंने कहा, “आज भी हमारी प्रशासनिक ट्रेनिंग में सहानुभूति की जगह नहीं है, शायद यह ब्रिटिश कालीन सोच का असर है. अगर कोई प्रशासक सहानुभूति के बिना शासन करता है, तो वह शासन का असली उद्देश्य कभी नहीं पा सकता.”

अंधकार के युग में भी साहित्य ने धर्म और संस्कृति को जीवित रखा
अमित शाह ने साहित्य की भूमिका को भी रेखांकित किया और कहा, “जब देश अंधकार में डूबा हुआ था, तब भी साहित्य ने हमारे धर्म, स्वतंत्रता और संस्कृति की लौ को जलाए रखा. सरकारें बदलती रहीं, लेकिन जब-जब किसी ने हमारी संस्कृति और साहित्य को छूने की कोशिश की, समाज ने उसका विरोध किया. साहित्य समाज की आत्मा है.”

Digiqole Ad

Rama Niwash Pandey

https://ataltv.com/

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *