फसल बीमा योजना में ‘डिजिटल सेंधमारी’ का अंदेशा: जांच शुरू होते ही पोर्टल से उड़े करोड़ों के आंकड़े, महोबा-मथुरा समेत कई जिलों में हड़कंप
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मौसम आधारित फसल बीमा योजना एक बड़े घोटाले की जद में आती दिख रही है। प्रदेश के महोबा, झांसी, मथुरा, ललितपुर और फर्रूखाबाद जैसे जिलों से योजना के क्रियान्वयन में गंभीर वित्तीय अनियमितताओं की खबरें सामने आई हैं। सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि जैसे ही इन घपलों की आधिकारिक जांच शुरू हुई, बीमा पोर्टल पर दर्ज आंकड़ों में रहस्यमयी तरीके से बदलाव होने लगा है। अगस्त माह में पोर्टल पर जो क्लेम राशि करोड़ों में दिखाई दे रही थी, दिसंबर आते-आते वह घटकर लाखों में सिमट गई है। किसानों और जानकारों का अंदेशा है कि यह साक्ष्य मिटाने और जांच को प्रभावित करने की एक सोची-समझी डिजिटल साजिश हो सकती है।
पोर्टल में ‘आंकड़ों का खेल’: अगस्त और दिसंबर के बीच बड़ा अंतर
फसल बीमा योजना के पोर्टल पर डेटा में हुए इस कथित बदलाव ने कृषि विभाग और बीमा कंपनियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। महोबा जिले के कई गांवों से ऐसे साक्ष्य सामने आए हैं, जहां अगस्त और दिसंबर के आंकड़ों में जमीन-आसमान का अंतर है। खरीफ सीजन 2024 के क्लेम विवरण के अनुसार, संतोषपुरा गांव में अगस्त माह तक 113 किसानों को 55 लाख रुपये का भुगतान दिखाया गया था। लेकिन जैसे ही घपले की शिकायतें बढ़ीं और जांच की आंच शुरू हुई, 10 दिसंबर को इसी पोर्टल पर उन्हीं 113 किसानों के लिए भुगतान की राशि घटकर मात्र नौ लाख रुपये रह गई।
इसी तरह लुहारी गांव का उदाहरण और भी चौंकाने वाला है। अगस्त में यहां 147 लाख रुपये (1.47 करोड़) का भुगतान पोर्टल पर दर्ज था, जिसे दिसंबर में घटाकर केवल 39 लाख रुपये कर दिया गया है। अन्य गांवों जैसे भटेवर कला, कर्री जदीद, सिमरिया, खंगार्रा, इंदौरा और मुरानी में भी इसी तरह की विसंगतियां पाई गई हैं। आश्चर्य की बात यह है कि बीमित किसानों की संख्या और उनके द्वारा बीमित कराया गया क्षेत्रफल जस का तस है, केवल भुगतान की गई राशि के आंकड़े बदल दिए गए हैं।
साक्ष्य मिटाने की साजिश: किसान नेताओं के गंभीर आरोप
महोबा में इस भ्रष्टाचार के खिलाफ धरना दे रहे किसान नेता गुलाब सिंह ने प्रशासन पर तीखा हमला बोला है। उनका कहना है कि यह महज तकनीकी त्रुटि नहीं बल्कि साक्ष्य मिटाने की एक संगठित कोशिश है। उनके पास अगस्त माह के पोर्टल स्क्रीनशॉट और विवरण मौजूद हैं, जो वर्तमान डेटा से मेल नहीं खाते। गुलाब सिंह का आरोप है कि जब क्षेत्रफल और किसानों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ, तो भुगतान की गई राशि कैसे बदल सकती है?
किसानों का दावा है कि बीमा कंपनियों और संबंधित विभाग के अधिकारियों ने मिलीभगत कर करोड़ों रुपये का वारा-न्यारा किया है और अब जब जांच रिपोर्ट दर्ज होने की नौबत आई है, तो पोर्टल के बैकएंड से डेटा में छेड़छाड़ की जा रही है। किसानों ने स्थानीय प्रशासन को इन बदलावों के सबूत सौंपे हैं और मांग की है कि पोर्टल के लॉग रिकॉर्ड्स की जांच की जाए ताकि यह पता चल सके कि किस यूजर आईडी से ये बदलाव किए गए हैं।
अपात्रों पर मेहरबानी: इंदौरा गांव का ‘उरई-हमीरपुर’ कनेक्शन
भ्रष्टाचार की जड़ें केवल आंकड़ों के फेरबदल तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि क्लेम के वितरण में भी भारी धांधली देखी गई है। कुलपहाड़ तहसील के इंदौरा गांव का मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। खरीफ 2024 के दौरान इस गांव के लिए कुल एक करोड़ 10 लाख रुपये की बीमा राशि बांटी गई। जांच में पता चला कि इस कुल राशि में से 83.49 लाख रुपये केवल 33 लोगों को दिए गए हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इन 33 ‘लाभार्थियों’ में से एक भी व्यक्ति इंदौरा गांव का निवासी नहीं है।
इन 33 किसानों की सूची खंगालने पर पता चला कि इनमें से अधिकांश उरई और हमीरपुर जिलों के निवासी हैं। कुछ किसान जो महोबा जिले के ही हैं, वे दूसरी तहसील क्षेत्रों के रहने वाले हैं। सवाल यह उठता है कि इंदौरा गांव की फसल खराबी का मुआवजा दूसरे जिलों के लोगों को कैसे मिल गया? स्थानीय किसानों का कहना है कि उनकी अपनी जमीन पर क्लेम नहीं मिला, जबकि सरकारी कागजों में नाले, बंजर भूमि और सार्वजनिक रास्तों पर बीमा दिखाकर भारी भरकम क्लेम निकाल लिया गया।
मथुरा में ‘क्रॉप इंश्योरेंस ऐप’ बंद होने से संशय गहराया
महोबा के साथ-साथ मथुरा जिले में भी फसल बीमा को लेकर भारी आक्रोश है। मथुरा के किसानों ने जिलाधिकारी से शिकायत की थी कि उनके डेटा में गड़बड़ी है और पात्र किसानों के बजाय बिचौलियों को लाभ दिया गया है। किसानों का आरोप है कि शिकायत दर्ज होते ही ‘क्रॉप इंश्योरेंस ऐप’ को कई दिनों के लिए बंद कर दिया गया। किसानों को आशंका है कि ऐप को तकनीकी खराबी के नाम पर बंद करके पीछे से डेटा में हेरफेर किया जा रहा है ताकि जांच के समय सब कुछ सामान्य दिखे। हालांकि, तकनीकी टीम का दावा है कि उन्हें ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है और संभवतः नेटवर्क की समस्या के कारण ऐप काम नहीं कर रहा होगा। लेकिन किसानों की नाराजगी कम होने का नाम नहीं ले रही है।
प्रशासनिक सफाई: “पोर्टल से छेड़छाड़ संभव नहीं”
इस पूरे विवाद पर कृषि विभाग के उच्चाधिकारियों ने फिलहाल पोर्टल के साथ किसी भी छेड़छाड़ की संभावना से इनकार किया है। महोबा के उप कृषि निदेशक रामसजीवन का कहना है कि फसल बीमा पोर्टल सीधे शासन और भारत सरकार के कृषि मंत्रालय से संचालित होता है। स्थानीय स्तर पर इसमें डेटा बदलना तकनीकी रूप से संभव नहीं है। उनका तर्क है कि यदि आंकड़ों में कोई बदलाव दिख रहा है, तो वह किसी तकनीकी अपडेशन या डेटा सिंकिंग प्रक्रिया का हिस्सा हो सकता है।
वहीं, निदेशक कृषि डॉ. पंकज त्रिपाठी ने भी स्पष्ट किया है कि यह पोर्टल केंद्रीय मंत्रालय से जुड़ा है और इसमें कोई भी बदलाव बिना उच्च स्तरीय अनुमति के नहीं हो सकता। हालांकि, उन्होंने यह आश्वासन भी दिया है कि यदि किसानों की ओर से डेटा में बदलाव की विशिष्ट शिकायतें प्राप्त होती हैं, तो इसकी गहन जांच कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि संबंधित शिकायतों का पूरा विवरण केंद्रीय कृषि मंत्रालय के तकनीकी विभाग को भेजा जाएगा ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके।
नाले और बंजर जमीन पर ‘बीमा क्लेम’ का बंदरबांट
जांच की प्रारंभिक रिपोर्टों से यह भी सामने आया है कि महोबा और झांसी जैसे जिलों में नाले, सरकारी बंजर जमीन और चरागाहों पर भी फसल बीमा का क्लेम उठा लिया गया है। फर्जी खतौनियों और कागजातों के आधार पर ऐसी जमीनों पर फसल दिखाई गई जो वास्तव में खेती के योग्य ही नहीं थीं। झांसी और महोबा में इस मामले में एफआईआर (FIR) भी दर्ज कराई गई है। प्रशासन अब उन पटवारियों और बैंक अधिकारियों की भूमिका की भी जांच कर रहा है जिन्होंने इन फर्जी दस्तावेजों का सत्यापन किया था।
निष्कर्ष: किसानों का भरोसा दांव पर
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा देने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन उत्तर प्रदेश के इन जिलों से आ रही खबरें योजना की विश्वसनीयता पर चोट पहुंचा रही हैं। एक तरफ किसान अपनी बर्बाद फसलों के मुआवजे के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ डिजिटल डेटा में हो रहा रहस्यमयी बदलाव व्यवस्था की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। क्या वास्तव में पोर्टल में सेंधमारी हुई है या यह एक तकनीकी खामी है, यह तो उच्च स्तरीय जांच के बाद ही साफ होगा, लेकिन फिलहाल किसानों का भरोसा इस व्यवस्था से डगमगाता दिख रहा है।