भारत-अमेरिका ट्रेड डील पर नहीं बन पाई सहमति! समझें- आखिर कहां फंस रहा पेच?
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता दोनों देशों के लिए आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। दोनों देशों का लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाना है, जो वर्तमान में 191 अरब डॉलर है। यह समझौता न केवल व्यापार घाटे को कम करने में मदद कर सकता है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को भी मजबूत करेगा। अमेरिका भारत से ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रिक वाहन, डेयरी, और जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलों पर शुल्क में रियायत चाहता है, जबकि भारत श्रम-प्रधान क्षेत्रों में छूट की मांग कर रहा है। हाल के महीनों में, दोनों देशों के बीच वार्ता तीव्र हुई है, लेकिन कुछ संवेदनशील मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई है। 9 जुलाई 2025 तक समझौता न होने पर अमेरिका भारतीय उत्पादों पर 26% अतिरिक्त शुल्क लागू कर सकता है, जो पहले 90 दिनों के लिए स्थगित किया गया था। यह स्थिति भारत के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि यह वैश्विक व्यापार में उसकी स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
भारत और अमेरिका के बीच वार्ता में सबसे बड़ा पेंच कृषि, डेयरी, और डिजिटल सेवाओं जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर अटक गया है। भारत ने इन क्षेत्रों में अमेरिकी मांगों को सिरे से खारिज कर दिया है, खासकर जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों और मांसाहारी चारे से बने डेयरी उत्पादों को बाजार में अनुमति देने पर। भारत का मानना है कि इन क्षेत्रों को खोलने से उसकी खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। लगभग 70 करोड़ भारतीय नागरिक कृषि पर निर्भर हैं, और डेयरी क्षेत्र को किसी भी मुक्त व्यापार समझौते में पहले कभी नहीं खोला गया। दूसरी ओर, अमेरिका भारत से कुछ कृषि उत्पादों जैसे बादाम, अखरोट, और शराब पर शुल्क में कमी चाहता है। भारत ने कुछ फलों और नट्स पर रियायत देने का संकेत दिया है, लेकिन डेयरी और जीएम फसलों पर उसका रुख सख्त है। यह गतिरोध दोनों देशों के बीच संतुलित समझौते की राह में सबसे बड़ी बाधा है।
टैरिफ नीतियां भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता में एक प्रमुख विवाद का कारण बनी हुई हैं। अमेरिका ने अप्रैल 2025 में भारतीय उत्पादों पर 26% अतिरिक्त शुल्क लगाया था, जिसे 90 दिनों के लिए स्थगित किया गया। भारत चाहता है कि यह शुल्क पूरी तरह हटाया जाए, जबकि अमेरिका बदले में भारत से अपने उत्पादों पर टैरिफ में कटौती की मांग कर रहा है। भारत ने क्रूड जैसे उत्पादों की खरीदारी में 270% की वृद्धि की है, लेकिन डेयरी और कृषि क्षेत्रों में रियायत देने से इनकार किया है। अमेरिका की रणनीति में भारत को अपने बाजार को और खोलने के लिए दबाव डालना शामिल है, लेकिन भारत का जोर संतुलित समझौते पर है, जो उसके हितों की रक्षा करे। इसके अलावा, भारत की जटिल श्रम और भूमि नीतियां भी निवेशकों के लिए अनिश्चितता पैदा करती हैं, जिससे व्यापार समझौते की प्रक्रिया और जटिल हो जाती है। यह स्थिति दोनों देशों के लिए दीर्घकालिक रणनीतिक चुनौतियां प्रस्तुत करती है।
भविष्य की संभावनाएं और रास्ता आगे
भारत और अमेरिका दोनों 8 जुलाई 2025 से पहले अंतरिम व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अपनी अमेरिका यात्रा को बढ़ाकर वार्ता को गति दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि दोनों पक्ष लचीला रुख अपनाएं, तो समझौता संभव है। भारत ने सुझाव दिया है कि वह कुछ क्षेत्रों, जैसे नट्स और फलों पर शुल्क छूट दे सकता है, बशर्ते अमेरिका भारतीय श्रम-प्रधान उत्पादों को अपने बाजार में आसान पहुंच दे। हालांकि, जियोपॉलिटिकल कारकों का प्रभाव भी इस वार्ता पर पड़ रहा है। अमेरिका ने हाल ही में चीन और यूके के साथ सफल व्यापार समझौते किए हैं, जिससे भारत पर दबाव बढ़ा है। फिर भी, भारत का सख्त रुख, खासकर कृषि और डेयरी क्षेत्रों में, यह दर्शाता है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा। आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच ऑनलाइन और प्रत्यक्ष वार्ता जारी रहेगी, जो इस समझौते के भविष्य को निर्धारित करेगी।
