• December 25, 2025

बांग्लादेश में ईशनिंदा के नाम पर बर्बरता: दीपू चंद्र दास की हत्या में ‘क्लीन चिट’, अफवाह ने ली निर्दोष की जान

ढाका : बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसा और कट्टरपंथ का एक ऐसा चेहरा सामने आया है जिसने मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया है। मयमनसिंह जिले के भालुका इलाके में हाल ही में हुई दीपू चंद्र दास की मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) के मामले में अब एक चौंकाने वाला और दुखद खुलासा हुआ है। जांच अधिकारियों ने स्पष्ट कर दिया है कि जिस ‘ईशनिंदा’ के आरोप में दीपू को सरेआम मौत के घाट उतारा गया और उसके शव को आग के हवाले कर दिया गया, उस आरोप का कोई आधार ही नहीं था। यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि कैसे बिना किसी सबूत के केवल अफवाहों के दम पर उन्मादी भीड़ कानून को अपने हाथ में ले रही है और निर्दोषों का खून बहाया जा रहा है।

अफवाह की चिंगारी और उन्माद का तांडव

घटना की शुरुआत मयमनसिंह के भालुका स्थित एक कपड़ा फैक्ट्री से हुई, जहां दीपू चंद्र दास मजदूरी करता था। वहां अचानक यह अफवाह फैला दी गई कि दीपू ने इस्लाम धर्म और धार्मिक प्रतीकों के खिलाफ कोई आपत्तिजनक टिप्पणी की है। जैसे ही यह बात फैक्ट्री के भीतर और बाहर फैली, माहौल तनावपूर्ण हो गया। फैक्ट्री में काम करने वाले कुछ कट्टरपंथी सोच के श्रमिकों ने तुरंत दीपू को नौकरी से निकालने और उसे दंडित करने की मांग शुरू कर दी। देखते ही देखते फैक्ट्री के गेट पर सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो गई, जो धार्मिक नारे लगा रही थी और दीपू को उनके हवाले करने की मांग कर रही थी। भीड़ का नेतृत्व कर रहे लोग खून के प्यासे हो चुके थे और उनके सिर पर ईशनिंदा का जुनून सवार था।

फैक्ट्री प्रबंधन की लाचारी और पुलिस की अनुपस्थिति

फैक्ट्री के फ्लोर इंचार्ज आलमगीर हुसैन ने स्थानीय मीडिया को बताया कि शुरुआती दौर में प्रबंधन ने स्थिति को भांपते हुए दीपू को बचाने का प्रयास किया था। दीपू को सुरक्षा कक्ष (सिक्योरिटी रूम) में छिपा दिया गया था ताकि भीड़ की नजरों से उसे बचाया जा सके। इस बीच पुलिस और स्थानीय प्रशासन को सूचित किया गया, लेकिन आरोप है कि पुलिस समय पर मौके पर नहीं पहुंची। जैसे-जैसे समय बीतता गया, भीड़ हिंसक होती गई और फैक्ट्री की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने लगी। प्रबंधन को लगा कि यदि दीपू को भीड़ को नहीं सौंपा गया, तो पूरी फैक्ट्री को आग के हवाले कर दिया जाएगा। अंततः, अपनी संपत्ति और परिसर को बचाने के लिए फैक्ट्री प्रबंधन ने एक बेबस इंसान को मौत के मुंह में धकेल दिया और उसे हिंसक भीड़ के हवाले कर दिया।

बर्बरता की पराकाष्ठा: हत्या के बाद शव को जलाया

भीड़ के हाथ लगते ही दीपू चंद्र दास पर लात-घूंसों और डंडों की बारिश शुरू हो गई। प्रत्यक्षदर्शियों और सोशल मीडिया पर वायरल हुए विचलित करने वाले वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे सैकड़ों लोग एक निहत्थे व्यक्ति को पीट रहे थे। दीपू अपनी जान की भीख मांगता रहा, लेकिन मजहबी जुनून में अंधी हो चुकी भीड़ पर कोई असर नहीं हुआ। पीट-पीटकर उसकी हत्या करने के बाद भी भीड़ का गुस्सा शांत नहीं हुआ। दरिंदगी की हद पार करते हुए उसके निर्जीव शरीर को सरेआम आग लगा दी गई। इस दौरान भीड़ जश्न मना रही थी और मजहबी नारे लगा रही थी। यह पूरी घटना ‘नए बांग्लादेश’ के उन दावों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है, जहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की बात कही जा रही है।

जांच में हुआ बेगुनाही का खुलासा: ईशनिंदा का कोई सबूत नहीं

इस जघन्य हत्याकांड के बाद जब कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने मामले की गहराई से जांच की, तो सच कुछ और ही निकला। रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) के कंपनी कमांडर ने आधिकारिक तौर पर पुष्टि की है कि दीपू चंद्र दास के खिलाफ ईशनिंदा का कोई भी सबूत नहीं मिला है। जांच के दौरान अधिकारियों ने फैक्ट्री के दर्जनों श्रमिकों और स्थानीय लोगों से पूछताछ की, लेकिन एक भी ऐसा व्यक्ति सामने नहीं आया जिसने अपने कानों से दीपू को कोई आपत्तिजनक टिप्पणी करते सुना हो। यह पूरी तरह से एक सुनियोजित या अनजाने में फैलाई गई घातक अफवाह थी, जिसे भीड़ ने बिना सोचे-समझे सच मान लिया। जांच रिपोर्ट यह साबित करती है कि दीपू चंद्र दास पूरी तरह निर्दोष था और उसे केवल उसकी धार्मिक पहचान के कारण निशाना बनाया गया।

अंतरिम सरकार की प्रतिक्रिया और गिरफ्तारियां

इस घटना के वैश्विक स्तर पर चर्चित होने और मानवाधिकार संगठनों के दबाव के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार हरकत में आई है। मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे ‘जघन्य अपराध’ करार दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि नए बांग्लादेश में इस प्रकार की हिंसा और मॉब लिंचिंग के लिए कोई स्थान नहीं है। सरकार ने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है। पुलिस ने अब तक इस मामले में 12 संदिग्धों को गिरफ्तार किया है, जिनसे पूछताछ की जा रही है। हालांकि, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बांग्लादेश में ईशनिंदा के नाम पर होने वाली हिंसा के मामलों में सजा की दर बहुत कम है, जिसके कारण कट्टरपंथियों के हौसले बुलंद रहते हैं।

अल्पसंख्यकों में भय और सुरक्षा पर सवाल

दीपू चंद्र दास की इस तरह सरेआम हत्या ने बांग्लादेश में रह रहे हिंदू समुदाय के भीतर गहरे डर और असुरक्षा का भाव भर दिया है। शेख हसीना के इस्तीफे के बाद से ही देश के विभिन्न हिस्सों में हिंदुओं पर हमलों की खबरें आती रही हैं। दीपू की हत्या ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वहां केवल एक अफवाह किसी की जान लेने के लिए काफी है। बुद्धिजीवियों का मानना है कि जब तक ईशनिंदा और धार्मिक उन्माद के खिलाफ सख्त कानून लागू नहीं किए जाएंगे और पुलिस प्रशासन को निष्पक्ष नहीं बनाया जाएगा, तब तक निर्दोष दीपू जैसे लोग बलि चढ़ते रहेंगे। यह मामला न केवल एक व्यक्ति की हत्या का है, बल्कि यह एक समाज की गिरती नैतिकता और कानून के राज की विफलता का भी प्रतीक है।

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