वैदिक मंत्रोच्चार के बीच ध्वजारोहण के साथ एशिया प्रसिद्ध कार्तिक कल्पवास शुरू

मिथिला-मगध के संगम पर बेगूसराय के सिमरिया गंगा धाम में बुधवार को ध्वजारोहण के साथ एशिया प्रसिद्ध कार्तिक कल्पवास मेला शुरू हो गया। 41 दिनों तक चलने वाले कल्पवास मेला में अब तक करीब 80 खालसा लग चुके हैं। बुधवार को सभी खालसा में महंत ने भक्तजनों की उपस्थिति में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ ध्वजारोहण किया।
अब 27 नवम्बर कार्तिक पूर्णिमा तक बिहार सहित देश के विभिन्न राज्य और पड़ोसी देश नेपाल तक के हजारों श्रद्धालु यहां भक्ति, आध्यात्म और सनातन संस्कृति की त्रिवेणी में डुबकी लगाएंगे। इस अवसर पर ध्वजारोहण करते हुए राम निहोरा सेवा समिति खालसा के प्रमुख मिथिलेश दास उर्फ बौआ हनुमान ने कहा कि सिमरिया में कल्पवास की परंपरा हमारे पूर्वजों के समय से चली आ रही है।
हम लोग गुरु परंपरा के अनुसार चलते हुए प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने में इस पावन गंगा नदी के तट पर कल्पवास करते हैं। शास्त्र कहते हैं कि कल्पवास के दौरान गंगा किनारे रहकर स्नान करने से लोग पाप मुक्त हो जाते हैं, मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस वर्ष यहां अर्ध कुंभ लग रहा है, हर कोई चाह रहे हैं कि गंगा में डुबकी लगाएं। आज संक्रांति पर ध्वजारोहण किया गया है। ध्वजारोहण से सुख, शांति, वैभव और सब ओर आनंद रहता है।
अब प्रत्येक दिन सुबह गंगा स्नान से शुरू दिनचर्या कार्तिक पूर्णिमा तक लगातार चलेंगी। साधु समाज का संरक्षण मिलेगा। सुबह में गंगा स्नान और पूजन के बाद हनुमान चालीसा का पाठ, कार्तिक महात्म्य, श्रीमदभागवत कथा, राम कथा, दीपदान और भजन कीर्तन के साथ क्रमबद्ध तरीके से चलेगा। इस सिमरिया गंगा तट पर राजा जनक और माता सीता ने भी कल्पवास किया था और तभी से हम सब उस परंपरा को निभाते आ रहे हैं।
इसका वैज्ञानिक आधार भी है, सात्विक भोजन करने, गंगा स्नान, गंगाजल के सेवन और साधुओं के आशीर्वाद से प्रदूषण मुक्त होकर हमारे अंदर का रोग खत्म होता है। मनु स्मृति के अनुसार कल्पवास के दौरान मृत्यु होने पर साकेत मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार शासन-प्रशासन ने जो व्यवस्था की है वह आनंद की अनुभूति दे रहा है। कभी सोचते भी नहीं थे कि ऐसी व्यवस्था होगी।
कल्पवास में ऐसी व्यवस्था करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और मंत्री संजय कुमार झा को हम साधु समाज धन्यवाद देते हैं। बिहार में मुख्यमंत्री तो बहुत बने, लेकिन कभी ऐसी व्यवस्था नहीं किया गया, किसी की ऐसी सोच नहीं थी। कल्पवास को राजकीय दर्जा वर्षों पहले दे दिया गया। लेकिन शौचालय और पानी तक की बढ़कर व्यवस्था थी, राशन देना बंद कर दिया गया था। लेकिन कोई ऐसा बेटा हुआ जो कल्पवास की व्यवस्था को जागृत कर रहा है, यह भूमिका इतिहास लिखेगा।
