अरावली पर आर-पार: केंद्र ने गिनाईं संरक्षण की उपलब्धियां, कांग्रेस ने दी ‘पारिस्थितिक तबाही’ की चेतावनी
नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर की जीवनरेखा कही जाने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला एक बार फिर राजनीतिक अखाड़े में तब्दील हो गई है। अरावली के संरक्षण और नए प्रशासनिक आदेशों को लेकर केंद्र सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। जहां केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अरावली को बचाने के लिए उठाए गए कदमों का बचाव किया है, वहीं कांग्रेस ने चेतावनी दी है कि सरकार की नीतियां आधे हिंदुस्तान के पर्यावरण को खतरे में डाल सकती हैं। यह विवाद ऐसे समय में गहराया है जब एनसीआर में प्रदूषण और गिरते भूजल स्तर की समस्या पहले से ही गंभीर बनी हुई है।
भूपेंद्र यादव का बचाव: ‘ग्रीन अरावली मूवमेंट’ से बदला परिदृश्य
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने अरावली विवाद पर सरकार का पक्ष मजबूती से रखा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के विजन के तहत ‘ग्रीन अरावली मूवमेंट’ को अभूतपूर्व मजबूती मिली है। मंत्री ने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 2014 तक देश में केवल 24 रामसर साइट्स (अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि) थीं, जिनकी संख्या अब बढ़कर 96 हो गई है। उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया कि सुल्तानपुर, भिंडावास, असोला भट्टी, सिलिसेढ़ और सांभर जैसी महत्वपूर्ण अरावली से जुड़ी जगहों को रामसर सूची में शामिल करना सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उनके अनुसार, सरकार न केवल अदालतों के निर्देशों का पालन कर रही है, बल्कि दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में पर्वत श्रृंखला के संरक्षण के लिए सक्रिय कदम उठा रही है।
वनीकरण और ‘ग्रीन क्रेडिट’ का मॉडल
सरकार की पहलों को गिनाते हुए भूपेंद्र यादव ने कहा कि ‘ग्रीन इंडिया मिशन’ के तहत अरावली को फिर से हरा-भरा बनाने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया गया है। पिछले दो वर्षों में दिल्ली और आसपास के इलाकों में रिकॉर्ड वृक्षारोपण किया गया है। उन्होंने गुरुग्राम का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां 10 हजार एकड़ भूमि को क्षतिपूरक वनीकरण (Compensatory Afforestation) के लिए सुरक्षित किया गया है। इसके अलावा, गुरुग्राम के ही 750 एकड़ क्षेत्र में उन जंगलों को पुनर्जीवित किया गया है जो पूरी तरह खराब हो चुके थे। यह कार्य ‘ग्रीन क्रेडिट’ प्रणाली के माध्यम से किया गया है, जो पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने का एक आधुनिक तरीका है।
खनन पर छिड़ा विवाद: सरकार की सफाई और विपक्ष के आरोप
अरावली में खनन को लेकर फैलाई जा रही खबरों पर केंद्रीय मंत्री ने सख्त रुख अख्तियार किया। उन्होंने विपक्षी नेताओं के सोशल मीडिया पोस्ट को “भ्रामक और गलत” करार दिया। भूपेंद्र यादव ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में किसी भी प्रकार का खनन पूरी तरह प्रतिबंधित है और सरकार ने नए खनन की कोई अनुमति नहीं दी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार की प्राथमिकता केवल और केवल पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना है और खनन को लेकर किए जा रहे दावे पूरी तरह आधारहीन हैं।
कांग्रेस का कड़ा प्रहार: ‘आधे हिंदुस्तान पर पड़ेगा असर’
दूसरी ओर, कांग्रेस ने सरकार के दावों को सिरे से खारिज करते हुए इसे एक बड़ी पर्यावरणीय त्रासदी की आहट बताया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने तीखा हमला बोलते हुए कहा कि अरावली से जुड़ा कोई भी नया प्रशासनिक आदेश पूरे क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ सकता है। खेड़ा के मुताबिक, अरावली केवल पहाड़ नहीं हैं, बल्कि वे एक सुरक्षा कवच हैं जो थार मरुस्थल की उड़ती रेत को दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने से रोकते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अरावली की पहाड़ियों और उसके जंगलों के साथ छेड़छाड़ की गई, तो इसका असर उत्तर भारत की खेती, जल स्रोतों और करोड़ों लोगों के जीवन पर पड़ेगा।
अरावली का महत्व और भविष्य का संकट
पवन खेड़ा ने कहा कि अरावली के साथ किया जाने वाला कोई भी समझौता देश के हितों के खिलाफ माना जाएगा। कांग्रेस का तर्क है कि वनीकरण के नाम पर कुछ चुनिंदा क्षेत्रों को विकसित करना और बाकी हिस्सों में निर्माण या अन्य गतिविधियों की छूट देना खतरनाक साबित होगा। विपक्षी दलों का अंदेशा है कि नए नियमों की आड़ में रियल एस्टेट लॉबी को फायदा पहुंचाया जा सकता है, जिससे अरावली की पहाड़ियां समतल हो जाएंगी। इस खींचतान के बीच, पर्यावरणविदों का भी मानना है कि अरावली क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने से वन्यजीवों का गलियारा नष्ट हो रहा है और भूजल रिचार्ज की क्षमता घट रही है।
निष्कर्ष: विकास बनाम पर्यावरण की जंग
अरावली पहाड़ियों को लेकर जारी यह विवाद केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई बन गया है। जहां सरकार अपनी योजनाओं को ‘संरक्षण’ का जामा पहना रही है, वहीं विपक्ष इसे ‘विनाश’ की पटकथा बता रहा है। दिल्ली-एनसीआर की जहरीली हवा और घटते हरियाली के बीच अरावली का मुद्दा आने वाले दिनों में और गरमाने की उम्मीद है। अब देखना यह होगा कि अदालती हस्तक्षेप और जनमत इस संवेदनशील मुद्दे को किस दिशा में ले जाता है।