राहुल गांधी की विदेशी दौरों पर जासूसी? सैम पित्रोदा के दावों ने राजनीतिक गलियारों में मचाया हड़कंप
नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में बयानों के लिए अक्सर चर्चा में रहने वाले इंडियन ओवरसीज कांग्रेस (IOC) के अध्यक्ष और गांधी परिवार के करीबी सलाहकार सैम पित्रोदा ने एक बार फिर एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। पित्रोदा ने दावा किया है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी जब भी विदेश यात्रा पर होते हैं, तो उन पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। उन्होंने सीधे तौर पर भारतीय दूतावास के अधिकारियों और सरकार पर जासूसी के आरोप लगाए हैं। पित्रोदा का यह बयान ऐसे समय में आया है जब राहुल गांधी हाल ही में जर्मनी के दौरे पर थे और देश में संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था।
भारतीय दूतावासों पर निगरानी और जासूसी के गंभीर आरोप
सैम पित्रोदा ने एक हालिया साक्षात्कार के दौरान बेहद चौंकाने वाले खुलासे किए। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी की विदेशी गतिविधियों पर सरकार की पैनी नजर रहती है। पित्रोदा के अनुसार, संबंधित देशों में स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारी न केवल राहुल गांधी की आवाजाही को ट्रैक करते हैं, बल्कि विदेशी नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों को राहुल से मिलने से बचने के लिए भी प्रभावित करते हैं। पित्रोदा ने आरोप लगाया कि विदेशी मंचों पर राहुल गांधी की पहुंच को सीमित करने के लिए राजनयिक स्तर पर दबाव बनाया जाता है और उन्हें अलग-थलग करने की कोशिश की जाती है।
उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया को ‘सरकारी जासूसी’ करार देते हुए कहा कि यह लोकतंत्र के लिए एक स्वस्थ संकेत नहीं है। जब उनसे इन दावों के पक्ष में सबूत मांगे गए, तो पित्रोदा ने स्वीकार किया कि उनके पास कोई लिखित दस्तावेज या आधिकारिक प्रमाण नहीं है, लेकिन उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर यह बात कही है। उन्होंने दावा किया कि वे खुद कई बार ऐसी स्थितियों के गवाह रहे हैं जहाँ संदिग्ध लोग होटल, बैठकों और एयरपोर्ट पर राहुल गांधी का पीछा करते या उन पर नजर रखते हुए पाए गए।
जर्मनी दौरे की टाइमिंग और संसद की ‘उपेक्षा’ पर सफाई
राहुल गांधी के हालिया जर्मनी दौरे को लेकर देश के भीतर काफी राजनीतिक बवाल हुआ था। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सवाल उठाए थे कि जब संसद का महत्वपूर्ण सत्र चल रहा है, तो विपक्ष के नेता विदेश में क्या कर रहे हैं? इस पर स्पष्टीकरण देते हुए सैम पित्रोदा ने कहा कि विदेशी दौरों की योजना रातों-रात नहीं बनती। उन्होंने बताया कि जर्मनी की यात्रा महीनों पहले तय हो चुकी थी और यह एक अंतरराष्ट्रीय ‘प्रोग्रेसिव अलायंस’ की बैठक का हिस्सा थी, जिसमें दुनिया भर के 110 से अधिक देशों के लोकतांत्रिक दल शामिल होते हैं।
पित्रोदा ने संसद की उपेक्षा के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि भारत जैसे बड़े और गतिशील देश में हर समय कोई न कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक या सामाजिक घटनाक्रम चलता रहता है। यदि इस आधार पर विदेशी दौरों को टाला जाए, तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के विपक्ष की आवाज कभी पहुंच ही नहीं पाएगी। उन्होंने कहा कि समय को लेकर सवाल उठाना राजनीति का हिस्सा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि राहुल गांधी अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों से पीछे हट जाएं।
‘देश विरोधी’ और ‘भारत विरोधी’ होने के आरोपों पर पलटवार
भाजपा अक्सर राहुल गांधी पर विदेशी धरती पर जाकर भारत की छवि खराब करने और देश विरोधी बयान देने के आरोप लगाती रही है। इस मुद्दे पर सैम पित्रोदा ने राहुल का बचाव करते हुए कहा कि ‘सत्य’ की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती। पित्रोदा के अनुसार, जो बातें भारत के भीतर सच हैं, वही बातें विदेश में भी सच रहती हैं। उन्होंने कहा कि आज के डिजिटल युग में आप कहीं भी कुछ भी कहें, उसके वैश्विक मायने होते हैं।
पित्रोदा ने सत्ता पक्ष पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी देश की समस्याओं, लोकतंत्र की चुनौतियों और संस्थानों के कथित दुरुपयोग पर बात करते हैं, जिसे सरकार ‘देश विरोध’ का नाम दे देती है। पित्रोदा ने तर्क दिया कि देशहित का मतलब सरकार की कमियों को छिपाना नहीं है, बल्कि उन पर चर्चा करना है ताकि सुधार की गुंजाइश बनी रहे। उनके अनुसार, कांग्रेस इन आरोपों से डरने वाली नहीं है और राहुल गांधी वैश्विक मंचों पर भारत के असल मुद्दों को उठाना जारी रखेंगे।
लोकतांत्रिक संस्थाओं के दुरुपयोग और बदले की राजनीति
साक्षात्कार के दौरान सैम पित्रोदा ने भारत के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य पर भी चिंता जताई। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार बदले की भावना से काम कर रही है और संवैधानिक संस्थानों का इस्तेमाल विपक्ष को दबाने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जासूसी और निगरानी के ये दावे इसी बड़ी तस्वीर का एक हिस्सा हैं। पित्रोदा के अनुसार, विपक्ष के नेता को एक स्वतंत्र नागरिक की तरह विदेश यात्रा करने और दुनिया के नेताओं से संवाद करने का पूरा हक है, लेकिन इसमें बाधा डालना लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन है।
पित्रोदा के इन दावों ने एक बार फिर भारतीय राजनीति में ‘निजता के अधिकार’ और ‘विपक्ष की स्वतंत्रता’ पर बहस छेड़ दी है। जहाँ कांग्रेस इसे सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति बता रही है, वहीं भाजपा का कहना है कि पित्रोदा के पास कोई सबूत नहीं है और वे केवल राहुल गांधी की विफलताओं को छिपाने के लिए सनसनीखेज दावे कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि क्या सरकार इन आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया देती है या पित्रोदा के ये दावे आगामी चुनावी विमर्श का हिस्सा बनेंगे।