सिख समुदाय को साधने का ‘हरियाणा मॉडल’: मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के जरिए पंजाब में राह सुगम कर रही भाजपा; ‘सैनिक’ से ‘सरदार’ की भूमिका में दिखे सीएम
चंडीगढ़/पंचकूला। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उत्तर भारत की राजनीति में एक बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील बदलाव की पटकथा लिख रही है। इस रणनीति का केंद्र हरियाणा है और इसके सारथी बने हैं मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी। किसान आंदोलन के बाद पैदा हुई परिस्थितियों और सिख समुदाय के साथ उपजी दूरियों को पाटने के लिए भाजपा अब हरियाणा की धरती का उपयोग एक ‘पुल’ के रूप में कर रही है। पिछले कुछ महीनों में हरियाणा सरकार की गतिविधियों और मुख्यमंत्री सैनी के पंजाब में बढ़ते दौरों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा अब सिख समुदाय के दिलों में ‘मुलायम स्पर्श’ के जरिए जगह बनाने की कोशिश कर रही है।
कुरुक्षेत्र में श्री गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस समागम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति और अब पंचकूला में ‘वीर बाल दिवस’ के अवसर पर गृह मंत्री अमित शाह का आगमन—ये महज सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि भाजपा की उस गहरी कूटनीति का हिस्सा हैं, जिसके तहत पार्टी पंजाब और सिख समुदाय में अपनी छवि को नए सिरे से गढ़ना चाहती है। इस पूरे मिशन में नायब सिंह सैनी एक ऐसे ‘सेतु’ के रूप में उभर रहे हैं, जो हरियाणा और पंजाब के बीच वर्षों पुराने गतिरोध को सद्भाव में बदलने का प्रयास कर रहे हैं।
शहादत को सम्मान और भावनाओं का जुड़ाव: सैनी सरकार की विशेष पहल
हरियाणा की भाजपा सरकार वर्तमान में सिख समुदाय की भावनाओं से जुड़े किसी भी विषय को अछूता नहीं छोड़ रही है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने हाल ही में 1984 के दंगों में मारे गए सिखों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने का ऐतिहासिक एलान किया। यह एक ऐसा घाव था जिस पर मरहम लगाने की कोशिश कर सैनी सरकार ने सिखों के बीच एक सकारात्मक संदेश दिया है। इसके अलावा, राज्य में गुरुओं और महापुरुषों के प्रकाश पर्वों और शहीदी दिवसों को राजकीय स्तर पर बेहद भव्यता के साथ मनाया जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सैनी का पंजाब के प्रमुख गुरुद्वारों में माथा टेकना, वहां के सिख संगठनों से सीधा संवाद करना और सामाजिक आयोजनों में बिना किसी तामझाम के शिरकत करना एक सोची-समझी रणनीति है। यह गतिविधियां भाजपा को उत्तर भारत में सिख समुदाय के साथ अपने रिश्तों को पुनर्जीवित करने का अवसर प्रदान कर रही हैं। बिना किसी शोर-शराबे के की जा रही यह ‘साइलेंट डिप्लोमेसी’ पंजाब की राजनीति में भाजपा के लिए बंद दरवाजों को खोलने का काम कर रही है।
किसान आंदोलन के बाद की चुनौती और ‘सैनी’ फैक्टर
भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए आंदोलन के बाद पंजाब के किसानों और विशेष रूप से सिख समुदाय में बनी अपनी छवि को सुधारना है। इस तनावपूर्ण पृष्ठभूमि में नायब सिंह सैनी एक आदर्श चेहरे के रूप में फिट बैठते हैं। सैनी स्वयं एक किसान परिवार से आते हैं और उनकी छवि एक सौम्य, कम बोलने वाले और जमीन से जुड़े नेता की है।
भाजपा नेतृत्व सैनी के माध्यम से यह संदेश देना चाहता है कि पार्टी जमीनी सरोकारों और किसानों की समस्याओं को समझती है। सैनी की कार्यशैली—जिसमें वे लोगों की बातों को धैर्य से सुनते हैं और सुलह का रास्ता निकालते हैं—सिख समुदाय के बीच उस भरोसे को फिर से कायम करने में मददगार साबित हो रही है जो आंदोलन के दौरान कम हो गया था। उनके नेतृत्व में हरियाणा सरकार द्वारा लिए गए फैसले यह दर्शाते हैं कि भाजपा केवल संवाद के पक्ष में ही नहीं है, बल्कि वह सम्मान और अधिकार देने के लिए भी प्रतिबद्ध है।
ननिहाल का नाता और पंजाब की राजनीतिक पूंजी
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी का पंजाब से केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि गहरा व्यक्तिगत नाता भी है। उनका ननिहाल पंजाब में है, जिसे भाजपा एक महत्वपूर्ण ‘राजनीतिक पूंजी’ के तौर पर देख रही है। किसी भी नेता के लिए सांस्कृतिक और पारिवारिक जुड़ाव लोगों के दिलों तक पहुंचने का सबसे छोटा रास्ता होता है। भाजपा इस ‘रिश्ते’ का उपयोग पंजाब में अपना मजबूत जनाधार खड़ा करने के लिए करना चाहती है।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि आगामी समय में पंजाब की सक्रिय राजनीति और वहां होने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा सैनी को एक ऐसे नेता के तौर पर पेश कर रही है जो ‘सुलह’ का चेहरा हैं। पंजाब में जब वे गुरुद्वारों में जाते हैं या पंजाबी में संवाद करते हैं, तो वे एक बाहरी राजनेता के बजाय परिवार के सदस्य की तरह प्रतीत होते हैं। यही कारण है कि उन्हें ‘सैनी सरदार’ की अनकही भूमिका में देखा जा रहा है।
इतिहास के नायकों को पुनर्जीवित करने का प्रयास
पूर्व सांसद तरलोचन सिंह जैसे दिग्गजों का मानना है कि मोदी और सैनी की सरकारें सिखों के लिए जो कदम उठा रही हैं, वे स्वागत योग्य हैं। उनका कहना है कि लंबे समय तक भारत के इतिहास में सिखों और गुरुओं के बलिदान की अनदेखी की गई थी, जिसे अब प्रधानमंत्री मोदी ने ‘वीर बाल दिवस’ और ‘प्रकाश पर्वों’ के माध्यम से राष्ट्रीय पहचान दी है। हरियाणा सरकार द्वारा पंजाब की सीमा से सटे इलाकों और राजधानी चंडीगढ़ के पास किए जा रहे ये आयोजन दिल्ली तक चर्चा का विषय बने हुए हैं।
विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री सैनी का बाकायदा पगड़ी पहनकर आना और श्री गुरु तेग बहादुर की शहादत से जुड़े प्रस्ताव को पेश करना उनकी उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसे वे केवल शब्दों तक सीमित नहीं रखना चाहते। यह सांस्कृतिक जुड़ाव भाजपा को पंजाब की जड़ों तक पहुंचने में मदद कर रहा है।
विवादित मुद्दों के बीच सद्भाव की नई राह
पंजाब और हरियाणा के बीच एसवाईएल (SYL) नहर के पानी का बंटवारा और चंडीगढ़ पर अधिकार जैसे कई मुद्दे दशकों से लंबित और विवादित हैं। इन मुद्दों पर अक्सर दोनों राज्यों की राजनीतिक इकाइयां, चाहे वे किसी भी दल की हों, आमने-सामने खड़ी रहती हैं। ऐसे में नायब सिंह सैनी द्वारा पंजाब के साथ सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा देने की कोशिशें एक साहसिक कदम मानी जा रही हैं।
हालांकि मुख्यमंत्री स्वयं इन प्रयासों को विशुद्ध राजनीतिक चश्मे से देखने से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि पंजाब गुरुओं की धरती है और हरियाणा-पंजाब का नाता सदियों पुराना है। गुरुओं को सम्मान देना और उनके बताए मार्ग पर चलना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि यदि सैनी का यह ‘सॉफ्ट टच’ सफल रहा, तो भाजपा पंजाब में एक ऐसी ताकत बनकर उभरेगी जो अब तक अकाली दल या अन्य क्षेत्रीय दलों की छाया में रही है।
भाजपा की यह समझदारी भरी रणनीति भविष्य में वोटों में बदलेगी या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन फिलहाल नायब सिंह सैनी ने हरियाणा की धरती से पंजाब के ‘मन’ को जीतने की जो शुरुआत की है, उसने उत्तर भारत की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है।