बांग्लादेश में उस्मान हादी की हत्या के बाद गहराता संकट: क्या पटरी से उतर जाएगी लोकतंत्र की बहाली?
ढाका/नई दिल्ली: दक्षिण एशियाई पड़ोसी देश बांग्लादेश इस समय अपने इतिहास के सबसे अस्थिर और हिंसक दौर से गुजर रहा है। जुलाई में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद उम्मीद थी कि अंतरिम सरकार के नेतृत्व में देश शांतिपूर्ण ढंग से लोकतंत्र की ओर बढ़ेगा, लेकिन छात्र नेता उस्मान हादी की हत्या और उसके बाद भड़की हिंसा की लपटों ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। ढाका से लेकर चटगांव और खुलना तक, विरोध प्रदर्शनों और राजनीतिक हत्याओं का जो सिलसिला शुरू हुआ है, उसने न केवल बांग्लादेश की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है, बल्कि भारत सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय के माथे पर भी चिंता की लकीरें खींच दी हैं।
उस्मान हादी की हत्या: एक चिंगारी जिसने पूरे देश को सुलगने पर मजबूर किया
घटनाक्रम की शुरुआत 12 दिसंबर को हुई, जब ‘इंकलाब मंच’ के संयोजक और प्रमुख छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी पर ढाका के बिजोयनगर इलाके में जानलेवा हमला हुआ। हादी उस समय ई-रिक्शा से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करने जा रहे थे। मोटरसाइकिल सवार नकाबपोश हमलावरों ने बेहद करीब से उनके सिर में गोली मार दी। गंभीर हालत में उन्हें ढाका के एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन स्थिति में सुधार न होने पर उन्हें बेहतर इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया। छह दिनों तक मौत से जूझने के बाद, 18 दिसंबर को सिंगापुर के अस्पताल में हादी ने दम तोड़ दिया।
उस्मान हादी केवल एक छात्र नेता नहीं थे, बल्कि वह शेख हसीना शासन के खिलाफ हुए विद्रोह के प्रमुख चेहरों में से एक थे। उनकी मौत की खबर जैसे ही बांग्लादेश पहुंची, देश भर में गुस्सा फूट पड़ा। इंकलाब मंच के समर्थकों और आम छात्रों ने सड़कों पर उतरकर न्याय की मांग की, जिसने जल्द ही हिंसक रूप ले लिया। जांच अधिकारियों ने इस हत्या का मुख्य संदिग्ध ‘स्टूडेंट लीग’ (आवामी लीग की छात्र इकाई) के पूर्व नेता फैसल करीम मसूद को बताया है। पुलिस ने मसूद पर 50 लाख टका का इनाम घोषित किया है और उसके परिवार के कई सदस्यों को हिरासत में लिया है, लेकिन मुख्य आरोपी अब भी कानून की पकड़ से बाहर है।
अफवाहों का बाजार और भारत विरोधी भावनाओं का उभार
हादी की हत्या के बाद स्थिति तब और अधिक संवेदनशील हो गई जब बांग्लादेशी मीडिया और सोशल मीडिया पर यह अपुष्ट खबरें फैलने लगीं कि हमलावर सीमा पार कर भारत भाग गए हैं। इन अफवाहों ने जलती आग में घी का काम किया। प्रदर्शनकारियों का रुख भारत विरोधी हो गया और ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग सहित चटगांव, राजशाही, खुलना और सिलहट में स्थित सहायक उच्चायोगों को निशाना बनाया जाने लगा। कई जगहों पर पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं और भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर खतरे पैदा हो गए।
हालांकि, बाद में बांग्लादेशी पुलिस ने स्पष्ट किया कि उनके पास ऐसा कोई इनपुट नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि आरोपी देश छोड़कर भागे हैं, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था। भारत सरकार ने इस स्थिति पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और दिल्ली में बांग्लादेशी दूत को तलब कर भारतीय मिशनों और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की। भारत ने साफ तौर पर कहा कि भ्रामक रिपोर्ट्स और कट्टरपंथी तत्वों द्वारा गढ़े जा रहे नैरेटिव दोनों देशों के संबंधों के लिए घातक हैं।
राजनीतिक अस्थिरता का नया अध्याय: एनसीपी नेता पर हमला
अभी हादी की मौत का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि सोमवार को एक और सनसनीखेज वारदात ने सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी। बांग्लादेश की नई राजनीतिक पार्टी ‘नेशनल सिटीजन पार्टी’ (एनसीपी) के नेता मोहम्मद मुतालिब सिकदर पर खुलना में जानलेवा हमला हुआ। सिकदर को सिर में गोली मारी गई और उनकी हालत अत्यंत नाजुक बनी हुई है। छात्र नेताओं और नए उभरते राजनीतिक चेहरों पर लगातार हो रहे इन हमलों ने यह साफ कर दिया है कि बांग्लादेश में एक ऐसा वर्ग सक्रिय है जो नहीं चाहता कि देश में चुनावी प्रक्रिया शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो। इन हमलों को विपक्षी उम्मीदवारों और नए राजनीतिक दलों में डर पैदा करने की एक सुनियोजित साजिश के तौर पर देखा जा रहा है।
फरवरी में होने वाले आम चुनावों पर मंडराते काले बादल
बांग्लादेश में फरवरी 2026 में राष्ट्रीय चुनाव होने प्रस्तावित हैं। दिलचस्प बात यह है कि उस्मान हादी की हत्या से ठीक एक दिन पहले ही इन चुनावों की तारीखों का संकेत दिया गया था। अब इस हिंसा ने चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता और समयबद्धता पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने इन घटनाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने की साजिश करार दिया है।
सबसे बड़ी आशंका यह है कि अगर कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो अंतरिम सरकार चुनावों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर सकती है। इसके अलावा, प्रमुख राजनीतिक हस्तियों की हत्या से चुनावी मैदान में प्रतिस्पर्धा कम हो रही है। उस्मान हादी खुद ढाका-8 निर्वाचन क्षेत्र से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़ने वाले थे। उनकी मृत्यु ने एक मजबूत आवाज को दबा दिया है। वहीं, आवामी लीग को चुनाव लड़ने की अनुमति न मिलना और अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा (जैसे चटगांव में दीपू दास की लिंचिंग) ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के मन में स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान को लेकर संदेह पैदा कर दिया है।
भारत की गहरी चिंता और क्षेत्रीय सुरक्षा के मायने
भारत के लिए बांग्लादेश केवल एक पड़ोसी नहीं, बल्कि सामरिक और सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मित्र देश है। दिल्ली की सबसे बड़ी चिंता यह है कि बांग्लादेश की अस्थिरता का फायदा उठाकर वहां कट्टरपंथी तत्व, विशेषकर जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन मजबूत हो रहे हैं। विश्वविद्यालयों के छात्र संघ चुनावों में इन संगठनों का उदय भारत के लिए एक ‘रेड फ्लैग’ है।
इसके अतिरिक्त, भारत में भी राजनीतिक संवेदनशीलता अधिक है। अगले साल अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। बांग्लादेश में होने वाली किसी भी बड़ी हिंसा या सांप्रदायिक तनाव का सीधा असर सीमा पार पश्चिम बंगाल की राजनीति और सामाजिक ताने-बाने पर पड़ सकता है। भारतीय अधिकारी इस बात को लेकर सतर्क हैं कि बांग्लादेश में गढ़ा जा रहा ‘भारत विरोधी नैरेटिव’ कहीं सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा संकट न पैदा कर दे। शेख हसीना का भारत में होना और बांग्लादेश द्वारा उनके प्रत्यर्पण की बार-बार मांग करना भी दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव को बढ़ा रहा है।