• December 25, 2025

कराहते पहाड़: शिमला के कुफरी में ‘कुफर’ सूखा और बर्फ गायब, संकट में पर्यटन और पर्यावरण

हिमाचल प्रदेश :  हिमाचल प्रदेश की वादियों में जलवायु परिवर्तन की आहट अब एक डरावनी हकीकत बन चुकी है। कभी सफेद मखमली बर्फ की चादर ओढ़े रहने वाला शिमला का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कुफरी आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। “पहाड़ों की रानी” का यह गौरवशाली हिस्सा अब अपनी पहचान खोता जा रहा है। जिन ढलानों पर कभी देश-विदेश के पर्यटक स्कीइंग के लिए उमड़ते थे, वहां अब केवल धूल उड़ रही है और घोड़ों की लीद बिखरी पड़ी है। अमर उजाला की टीम ने जब रविवार को धरातल पर उतरकर कुफरी के हालातों का जायजा लिया, तो जलवायु परिवर्तन के भयावह प्रभाव सामने आए, जो न केवल पर्यावरण बल्कि हजारों परिवारों की आजीविका पर भी सीधा प्रहार कर रहे हैं।

अस्तित्व खोता ‘कुफर’ और सूखी मछलियां

कुफरी का नाम जिस ‘कुफर’ (स्थानीय भाषा में तालाब) के नाम पर पड़ा था, वह आज पूरी तरह सूख चुका है। यह तालाब कभी इस क्षेत्र की धड़कन हुआ करता था, जिसमें मछलियां तैरती थीं और पर्यटक इसके किनारे खड़े होकर अपनी खूबसूरत यादें कैमरों में कैद करते थे। आज वह तालाब केवल सूखे गड्ढे के रूप में रह गया है। तालाब का सूखना इस बात का प्रमाण है कि इस पहाड़ी क्षेत्र में भूमिगत जल स्तर और नमी का संतुलन पूरी तरह बिगड़ चुका है। जलस्रोतों का खत्म होना केवल पर्यटन के लिए ही नहीं, बल्कि यहां की जैव विविधता के लिए भी एक बड़ा खतरा बन गया है।

बदलता मौसम चक्र: अक्टूबर की बर्फ अब जनवरी में भी नदारद

एक समय था जब कुफरी में अक्टूबर के महीने से ही बर्फबारी का दौर शुरू हो जाता था और पूरी सर्दियां यह इलाका पर्यटकों से गुलजार रहता था। लेकिन अब मौसम का मिजाज ऐसा बदला है कि जनवरी के अंत तक बर्फ का इंतजार करना पड़ता है। इस वर्ष क्रिसमस और नए साल से पहले भी बर्फ न होने के कारण सैलानियों को भारी निराशा हाथ लग रही है। हरियाणा के सोनीपत से आए पर्यटक आशीष और लवली का कहना है कि वे बर्फ की उम्मीद लेकर आए थे, लेकिन यहां की स्थिति देखकर हैरान हैं। उनका कहना है कि कुफरी से ज्यादा ठंड और कोहरा तो इस समय सोनीपत में है। बर्फबारी के अभाव में कुफरी का पर्यटन सीजन अब सिमटकर महज एक महीने का रह गया है।

पर्यटन कारोबार में भारी गिरावट और बदलता स्वरूप

आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच वर्षों के भीतर कुफरी आने वाले पर्यटकों की संख्या में 70 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई है। अब केवल 30 फीसदी पर्यटक ही यहां का रुख कर रहे हैं। हिमालयन रेंज, जो पहले साल के 12 महीने बर्फ से सफेद नजर आती थी, अब पिछले तीन सालों से काली और पथरीली दिखाई दे रही है। बर्फ की कमी के कारण एडवेंचर एक्टिविटी का स्वरूप भी पूरी तरह बदल गया है। अंग्रेजों के जमाने में 1891 में खोजे गए इस स्थल पर 1986 तक विंटर स्पोर्ट्स क्लब सक्रिय था, जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्कीइंग होती थी। अब न वह क्लब बचा है और न ही स्कीइंग। इसकी जगह अब जिप लाइन और मंकी जंपिंग जैसी गतिविधियों ने ले ली है, जो किसी भी मैदानी इलाके के पार्क में उपलब्ध हो सकती हैं।

आजीविका पर संकट: होम स्टे बने स्कूल

पर्यटन में आई इस गिरावट ने स्थानीय कारोबारियों की कमर तोड़ दी है। पर्यटन निगम से सेवानिवृत्त कुलदीप वालिया की कहानी इसका बड़ा उदाहरण है। उन्होंने पर्यटकों के लिए एक होम स्टे खोला था, लेकिन जब टूरिस्ट ही नहीं आए तो उन्हें मजबूरन उसे बंद करना पड़ा। आज उस भवन में एक स्कूल चल रहा है। इसी तरह होटल ‘कुफरी आश्रय’ के संचालक राकेश मेहता बताते हैं कि 2019 के बाद से यहां अच्छी बर्फबारी नहीं हुई है, जिससे होटल उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है। कुफरी-श्वाह पंचायत के उप प्रधान शशांक अत्री के अनुसार, जलवायु परिवर्तन का असर आसपास की 8 से 9 पंचायतों के हजारों लोगों पर पड़ रहा है, जिनका जीवन पूरी तरह पर्यटन और कृषि पर निर्भर था।

घोड़ों की लीद और प्रदूषण का विवाद

कुफरी की ढलानों पर स्कीइंग की जगह अब घोड़ों की आवाजाही अधिक हो गई है, जिससे चारों तरफ लीद और गंदगी का अंबार लगा रहता है। हालांकि, इसे लेकर स्थानीय लोगों में मतभेद हैं। देशू वैली अश्वपालक संघ के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह का तर्क है कि प्रदूषण के लिए केवल घोड़ों को जिम्मेदार ठहराना अनुचित है। वे कहते हैं कि घुड़सवारी से क्षेत्र के 1000 घरों का चूल्हा जलता है। समस्या यह है कि बर्फ न होने के कारण घोड़ों का उपयोग एकमात्र विकल्प बचा है, लेकिन इससे होने वाली गंदगी पर्यटन के अनुभव को खराब कर रही है।

घटता देवदार का आवरण और प्रशासनिक कार्ययोजना

कुफरी की बर्बादी का एक बड़ा कारण देवदार के पेड़ों के आवरण में निरंतर आ रही कमी भी है। स्थानीय लोगों का मानना है कि जंगलों के कटने से तापमान बढ़ा है और बर्फबारी कम हुई है। इस गंभीर स्थिति पर उपायुक्त अनुपम कश्यप का कहना है कि प्रशासन पर्यावरण और पर्यटन के बीच संतुलन बनाने के लिए एक ठोस कार्ययोजना तैयार कर रहा है। इसमें जलस्रोतों का संरक्षण, वन क्षेत्र का विस्तार और घोड़ों की संख्या को नियंत्रित करना शामिल है। साथ ही, लोगों को वैकल्पिक आजीविका के साधनों से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं।

सरकार का दावा और ऐतिहासिक महत्व

हिमाचल के पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह का कहना है कि सरकार पूरे प्रदेश में ‘ऑल वेदर टूरिज्म’ (हर मौसम का पर्यटन) विकसित करने पर काम कर रही है। सरकार का ध्यान वन आवरण बढ़ाने और पर्यावरण संरक्षण पर है ताकि कुफरी जैसे स्थलों को बचाया जा सके। कुफरी का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। 1891 में अंग्रेजों द्वारा खोजे गए इस स्थान की खूबसूरती ऐसी थी कि शम्मी कपूर की मशहूर फिल्म ‘जंगली’ का गाना ‘चाहे कोई मुझे जंगली कहे’ यहीं फिल्माया गया था, क्योंकि उस समय कश्मीर में भी बर्फ कम पड़ गई थी। लेकिन आज का कुफरी उस फिल्मी खूबसूरती से कोसों दूर एक बंजर और उपेक्षित पहाड़ की तरह नजर आता है।

कुफरी की यह स्थिति एक चेतावनी है कि यदि आज हमने अपनी प्रकृति और जलस्रोतों को नहीं बचाया, तो भविष्य में ये पहाड़ केवल इतिहास की किताबों और पुरानी फिल्मों के दृश्यों तक ही सीमित रह जाएंगे।

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