• December 25, 2025

बांग्लादेश में कोहराम: उस्मान हादी की मौत के बाद ढाका में हिंसा की आग, भारत विरोधी प्रदर्शनों ने बढ़ाई चिंता

ढाका/नई दिल्ली: बांग्लादेश एक बार फिर हिंसा और अराजकता की आग में झुलस रहा है। ‘इंकलाब मंच’ के मुखर युवा नेता शरीफ उस्मान हादी की संदिग्ध और दुखद मृत्यु ने पूरे देश, विशेषकर राजधानी ढाका को रणक्षेत्र में बदल दिया है। सड़कों पर उतरे हजारों युवाओं का गुस्सा न केवल प्रशासन, बल्कि मीडिया संस्थानों और पड़ोसी देश भारत के खिलाफ भी फूट रहा है। डॉ. मोहम्मद युनूस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के लिए यह अब तक की सबसे बड़ी कानून-व्यवस्था की चुनौती बनकर उभरी है।

उस्मान हादी की मौत: एक चिंगारी जिसने ढाका को सुलगाया

शरीफ उस्मान हादी, जो बांग्लादेश के युवाओं के बीच एक उभरते हुए और बेबाक नेता के रूप में जाने जाते थे, उनकी मौत की खबर ने देश में सनसनी फैला दी। हादी ‘इंकलाब मंच’ के प्रवक्ता थे और पिछले कुछ समय से देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।

मुख्य न्यायाधीश का शोक संदेश: बांग्लादेश के मुख्य न्यायाधीश सैयद रफीक अहमद ने हादी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने अपने संदेश में कहा कि हादी की मृत्यु से देश ने एक “साहसी और बेबाक आवाज” खो दी है। न्यायपालिका प्रमुख की ओर से आया यह बयान इस बात का संकेत है कि हादी का कद छात्र राजनीति में कितना बड़ा हो चुका था।

राजकीय शोक की घोषणा: अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ. मोहम्मद युनूस ने हादी को श्रद्धांजलि देते हुए शनिवार को एक दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है। युनूस ने हादी को “फासीवादी शक्तियों का दुश्मन” करार देते हुए कहा कि उनकी शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। हालांकि, सरकार की इन अपीलों का प्रदर्शनकारियों पर कोई खास असर नहीं दिख रहा है।

मीडिया संस्थानों पर हमला: ‘डेली स्टार’ और ‘प्रथम आलो’ निशाने पर

हिंसा का सबसे भयावह रूप ढाका के करवान बाजार इलाके में देखने को मिला। प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश के दो सबसे प्रतिष्ठित अखबारों—द डेली स्टार (The Daily Star) और प्रथम आलो (Prothom Alo)—को निशाना बनाया।

ऑपरेशन रेस्क्यू: 25 पत्रकारों की जान बची

शुक्रवार रात करीब 12 बजे उग्र भीड़ ने डेली स्टार के दफ्तर को घेर लिया। भीड़ के हिंसक होने के बाद कार्यालय के भीतर करीब 25 पत्रकार और कर्मचारी फंस गए। स्थिति इतनी गंभीर थी कि सेना और पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। करीब चार घंटे की मशक्कत के बाद इन पत्रकारों को सुरक्षित बाहर निकाला जा सका।

भारत समर्थक होने का आरोप

प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि ये दोनों मीडिया संस्थान “भारत समर्थक” एजेंडा चलाते हैं और देश की वर्तमान क्रांति के खिलाफ हैं। ‘प्रथम आलो’ के दफ्तर में तोड़फोड़ के बाद आगजनी की भी खबरें आईं। मीडिया पर यह हमला बांग्लादेश में प्रेस की स्वतंत्रता और सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।

शाहबाग में छात्रों का हुजूम और ‘जुलाई 36’ का आह्वान

ढाका का ऐतिहासिक शाहबाग चौराहा एक बार फिर प्रदर्शनों का केंद्र बन गया है। ढाका यूनिवर्सिटी सेंट्रल स्टूडेंट्स यूनियन (DUCSU) और अन्य छात्र संगठनों ने ‘राजू मेमोरियल मूर्ति’ के पास डेरा डाल दिया है।

  • नारेबाजी: सड़कों पर “तुम कौन, हम कौन- हादी, हादी” के नारे गूंज रहे हैं।

  • मांग: प्रदर्शनकारियों की स्पष्ट मांग है कि हादी की मौत की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को तत्काल फांसी दी जाए।

  • सुरक्षा घेरा: पुलिस ने शाहबाग की ओर जाने वाले रास्तों पर कंक्रीट के बैरिकेड्स लगा दिए हैं। हालांकि, प्रशासन कोशिश कर रहा है कि एम्बुलेंस और आवश्यक सेवाओं के लिए रास्ता खुला रहे।

भारत विरोधी प्रदर्शन: राजशाही और खुलना में तनाव

हादी की मौत के बाद बांग्लादेश में एक नया और चिंताजनक मोड़ ‘भारत विरोध’ के रूप में सामने आया है। देश के विभिन्न हिस्सों में भारतीय उच्चायोग और मिशनों को निशाना बनाने की कोशिश की गई है।

राजशाही में झड़प

राजशाही में ‘भारतीय आधिपत्य विरोधी जुलाई 36 मंच’ के बैनर तले सैकड़ों लोग सड़कों पर उतरे। भीड़ ने भारतीय सहायक उच्चायोग की ओर बढ़ने की कोशिश की। दंगा नियंत्रण पुलिस (RPC) ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए लाठीचार्ज और बैरिकेडिंग का सहारा लिया। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में प्रदर्शनकारियों को भारत के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगाते देखा जा सकता है।

खुलना में सेना का मार्च

खुलना में स्थिति को संभालने के लिए पुलिस के साथ-साथ सेना और नौसेना के जवानों को तैनात करना पड़ा। यहाँ ‘यूनिटी अगेंस्ट इंडियन हेजेमनी’ समूह ने मार्च निकाला। खुलना के डिप्टी पुलिस कमिश्नर ताजुल इस्लाम ने पुष्टि की कि सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के कारण प्रदर्शनकारी भारतीय मिशन तक नहीं पहुंच सके।

युनूस सरकार की रणनीति और प्रशासनिक चुनौतियां

डॉ. मोहम्मद युनूस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार इस समय ‘दोहरी तलवार’ पर चल रही है। एक तरफ उन्हें उन छात्रों को संतुष्ट करना है जिन्होंने उन्हें सत्ता तक पहुँचाया, और दूसरी तरफ बढ़ती अराजकता को रोकना है।

प्रशासनिक सख्तियां:

  1. हाई अलर्ट: ढाका सहित सभी बड़े शहरों में अर्धसैनिक बलों (BGB) की तैनाती बढ़ा दी गई है।

  2. इंटरनेट पर निगरानी: सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट और अफवाहों को रोकने के लिए साइबर सेल को एक्टिव किया गया है।

  3. राजनयिक सुरक्षा: भारतीय दूतावास और अन्य विदेशी मिशनों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त सुरक्षा घेरा तैयार किया गया है।

राजनीतिक संदेश: डॉ. युनूस ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि “डर और हिंसा के जरिए लोकतांत्रिक प्रगति को नहीं रोका जा सकता।” उनका इशारा उन ‘फासीवादी ताकतों’ की ओर था जिन्हें सरकार इस अस्थिरता का जिम्मेदार मान रही है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भविष्य की राह

अंतरराष्ट्रीय मीडिया (BBC, Al Jazeera, Reuters) में बांग्लादेश की जलती सड़कों और मीडिया संस्थानों पर हमलों की तस्वीरें प्रमुखता से दिखाई जा रही हैं। मानवाधिकार संगठनों ने पत्रकारों पर हुए हमलों की निंदा की है।

विशेषज्ञों का क्या कहना है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उस्मान हादी की मौत केवल एक घटना नहीं है, बल्कि यह बांग्लादेश के भीतर गहरे असंतोष का परिणाम है। यदि अंतरिम सरकार जल्द ही स्थिति पर नियंत्रण नहीं पाती और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित नहीं करती, तो यह विरोध प्रदर्शन एक बड़े नागरिक विद्रोह का रूप ले सकता है।

बांग्लादेश इस समय एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। एक तरफ लोकतंत्र की बहाली की उम्मीद है, तो दूसरी तरफ सड़कों पर हिंसा और पड़ोसी देश के खिलाफ बढ़ता आक्रोश। उस्मान हादी की मौत ने जो घाव दिए हैं, उन्हें भरने के लिए केवल राजकीय शोक काफी नहीं होगा; प्रशासन को न्याय और सुरक्षा का भरोसा दिलाना होगा।

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