बिहार में सियासी उबाल: पूर्व CM राबड़ी देवी से 20 साल पुराना सरकारी आवास क्यों खाली कराया जा रहा है?
बिहार (Bihar) की राजनीति में एक बार फिर बड़ा घमासान मचा हुआ है। इसकी वजह है पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी (Rabri Devi) को पटना के प्रतिष्ठित 10 सर्कुलर रोड स्थित सरकारी आवास को खाली करने के लिए जारी किया गया नोटिस। दो दशकों से लालू यादव (Lalu Yadav) परिवार का स्थायी ठिकाना रहे इस बंगले को अचानक खाली कराने की कार्रवाई ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। 25 नवंबर को भवन निर्माण विभाग द्वारा जारी इस नोटिस के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह महज नियमों का पालन है या फिर हालिया बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बीजेपी (BJP) के सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद बदले राजनीतिक समीकरणों का दबाव? सियासी हलकों में यह चर्चा तेज़ है कि क्या यह फैसला किसी पुराने कानूनी मामले से जुड़ा है या फिर पूरी तरह से राजनीतिक प्रतिशोध का परिणाम है।
20 वर्षों से लालू परिवार का केंद्र रहा 10 सर्कुलर रोड आवास
पटना का 10 सर्कुलर रोड स्थित यह आवास बिहार की राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। 2005 में जब लालू यादव और राबड़ी देवी का शासन समाप्त हुआ और सत्ता नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को मिली, तब राबड़ी देवी को पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में यह बंगला आवंटित किया गया था। इससे पहले, वह मुख्यमंत्री आवास (एक अणे मार्ग) में निवास करती थीं। लगभग 20 वर्षों तक यह आवास लालू परिवार का स्थायी निवास बना रहा, भले ही राबड़ी देवी सत्ता में रही हों या विपक्ष में। इतने लंबे समय तक इस आवास का बने रहना इसलिए भी असामान्य माना जाता है क्योंकि आमतौर पर पूर्व मुख्यमंत्रियों को इतने लंबे समय तक सरकारी आवास का अधिकार नहीं मिलता है। हालाँकि, 2019 में पटना हाई कोर्ट के एक आदेश के बावजूद, राबड़ी देवी इस आवास को बचाए रखने में सफल रहीं क्योंकि उस समय वह विधान परिषद में विपक्ष की नेता (Leader of Opposition in Legislative Council) थीं।
सत्ता परिवर्तन का असर? क्यों उठा आवास खाली कराने का कदम
इस कार्रवाई पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि यह कदम ठीक 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद उठाया गया है, जिसमें बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सत्ता में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव ने प्रशासनिक फैसलों की दिशा बदली है, और 10 सर्कुलर रोड से राबड़ी देवी को बेदखल करना उसी का एक उदाहरण हो सकता है। लालू परिवार के समर्थक इसे स्पष्ट रूप से राजनीतिक दबाव और प्रतिशोध की कार्रवाई बता रहे हैं। वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि नीतीश कुमार ने 20 वर्षों के शासनकाल में कभी इस बंगले पर कोई सवाल नहीं उठाया। दूसरी ओर, सत्तापक्ष का कहना है कि यह केवल कानूनी नियमों और प्रक्रियाओं का पालन है। राबड़ी देवी को वैकल्पिक रूप से 39 हार्डिंग रोड पर नया आवास आवंटित कर दिया गया है, लेकिन 10 सर्कुलर रोड को खाली कराने का यह निर्णय बिहार की सियासत में भूचाल ला रहा है।
तेजस्वी यादव का पुराना केस और कानूनी आधार
राबड़ी देवी से आवास खाली कराने की वर्तमान कार्रवाई को समझने के लिए, उनके बेटे तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) से जुड़ा 2017 का मामला बेहद महत्वपूर्ण है। 2015 में उप-मुख्यमंत्री (Deputy CM) रहते हुए तेजस्वी को 5 देशरत्न मार्ग आवास मिला था। 2017 में सत्ता परिवर्तन के बाद उन्हें यह खाली करने का आदेश दिया गया, जिसे तेजस्वी ने पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) में चुनौती दी। सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि बिहार सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगला, सुरक्षा और स्टाफ देने के लिए विशेष नियम बनाए थे। हाई कोर्ट ने 19 फरवरी 2019 को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए इन सभी सुविधाओं को वापस लेने का आदेश दिया। उस समय राबड़ी देवी विपक्ष की नेता होने के कारण इस आदेश से बची रहीं, लेकिन वर्तमान में उनकी यह पदवी समाप्त होने के बाद, हाई कोर्ट के उसी पुराने आदेश के आधार पर उन्हें भी बंगला खाली करना अनिवार्य हो गया है, जिससे इस कार्रवाई का कानूनी आधार मजबूत होता है।
बीजेपी का तंज और मौजूदा सियासी घमासान
25 नवंबर को नोटिस जारी होने के तुरंत बाद सियासी बयानबाजी तेज हो गई है। बीजेपी (BJP) प्रवक्ता नीरज कुमार (Neeraj Kumar) ने सोशल मीडिया पर तीखा हमला बोलते हुए तंज कसा कि लालू परिवार को बंगला खाली करते समय “सरकारी संपत्ति की चोरी नहीं करनी चाहिए।” यह टिप्पणी सीधे तौर पर लालू परिवार पर लगे पुराने आरोपों की ओर इशारा करती है और इससे बिहार का राजनीतिक तापमान और बढ़ गया है। एक तरफ राबड़ी देवी को 39 हार्डिंग रोड पर नया आवास मिल चुका है और प्रशासनिक प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, वहीं आरजेडी समर्थक इस कदम को बदले की राजनीति करार दे रहे हैं। सरकारी विभागों का कहना है कि यह केवल कानूनी प्रावधानों का कार्यान्वयन है। अब देखना यह होगा कि क्या यह घटना बिहार की राजनीति में आने वाले दिनों में कोई बड़ा ध्रुवीकरण करेगी या यह मामला केवल एक प्रशासनिक औपचारिकता तक ही सीमित रहेगा।