भारत की आत्मा में रच-बस गया ये गीत, पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरो दिया
नई दिल्ली, 7 नवंबर 2025 — भारत के स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन रहा ‘वंदे मातरम्’ आज भी हर भारतीय के मन में उसी जोश के साथ गूंजता है, जैसा 150 वर्ष पहले हुआ था। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की लेखनी से जन्मा यह गीत सिर्फ राष्ट्रभक्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, एकता और मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना का जीवंत उदाहरण है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस गीत की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि “वंदे मातरम् हमें विश्वास दिलाता है कि भारत के लिए कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है,” तो मानो यह गीत फिर से भारत की आत्मा को झकझोर गया। लेकिन इस गीत की यात्रा केवल साहित्य से राष्ट्रगीत तक की नहीं रही—इसके पीछे है संघर्ष, बलिदान और अदम्य जज़्बे की कहानी, जिसे जानना हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।
‘वंदे मातरम्’: गीत से आंदोलन तक का सफर
जब ‘बंग दर्शन’ पत्रिका में वंदे मातरम् पहली बार प्रकाशित हुआ, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह गीत स्वतंत्रता संग्राम की पहचान बन जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि यह केवल एक रचना नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की पुकार था—वह स्वर जिसने हर क्रांतिकारी को प्रेरित किया। आनंद मठ के लेखक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने इस गीत के माध्यम से गुलामी के अंधकार में आशा की ज्योति प्रज्वलित की। मोदी ने कहा, “जब हम वंदे मातरम् का सामूहिक गान करते हैं, तो शब्दों से अधिक भाव बोलते हैं—वह एकता का एहसास है जो 140 करोड़ भारतीयों को जोड़ता है।” इस अवसर पर जारी विशेष डाक टिकट और स्मारक सिक्का इस गीत के अमर महत्व की गवाही देते हैं। वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि राष्ट्र के स्वप्न और संघर्ष का प्रतीक है।
विभाजन की साजिश और गीत को तोड़ने की कोशिश
इतिहास के एक दर्दनाक अध्याय का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि 1937 में वंदे मातरम् के कुछ पदों को अलग कर दिया गया। यह केवल एक गीत का नहीं, बल्कि राष्ट्र की एकता के भाव का विभाजन था। मोदी ने सवाल उठाया, “जिस गीत ने गुलामी के अंधकार में प्रकाश जलाया, उसे कमजोर करने की कोशिश क्यों की गई?” उन्होंने कहा कि वही सोच आगे चलकर भारत के बंटवारे की नींव बनी। यह गीत हर क्रांतिकारी की जुबान पर था—फांसी के तख्त तक इसकी गूंज सुनाई दी। 1905 में बंगाल विभाजन के समय वंदे मातरम् नारे ने अंग्रेजों की साजिश को चुनौती दी। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के कोलकाता अधिवेशन में जब यह गीत गूंजा, तो पूरा राष्ट्र एक स्वर में उठ खड़ा हुआ। यही वह क्षण था जब वंदे मातरम् भारत की आत्मा बन गया और हर भारतीय के हृदय में अमर हो गया।
भारत की सदी और वंदे मातरम् की प्रेरणा
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अब यह सदी भारत की सदी बननी चाहिए, क्योंकि हमारे पास युवाशक्ति, विश्वास और एकजुटता है। “आज 140 करोड़ भारतीय मां भारती की संतान हैं—280 करोड़ भुजाएं, जिनमें 60% नौजवान हैं। यही भारत की असली ताकत है,” उन्होंने कहा। आनंद मठ के उस प्रसंग का उल्लेख करते हुए जहां भवानंद ‘वंदे मातरम्’ गाता है, मोदी ने बताया कि जब एक पात्र पूछता है “तुम अकेले क्या कर पाओगे?”, तो उत्तर आता है—“जिस माता के इतने पुत्र हों, वह अबला कैसे हो सकती है?” यह संवाद आज भी उतना ही प्रासंगिक है। वंदे मातरम् सिर्फ आज़ादी का गीत नहीं, बल्कि आत्मविश्वास का मंत्र है, जो हर भारतीय को याद दिलाता है कि भारत अबला नहीं—बल्कि विश्व की सबसे बड़ी उभरती शक्ति है। यही है वंदे मातरम् की अमर प्रेरणा।