भारत-ताइवान का मेगा डील: रेयर अर्थ मिनरल्स पर चीन की एकाधिकार की नींव हिल जाएगी, ड्रैगन की दादागिरी का अंत नजदीक?
नई दिल्ली, 4 नवंबर 2025: वैश्विक तकनीक की दुनिया में एक नया ‘खजाना’ उभर रहा है, जो तेल-सोने से भी ज्यादा कीमती है। दुर्लभ मृदा तत्वों – रेयर अर्थ मिनरल्स – पर चीन का कब्जा अब टूटने की कगार पर है। भारत और ताइवान के बीच हालिया प्रस्ताव ने बीजिंग को बैकफुट पर धकेल दिया है। क्या यह साझेदारी सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि सामरिक गठबंधन का नया दौर है?
ताइवान एक्सपो में बड़ा धमाका: भारत के खनिजों पर ताइवान की नजर
नई दिल्ली में सितंबर 2025 में आयोजित ताइवान एक्सपो के दौरान ताइवान ने भारत के सामने एक रणनीतिक प्रस्ताव रखा, जिसमें दुर्लभ मृदा तत्वों की आपूर्ति के बदले सेमीकंडक्टर तकनीक और निवेश का वादा किया गया। ताइवान एक्सटर्नल ट्रेड डेवलपमेंट काउंसिल (TAITRA) के डिप्टी डायरेक्टर केवेन चेंग ने ANI को बताया कि ताइवान के इलेक्ट्रिक वाहन, रक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों को इन खनिजों की सख्त जरूरत है। भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा भंडार – करीब 6.9 मिलियन मीट्रिक टन – होने से यह साझेदारी दोनों के लिए फायदेमंद है। चेंग ने कहा, “हमारी तकनीक और भारत के संसाधन मिलकर वैश्विक सप्लाई चेन को मजबूत करेंगे।” यह प्रस्ताव चीन के निर्यात प्रतिबंधों के बीच आया, जो ताइवान को वैकल्पिक स्रोत की तलाश में मजबूर कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत की ‘मेक इन इंडिया’ को बल मिलेगा और ताइवान अपनी 60% सेमीकंडक्टर उत्पादन क्षमता को सुरक्षित रख सकेगा। एक्सपो ने ICT, स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स में पार्टनरशिप को बढ़ावा दिया, जो टैरिफ चुनौतियों के बावजूद सब्सिडी और सहयोग से संभव हुआ। यह कदम भारत को खनन और प्रोसेसिंग में निवेश आकर्षित करेगा, जहां अभी क्षमता का पूर्ण दोहन नहीं हुआ।
चीन की नई पाबंदियां: रेयर अर्थ पर वैश्विक ब्लैकमेल की चाल
चीन ने दुर्लभ मृदा तत्वों पर अपना एकाधिकार और कस लिया है, जो दुनिया के 70% खनन और 90% प्रसंस्करण पर उसका कंट्रोल दर्शाता है। अक्टूबर 2025 में मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स ने पांच नए तत्वों – होल्मियम, एर्बियम, थूलियम, यूरोपियम और इटरबियम – पर निर्यात नियंत्रण लगाए, जो 8 नवंबर से लागू होंगे। अप्रैल 2025 के सात तत्वों (समैरियम, गैडोलिनियम आदि) के बाद यह दूसरा चरण है, जबकि विदेशी उत्पादों में चीनी खनिजों का 0.1% इस्तेमाल पर भी लाइसेंस जरूरी होगा, जो 1 दिसंबर से प्रभावी। चीनी अधिकारियों ने इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा” बताया, लेकिन विशेषज्ञ इसे भू-राजनीतिक हथियार मानते हैं। ये खनिज स्मार्टफोन, EV बैटरी, रॉकेट, मिसाइल, सोलर पैनल और चिप्स के लिए जरूरी हैं। प्रतिबंधों से अमेरिका ने 100% टैरिफ की धमकी दी, जबकि भारत की रिलायंस जैसी कंपनियां स्टॉक जमा कर रही हैं। सीएसआईएस रिपोर्ट के मुताबिक, यह रक्षा सप्लाई चेन को खतरे में डालता है। चीन का कदम ट्रंप-शी वार्ता से पहले आया, जो वैश्विक तनाव बढ़ा रहा है।
रणनीतिक साझा मोर्चा: भारत-ताइवान से चीन का सपना चूर, भविष्य की दिशा
भारत और ताइवान के बीच साझेदारी चीन के दोनों दुश्मनों को एकजुट कर रही है – भारत की 3,500 किमी संवेदनशील सीमा और ताइवान की आक्रमण धमकियां साझा खतरे हैं। ताइवान, जो चीनी आयात पर 2.49% निर्भर है, भारत से स्थिर सप्लाई चाहता है ताकि सेमीकंडक्टर उद्योग सुरक्षित रहे। पावरचिप (PSMC) और टाटा ग्रुप अगले साल भारत में चिप उत्पादन शुरू करेंगे, जबकि ताइवान खनन में निवेश करेगा। भारत की नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन 2025 और 8.52 मिलियन टन भंडार योजना से दो महीने का रणनीतिक स्टॉक बनेगा। मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप (MSP), IPEF और iCET जैसे प्लेटफॉर्म्स सहयोग बढ़ाएंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे चीन की मोनोपॉली टूटेगी, भारत EV, रक्षा और हाई-टेक में वैश्विक सप्लायर बनेगा। ताइवान को तकनीकी हब के रूप में फायदा, जबकि भारत को पूंजी और अनुभव। यह गठबंधन दक्षिण एशिया-इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा का नया समीकरण रचेगा, जहां रेयर अर्थ अब हथियार से ज्यादा शांति का स्रोत बनेगा।