चीन सीमा पर भारत की नई रणनीति: ‘पूर्वी प्रचंड प्रहार’ से थर्रा सकता है ड्रैगन, तीनों सेनाओं का धमाकेदार युद्धाभ्यास
नई दिल्ली, 4 नवंबर 2025: पूर्वी सीमा पर तनाव बढ़ता जा रहा है, और भारत की सेनाएं अब एकजुट होकर चीन को कड़ा संदेश देने को तैयार हैं। अरुणाचल प्रदेश की ऊंची चोटियों में 11 से 15 नवंबर तक शुरू होने वाले ‘पूर्वी प्रचंड प्रहार’ अभ्यास में थलसेना, वायुसेना और नौसेना मिलकर वास्तविक युद्ध जैसी स्थितियों का सामना करेंगी। क्या यह सिर्फ एक ड्रिल है या LAC पर भारत की आक्रामक तैयारी का ऐलान? पश्चिमी मोर्चे पर ‘त्रिशूल’ की सफलता के बाद यह कदम रणनीतिक बदलाव का संकेत दे रहा है।
पूर्वी मोर्चे पर फोकस: अरुणाचल में क्यों इतना जोर?
अरुणाचल प्रदेश के मेचुका क्षेत्र की दुर्गम ऊंचाइयों में ‘पूर्वी प्रचंड प्रहार’ अभ्यास चीन सीमा के करीब भारत की तैनाती और तैयारियों का सबसे बड़ा इम्तिहान साबित होगा, जहां थलसेना की तोपखाने इकाइयां, मशीनीकृत ब्रिगेड, वायुसेना के राफेल जेट्स, ड्रोन सिस्टम और नौसेना की हवाई निगरानी एक साथ काम करेंगी। रक्षा सूत्रों के अनुसार, यह ड्रिल वास्तविक युद्ध परिदृश्यों पर आधारित है, जिसमें उच्च हिमालयी इलाकों में विशेष बलों, मानवरहित प्रणालियों, सटीक हथियारों और नेटवर्क-आधारित कमांड सेंटर्स का समन्वित उपयोग होगा। लेफ्टिनेंट कर्नल महेन्द्र रावत ने बताया कि अभ्यास बहु-क्षेत्रीय एकीकरण पर केंद्रित है, जो भूमि, आकाश और समुद्री मोर्चों पर संचालन को मजबूत करेगा। मेचुका, जो LAC से महज 30 किमी दूर है, इस ड्रिल के लिए चुना गया क्योंकि यहां की चुनौतीपूर्ण भू-आकृति – ऊंचे पहाड़, घाटियां और सीमावर्ती इलाके – वास्तविक संघर्ष की नकल करती है। यह अभ्यास न केवल तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बढ़ाएगा, बल्कि चीन को भारत की त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता का स्पष्ट संदेश भी देगा। पिछले अभ्यासों जैसे ‘भाला प्रहार’ (2023) और ‘पूर्वी प्रहार’ (2024) की तर्ज पर यह भारत की थिएटर कमांड अवधारणा को मजबूत करेगा, जहां सभी सेनाएं एकीकृत होकर किसी भी दिशा से हमला झेल सकेंगी। सोशल मीडिया पर यूजर्स इसे ‘ड्रैगन को चेतावनी’ बता रहे हैं, जो पूर्वी हिमालय में भारत की संप्रभुता की रक्षा के संकल्प को दर्शाता है।
तीनों सेनाओं का संयुक्त कमाल: तकनीक और रणनीति का प्रदर्शन
‘पूर्वी प्रचंड प्रहार’ में थलसेना की स्ट्राइक फॉर्मेशनें वायुसेना के फाइटर जेट्स और ट्रांसपोर्ट विमानों के साथ मिलकर आक्रामक अभियान चलाएंगी, जबकि नौसेना अरब सागर से समुद्री टोही और रसद सहायता प्रदान करेगी, जो उच्च ऊंचाई वाले संवेदनशील क्षेत्रों में तुरंत और सटीक प्रतिक्रिया की क्षमता साबित करेगा। वाइस एडमिरल ए.एन. प्रमोद ने कहा, “यह बहु-आयामी अभ्यास आधुनिक युद्ध सिद्धांतों पर आधारित है, जहां सभी बलों के बीच अधिकतम तालमेल सुनिश्चित किया जाएगा।” ड्रिल में इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, सैटेलाइट निगरानी, रिमोट-ऑपरेटेड सिस्टम और मिशन सिमुलेशन शामिल होंगे, जो दुश्मन ब्रिगेड-आकार की टुकड़ियों को घेरने, अलग करने और निष्प्रभावी करने की रणनीति पर केंद्रित हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह अभ्यास LAC पर बढ़ते तनाव – जैसे यांग्त्से सेक्टर की झड़पों – के जवाब में है, जहां चीन अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। तीनों सेनाओं की एकीकृत ताकत से भारत न केवल रक्षात्मक, बल्कि आक्रामक मोड में भी सक्षम दिखेगा, जो पूर्वी थिएटर में सामरिक गहराई प्रदान करेगा। X पर पोस्ट्स में इसे “तीनों सेनाओं का त्रिशूल” कहा जा रहा है, जो पश्चिमी ‘त्रिशूल’ अभ्यास की सफलता को पूर्व में दोहराएगा। कुल मिलाकर, यह ड्रिल भारत की रक्षा बुनियादी ढांचे को मजबूत करेगी और क्षेत्रीय सुरक्षा वातावरण में भारत के दृढ़ संकल्प को रेखांकित करेगी।
पश्चिम से पूर्व तक: ‘त्रिशूल’ की सफलता और भविष्य की चुनौतियां
पश्चिमी सीमा पर 30 अक्टूबर से चल रहे ‘त्रिशूल’ अभ्यास में राजस्थान-गुजरात की सीमाओं पर थलसेना की अग्रिम इकाइयां वायुसेना के जेट्स और नौसेना की टोही से तेज प्रतिक्रिया, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और संचार प्रणालियों की कसौटी पर खरी उतरी हैं, जबकि पूर्व में ‘पूर्वी प्रचंड प्रहार’ इसकी गूंज को आगे बढ़ाएगा, जो भारत की दोहरी थिएटर तत्परता का प्रतीक बनेगा। दोनों अभ्यास एक साथ चलने से भारत की सेनाएं स्वतंत्रता के बाद सबसे महत्वाकांक्षी प्रदर्शन कर रही हैं, जो पाकिस्तान और चीन दोनों मोर्चों पर एक साथ जवाब देने की क्षमता दर्शाता है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह थिएटर कमांड की दिशा में बड़ा कदम है, जो भविष्य के संघर्षों के लिए बहु-क्षेत्रीय एकीकरण को मजबूत करेगा। लेकिन चुनौतियां बाकी हैं – उच्च ऊंचाई में लॉजिस्टिक्स, मौसम की मार और दुश्मन की घुसपैठ। क्या यह अभ्यास LAC पर शांति लाएगा या तनाव बढ़ाएगा? X पर बहस छिड़ी है, जहां यूजर्स इसे “भारत का सामरिक पुनरुत्थान” बता रहे हैं। अगले कुछ दिन निर्णायक होंगे, जो भारत की वैश्विक रक्षा भूमिका को नया आयाम देंगे।