• October 26, 2025

जहरीली हवा ने ली 79 लाख जानें— अब वायु प्रदूषण बना दुनिया का ‘साइलेंट किलर’

धुंध से ढके आसमान, सांसों में घुला ज़हर और सड़कों पर फैली धूल… ये अब किसी एक शहर की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की कहानी बन चुकी है। ताज़ा रिपोर्ट में जो खुलासा हुआ है, उसने स्वास्थ्य विशेषज्ञों से लेकर सरकारों तक को झकझोर दिया है। हर साल लाखों लोग जिस ख़तरे को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, वही अब मौत का सबसे बड़ा कारण बन चुका है। हैरानी की बात ये है कि इस ख़ामोश हत्यारे से मरने वालों की संख्या कैंसर से मरने वालों के करीब पहुँच चुकी है। लेकिन यह ख़तरा आखिर कितना बड़ा है? और भारत में इसका असर कैसा है? आइए जानते हैं पूरी ख़बर क्या है।

वायु प्रदूषण बना मौत का सबसे बड़ा कारण 

‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2023’ रिपोर्ट ने एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने रखा है। साल 2023 में वायु प्रदूषण के कारण दुनियाभर में करीब 79 लाख लोगों की मौत हुई, जिनमें से 20 लाख मौतें अकेले भारत में दर्ज की गईं। रिपोर्ट के मुताबिक, अब भारत में वायु प्रदूषण मौत का सबसे बड़ा कारण बन चुका है — इसने ब्लड प्रेशर और खराब खानपान जैसे कारणों को भी पीछे छोड़ दिया है। वायु प्रदूषण से दिल, फेफड़ों की बीमारियां, डायबिटीज़ और डिमेंशिया जैसी गैर-संचारी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। कैंसर से तुलना करें तो 2022 में दुनिया में कैंसर से 97 लाख लोगों की मौत हुई थी, यानी वायु प्रदूषण का कहर अब इस बीमारी के बराबर पहुंच चुका है। हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट (HEI) द्वारा तैयार यह रिपोर्ट सरकारों और जनता के लिए एक चेतावनी है — कि हवा में घुला यह जहर अब हमारी सांसों के साथ ज़िंदगी भी चुरा रहा है।

चार में से तीन भारतीय जहरीली हवा में जी रहे हैं

रिपोर्ट बताती है कि भारत के हर चार में से तीन लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां हवा में ज़हरीले कण (PM2.5) की मात्रा WHO के मानक से अधिक है। भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली कुल मौतों में से करीब 89% गैर-संचारी रोगों (NCDs) की वजह से होती हैं — जैसे दिल का दौरा, फेफड़ों की बीमारी, डायबिटीज़ और डिमेंशिया। विशेषज्ञों के मुताबिक, पहले भारत में मौतें घरेलू प्रदूषण (लकड़ी या कोयले से खाना पकाने के धुएं) से होती थीं, लेकिन अब बाहरी हवा यानी एंबिएंट एयर पॉल्यूशन सबसे बड़ा ख़तरा बन चुका है। सरकार की स्वच्छ ऊर्जा योजनाओं से घरों में धुएं से होने वाली मौतें घटी हैं, लेकिन बाहर की हवा में मौजूद प्रदूषण लगातार बढ़ा है। यह आंकड़ा न सिर्फ स्वास्थ्य का, बल्कि नीति निर्माण का भी सवाल उठाता है — आखिर कब तक लोग अपने ही शहर की हवा से बीमार पड़ते रहेंगे?

बढ़ता खतरा: हवा से डिमेंशिया और अन्य बीमारियां 

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, HEI की वैज्ञानिक डॉ. पल्लवी पंत ने बताया कि असुरक्षित पानी से होने वाली बीमारियां कम हुई हैं, लेकिन अब खराब हवा से बीमारियों में तेज़ी आई है। साल 2000 से 2023 के बीच PM2.5 और ओज़ोन गैस का स्तर चिंताजनक रूप से बढ़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण अब डिमेंशिया (याददाश्त खोने की बीमारी) भी बढ़ रही है। सिर्फ 2023 में ही 6.25 लाख लोगों की मौत इस कारण से हुई, जबकि 1.2 करोड़ लोगों के स्वस्थ जीवन वर्ष प्रभावित हुए। डॉ. पंत के अनुसार, “खराब हवा का असर अब अरबों लोगों की सेहत पर पड़ रहा है, खासतौर पर एशिया और अफ्रीका में।” हालांकि कई देशों ने निगरानी और नए कानूनों के ज़रिए प्रदूषण पर रोक लगाने की कोशिश शुरू की है, जिससे कुछ सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र और WHO ने दी चेतावनी 

संयुक्त राष्ट्र ने पहले ही वायु प्रदूषण को उन पांच बड़े खतरों में शामिल किया था जो दिल और फेफड़ों की बीमारियों को बढ़ाते हैं — इनमें तंबाकू, खराब खानपान, व्यायाम की कमी और शराब का सेवन भी शामिल हैं। इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इसे अपनी नीतियों में विशेष स्थान दिया। NCD एलायंस की नीति निदेशक एलिसन कॉक्स ने कहा, “वायु प्रदूषण और गंभीर बीमारियों से निपटने के लिए एक साथ कदम उठाए जा सकते हैं। इससे न केवल सेहत बल्कि जलवायु और अर्थव्यवस्था दोनों को फायदा होगा।” रिपोर्ट में हवा की गुणवत्ता के आंकड़े सैटेलाइट, ग्राउंड सेंसर और वैज्ञानिक मॉडलों से जुटाए गए हैं, जबकि घरेलू प्रदूषण के डेटा के लिए WHO के सर्वेक्षणों का इस्तेमाल हुआ। स्पष्ट है — अगर तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशक में सांस लेना ही इंसान के लिए सबसे बड़ा जोखिम बन सकता है।

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Rama Niwash Pandey

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