बिहार चुनाव 2025: सीमांचल के सूरमा दिलीप जायसवाल, पप्पू यादव और उदय सिंह, जो बन सकते हैं गेम चेंजर
पटना, 18 सितंबर 2025: बिहार की राजनीति में धूम मचाने वाले सीमांचल इलाके की हवा तेज हो गई है। अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सभी पार्टियां कमर कस रही हैं। इस बार सीमांचल यानी पूर्णिया, किशनगंज, अररिया और कटिहार जैसे जिलों के कुछ दिग्गज नेता चर्चा में हैं। ये हैं दिलीप जायसवाल, पप्पू यादव और उदय सिंह। इन तीनों को सीमांचल के सूरमा कहा जा रहा है, क्योंकि इनकी वजह से चुनाव का रुख बदल सकता है। ये नेता न सिर्फ स्थानीय मुद्दों पर मजबूत पकड़ रखते हैं, बल्कि इनकी जातिगत समीकरणों को साधने की ताकत भी है। एनडीए, महागठबंधन और नई पार्टियों के बीच ये एक्स फैक्टर साबित हो सकते हैं।सीमांचल बिहार का एक खास इलाका है। यहां की आबादी में मुस्लिम, यादव, वैश्य और पिछड़ी जातियां बहुमत में हैं। बाढ़, बेरोजगारी, सीमा विवाद और विकास के मुद्दे यहां हमेशा गर्म रहते हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में भी इस इलाके ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं। अब विधानसभा चुनाव में ये नेता अपनी ताकत दिखाने को तैयार हैं। बीजेपी, कांग्रेस, जन सुराज जैसी पार्टियां इन्हें साधने की कोशिश में लगी हैं। आइए, इन तीनों की कहानी को करीब से समझें।सबसे पहले बात करते हैं दिलीप जायसवाल की। 61 साल के दिलीप जायसवाल खगड़िया के रहने वाले हैं, लेकिन उनका असली असर सीमांचल में है। वे वैश्य समाज से आते हैं, जो बिहार की सबसे बड़ी जाति है।
हाल ही में बिहार बीजेपी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। इससे पहले वे तीन बार एमएलसी रह चुके हैं। पूर्णिया-अररिया-किशनगंज इलाके से लगातार जीत हासिल की है। 2022 के चुनाव में उन्होंने आरजेडी के उम्मीदवार को 5,342 वोटों से हराया था। नीतीश कुमार सरकार में वे राजस्व और भूमि सुधार मंत्री हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं।दिलीप जायसवाल का राजनीतिक सफर लंबा है। वे डॉक्टर भी हैं और किशनगंज में माता गुजरी मेडिकल कॉलेज के एमडी रह चुके हैं। सीमांचल में वैश्य वोटरों के अलावा मुस्लिम समुदाय में भी उनकी अच्छी स्वीकार्यता है। बीजेपी के लिए वे लिबरल चेहरा हैं। चुनाव से पहले बीजेपी ने उनकी टीम का ऐलान किया है, जिसमें 5 महामंत्री, 13 उपाध्यक्ष और 14 मंत्री शामिल हैं। पुराने चेहरों जैसे राजेश वर्मा को फिर जगह दी गई है। दिलीप जायसवाल कहते हैं, “सीमांचल का विकास हमारी प्राथमिकता है। बाढ़ नियंत्रण और रोजगार के लिए हम काम करेंगे।” एनडीए के लिए वे सीमांचल की 24 सीटों पर मजबूत आधार बना सकते हैं। वैश्य समाज की 36 फीसदी आबादी को देखते हुए बीजेपी ने उन पर भरोसा जताया है।अब बात पप्पू यादव की। राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव बिहार के सबसे चर्चित बाहुबली नेताओं में से एक हैं।
1969 में जन्मे पप्पू का जन्म मधेपुरा में हुआ। वे पूर्णिया से सांसद हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय जीते। पहले सपा, राजद और लोजपा से जुड़े रहे। अब कांग्रेस के करीब हैं। उनकी पत्नी रंजीत रंजन भी सुपौल से कांग्रेस सांसद हैं। पप्पू यादव की सियासी शुरुआत 1990 में सिंहेश्वर से विधायक बनकर हुई। उसके बाद 1991, 1996, 1999, 2004 और 2014 में विभिन्न सीटों से जीते।पप्पू यादव को कोसी-सीमांचल में मजबूत पकड़ है। वे खुद को जनता के मसीहा बताते हैं। अपराध के कई केस उनके नाम पर हैं, लेकिन समर्थक उन्हें रॉबिनहुड जैसा मानते हैं। वे कहते हैं, “समय पर मदद करने वाला नेता ही असली है।” बिहार की राजनीति में दबंगों का दबदबा 1957 से चला आ रहा है। काली प्रसाद से लेकर शहाबुद्दीन तक कई नाम आए, लेकिन पप्पू का नाम खौफ और समर्थन दोनों के लिए जाना जाता है। 2025 चुनाव में वे महागठबंधन के लिए एक्स फैक्टर हो सकते हैं। पूर्णिया और आसपास के इलाकों में यादव और मुस्लिम वोट साधने की क्षमता रखते हैं। हाल ही में उन्होंने कहा, “मैं बिहार के लिए लडूंगा, चाहे कोई भी गठबंधन हो।” कांग्रेस ने उन पर दांव लगाकर सीमांचल में अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश की है। लेकिन उनकी निर्दलीय छवि उन्हें स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर भी मजबूत बनाती है।तीसरे नंबर पर हैं उदय सिंह। 1952 में पूर्णिया में जन्मे उदय सिंह का परिवार नौकरशाहों और राजनेताओं का है। वे जन सुराज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। प्रशांत किशोर की इस नई पार्टी को वे मजबूत बनाने की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। उदय सिंह का सफर दिलचस्प है। वे बीजेपी से दो बार सांसद रह चुके हैं। फिर कांग्रेस में चले गए। 2024 लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने पर कांग्रेस छोड़ दी। अब जन सुराज से जुड़े हैं। पूर्णिया से उनकी जड़ें गहरी हैं।उदय सिंह को चुनावी रणनीतिकार माना जाता है।
वे दोनों प्रमुख गठबंधनों के साथ चुनाव लड़ चुके हैं, इसलिए दांव-पेंच अच्छे जानते हैं। जन सुराज पार्टी सीमांचल में अनुभवी चेहरे के तौर पर उन पर भरोसा कर रही है। उदय सिंह कहते हैं, “जन सुराज नई राजनीति लाएगी। विकास और युवाओं पर फोकस होगा।” पार्टी का उद्देश्य एनडीए और महागठबंधन को चुनौती देना है। उदय सिंह की वजह से जन सुराज को वैश्य और अन्य पिछड़ी जातियों का समर्थन मिल सकता है। पूर्णिया में उनका प्रभाव एनडीए के लिए खतरा बन सकता है।ये तीनों नेता सीमांचल की राजनीति को नया रंग दे सकते हैं। दिलीप जायसवाल बीजेपी को मजबूत करेंगे, पप्पू यादव महागठबंधन को फायदा पहुंचाएंगे, जबकि उदय सिंह जन सुराज को नई ऊंचाई देंगे। हाल ही में पीएम मोदी के सीमांचल दौरे से एनडीए ने शक्ति दिखाई, लेकिन विपक्ष भी चुप नहीं है। पप्पू यादव ने एनडीए पर हमला बोला, तो उदय सिंह ने नई रणनीति की बात की।चुनाव आयोग के मुताबिक, बिहार की 243 सीटों पर वोटिंग दो चरणों में होगी। सीमांचल की 24 सीटें निर्णायक होंगी। यहां बाढ़, प्रवासन और सीमा सुरक्षा जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। जातिगत समीकरणों में वैश्य, मुस्लिम और यादव वोटरों का रोल बड़ा है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ये सूरमा वोटों का ध्रुवीकरण कर सकते हैं। बीजेपी वैश्य कार्ड खेल रही है, कांग्रेस मुस्लिम-यादव गठजोड़ पर, जबकि जन सुराज युवाओं को ललचाने की कोशिश में है।बिहार की सियासत हमेशा अप्रत्याशित रही है। 1990 के दशक में बाहुबलियों का बोलबाला था, आज विकास की बात हो रही है। लेकिन सीमांचल के ये नेता पुरानी शैली और नई सोच का मिश्रण हैं। क्या वे चुनाव बदल देंगे? आने वाले दिनों में साफ होगा। फिलहाल, सियासी हलचल तेज है। वोटरों की नजर इन सूरमाओं पर टिकी है।
