• October 14, 2025

इस्लामिक देशों ने इजरायल पर कड़ा रुख अपनाया: दोहा सम्मेलन में कतर हमले की निंदा और एकजुटता का फैसला

दोहा, 16 सितंबर 2025। मध्य पूर्व में तनाव चरम पर पहुंच गया है। इजरायल के हालिया हमलों ने पूरी दुनिया को हिला दिया है। खासकर कतर की राजधानी दोहा पर इजरायली हवाई हमले ने मुस्लिम देशों को एकजुट कर दिया। अरब लीग और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के संयुक्त आपातकालीन सम्मेलन में लगभग 60 मुस्लिम देशों के नेता इकट्ठा हुए। इस सम्मेलन में इजरायल के खिलाफ कड़े कदम उठाने पर चर्चा हुई। कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमाद अल थानी ने कहा कि इजरायल का हमला न सिर्फ कतर की संप्रभुता पर हमला था, बल्कि पूरे क्षेत्र की शांति के लिए खतरा है। सम्मेलन में इजरायल के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंधों की समीक्षा करने का प्रस्ताव पारित हुआ।यह घटना 9 सितंबर 2025 को शुरू हुई। इजरायल ने दोहा में हमास के नेताओं की एक बैठक पर हवाई हमला किया। इस हमले में पांच हमास सदस्य और एक कतरी सुरक्षा अधिकारी मारे गए। हमास के राजनीतिक नेतृत्व को निशाना बनाया गया था, जो अमेरिका के मध्यस्थता में गाजा युद्धविराम पर चर्चा कर रहे थे। कतर, जो हमास और इजरायल के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है, ने इस हमले को ‘राज्य प्रायोजित आतंकवाद’ करार दिया। कतर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी ने कहा, “यह हमला शांति वार्ता को तोड़ने की कोशिश था। इजरायल फलस्तीनियों को उनकी जमीन से बेदखल करना चाहता है।” हमले के बाद कतर ने तुरंत अरब और इस्लामिक देशों को आमंत्रित किया।सम्मेलन 15 सितंबर को दोहा के शेराटन होटल में शुरू हुआ। इसमें सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियन, मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और तुर्की के विदेश मंत्री समेत कई बड़े नेता शामिल हुए। ओआईसी के महासचिव हुसैन ब्राहिम ताहा ने कहा, “यह सम्मेलन कतर के साथ एकजुटता दिखाता है। इजरायल का हमला फलस्तीनी लोगों पर जारी आक्रमण का हिस्सा है।”
सम्मेलन में 57 सदस्य देशों के प्रतिनिधि थे, जो मुस्लिम दुनिया की आवाज हैं।चर्चा का मुख्य मुद्दा इजरायल का आक्रामक रुख था। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा था कि हमास को कहीं भी निशाना बनाया जा सकता है। लेकिन मुस्लिम नेताओं ने इसे क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन बताया। ईरान के राष्ट्रपति पेजेश्कियन ने चेतावनी दी, “अगला नंबर किसी भी इस्लामिक राजधानी का हो सकता है।” उन्होंने मुस्लिम देशों से इजरायल के साथ संबंध तोड़ने की अपील की। पाकिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार ने कहा, “यह सम्मेलन एक स्पष्ट रोडमैप देगा। पूरी मुस्लिम उम्माह इसकी प्रतीक्षा कर रही है।” मिस्र के राष्ट्रपति सीसी ने चिंता जताई कि इजरायल के कदम नए शांति समझौतों को बाधित कर रहे हैं और मौजूदा समझौतों को भी खतरे में डाल रहे हैं।सम्मेलन में इजरायल के गाजा युद्ध पर भी गहन बहस हुई। गाजा में इजरायली हमलों से अब तक 64,800 से ज्यादा फलस्तीनी मारे गए हैं। नेताओं ने इसे ‘नरसंहार’ कहा। कतर के अमीर ने कहा, “इजरायल फलस्तीनियों को जबरन विस्थापित करना चाहता है। हम इसे कभी सफल नहीं होने देंगे।” प्रस्ताव में इजरायल पर आर्थिक दबाव डालने की बात की गई। पुराने अनुभवों से साबित हुआ है कि बहिष्कार इजरायल को रोक सकता है। ओआईसी ने संयुक्त राष्ट्र से इजरायल की सदस्यता की समीक्षा करने की मांग की, क्योंकि इजरायल संयुक्त राष्ट्र के संकल्पों का उल्लंघन कर रहा है।
एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव फलस्तीन के लिए दो-राज्य समाधान पर जोर देना था। नेताओं ने 1967 की सीमाओं के आधार पर फलस्तीनी राज्य की मांग दोहराई, जिसमें पूर्वी जेरूसलम राजधानी हो। सऊदी क्राउन प्रिंस ने कहा, “शांति के लिए इजरायल को कब्जा छोड़ना होगा।” पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इजरायली विस्तारवाद को रोकने के लिए एक टास्क फोर्स बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, “इजरायल की महत्वाकांक्षाएं पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर रही हैं।” सम्मेलन में गाजा की पुनर्निर्माण योजना पर भी सहमति बनी, जिसमें अरब-ओआईसी की 53 अरब डॉलर की योजना को समर्थन दिया गया।अमेरिका की भूमिका पर भी सवाल उठे। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो इजरायल गए थे, जहां उन्होंने इजरायल के ‘हमास उन्मूलन’ के लक्ष्य का समर्थन किया। लेकिन कतर ने कहा कि अमेरिका को कतर की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, “इजरायल दोबारा दोहा पर हमला नहीं करेगा।” फिर भी, मुस्लिम देशों ने अमेरिका से दोहरी नीति छोड़ने की मांग की। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने 16 सितंबर को इजरायली हमले पर आपात बहस बुलाई है।सम्मेलन का समापन एक संयुक्त घोषणा-पत्र से हुआ। इसमें इजरायल के हमलों की निंदा की गई और कतर के साथ एकजुटता जताई गई। नेताओं ने कहा कि इजरायल के कदम मध्य पूर्व में शांति की संभावनाओं को नष्ट कर रहे हैं। आर्थिक दबाव, राजनयिक बहिष्कार और अंतरराष्ट्रीय अदालतों में मुकदमे चलाने पर जोर दिया गया।
ओआईसी ने फलस्तीन के लिए वित्तीय सहायता नेटवर्क बनाने का फैसला किया, ताकि इजरायल की वित्तीय चोरी रोकी जा सके।यह सम्मेलन मुस्लिम दुनिया के लिए एक मोड़ साबित हो सकता है। सालों से इजरायल के साथ सामान्यीकरण हो रहा था, जैसे अब्राहम समझौते। लेकिन दोहा हमले ने सबको जगा दिया। सऊदी अरब और ईरान जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों का एक साथ आना दुर्लभ है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह एकता लंबे समय तक टिकेगी या नहीं, यह आने वाले दिनों में साफ होगा। लेकिन फिलहाल, मुस्लिम देश इजरायल को स्पष्ट संदेश दे रहे हैं: आक्रामकता का जवाब मिलेगा।गाजा में युद्ध जारी है। इजरायली हमलों से रोज सैकड़ों निर्दोष मर रहे हैं। फलस्तीनी अधिकारियों ने कहा कि इजरायल भुखमरी को हथियार बना रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी कि गाजा में मानवीय संकट चरम पर है। मुस्लिम देशों ने गाजा में सहायता पहुंचाने के लिए सभी रास्ते खोलने की मांग की।इस सम्मेलन से उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय जागेगा। फ्रांस और सऊदी अरब सितंबर में न्यूयॉर्क में एक और सम्मेलन आयोजित करने वाले हैं, जहां फलस्तीनी राज्य की मान्यता पर चर्चा होगी। लेकिन इजरायल ने इसे खारिज कर दिया है। मध्य पूर्व शांति की राह मुश्किल है, लेकिन दोहा सम्मेलन ने एक नई शुरुआत की है। मुस्लिम देश अब चुप नहीं रहेंगे।
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Rama Niwash Pandey

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