अमेरिका भारत को मक्का निर्यात करने के लिए इतना उत्सुक क्यों? क्या इथेनॉल लक्ष्य इसके पीछे की वजह है?
नई दिल्ली, 16 सितंबर 2025:हाल ही में अमेरिका ने भारत को अपने मक्का (कॉर्न) के निर्यात के लिए दबाव बढ़ा दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के बाद से व्यापार नीतियां और सख्त हो गई हैं। अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने यहां तक कह दिया है कि अगर भारत अमेरिकी मक्का आयात नहीं करता, तो अमेरिका भी भारतीय सामानों पर कठोर टैरिफ लगा सकता है। लेकिन सवाल यह है कि अमेरिका इतना बेचैन क्यों है? क्या इसके पीछे भारत का इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य छिपा हुआ है? आइए इस मुद्दे को सरल भाषा में समझते हैं।सबसे पहले, भारत का इथेनॉल कार्यक्रम क्या है? भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण और तेल आयात कम करने के लिए इथेनॉल को पेट्रोल में मिलाने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में, पेट्रोल में 13 प्रतिशत इथेनॉल मिलाया जा रहा है, लेकिन 2025-26 तक इसे 20 प्रतिशत (E20) करने का प्लान है। इथेनॉल एक जैव ईंधन है, जो गन्ने, मक्का या अन्य फसलों से बनता है। इससे न सिर्फ कार्बन उत्सर्जन कम होता है, बल्कि विदेशी तेल पर निर्भरता भी घटती है। 2014 से अब तक, इस कार्यक्रम से 69.8 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो चुका है और अरबों डॉलर की बचत हुई है।लेकिन समस्या तब शुरू हुई जब भारत ने इथेनॉल उत्पादन के लिए मक्का को मुख्य कच्चे माल के रूप में अपनाया। पहले भारत गन्ने पर ज्यादा निर्भर था, लेकिन गन्ने की कमी और कीमतों के कारण अब मक्का की बारी आई है। नीति आयोग के अनुसार, 2025 तक 10 अरब लीटर इथेनॉल की जरूरत होगी, जिसमें आधा मक्का से बनेगा। इससे भारत की मक्का मांग तेजी से बढ़ गई है।
2024 में भारत पहली बार दशकों बाद मक्का का शुद्ध आयातक बन गया। पहले हम 20-40 लाख टन मक्का निर्यात करते थे, लेकिन अब निर्यात घटकर 4.5 लाख टन रह गया है, जबकि आयात 10 लाख टन तक पहुंच गया। म्यांमार और यूक्रेन जैसे देशों से गैर-जीएम (जेनेटिकली मॉडिफाइड) मक्का मंगाया जा रहा है।अब अमेरिका की एंट्री। अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा मक्का उत्पादक है। 2024-25 में उन्होंने 377 मिलियन टन मक्का पैदा किया, जिसमें से 71 मिलियन टन निर्यात किया। 2025-26 के लिए अनुमान है 427 मिलियन टन उत्पादन और 75 मिलियन टन निर्यात। अमेरिकी मक्का सस्ता है – जुलाई में इसकी कीमत 4.29 डॉलर प्रति बुशेल (लगभग 15 रुपये प्रति किलो) थी, जबकि भारत में थोक मूल्य 22-23 रुपये प्रति किलो है। अमेरिकी किसान, खासकर मिडवेस्टर्न राज्यों जैसे आयोवा, इलिनॉय और नेब्रास्का में, मक्का से इथेनॉल बनाते हैं। उनके यहां भी बायोफ्यूल मिश्रण अनिवार्य है, जिससे मक्का की घरेलू खपत बढ़ी है, लेकिन निर्यात भी रिकॉर्ड स्तर पर है।ट्रंप प्रशासन भारत को बड़ा बाजार मानता है। अमेरिका का भारत के साथ व्यापार घाटा 2024 में 45.8 अरब डॉलर था – भारत ने 87.3 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया, जबकि अमेरिका ने सिर्फ 41.5 अरब डॉलर का। ट्रंप ने कहा है कि भारत ‘कुछ भी’ आयात नहीं करता, जो सही नहीं है, लेकिन वे कृषि उत्पादों के लिए बाजार खोलने पर जोर दे रहे हैं। जनवरी 2025 में ट्रंप के फिर से चुने जाने के बाद, उन्होंने ‘पारस्परिक टैरिफ’ की नीति अपनाई, जिसमें अगर कोई देश अमेरिकी सामान आयात नहीं करता, तो अमेरिका भी जवाबी कार्रवाई करेगा। मक्का इसकी शुरुआत है।फिर इथेनॉल रेस का कनेक्शन? हां, बिल्कुल।
भारत का E20 लक्ष्य अमेरिकी मक्का के लिए सुनहरा अवसर है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट कहती है कि अमेरिकी मक्का से इथेनॉल बनाकर उसके उप-उत्पाद DDGS (डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन्स विथ सॉल्यूबल्स) को निर्यात किया जा सकता है, जिससे भारत में जीएम फीड की समस्या न हो। अमेरिकी मक्का ज्यादातर जीएम है, जो भारत में खाद्य श्रृंखला के लिए प्रतिबंधित है। लेकिन इथेनॉल उत्पादन के लिए औद्योगिक उपयोग में इसे अनुमति मिल सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को जीएम मक्का और सोया को सिर्फ इथेनॉल और सोया ऑयल के लिए आयात करने की छूट देनी चाहिए। इससे भारत का इथेनॉल लक्ष्य आसानी से पूरा हो जाएगा, बिना स्थानीय खाद्य बाजार को प्रभावित किए।अमेरिका के लिए फायदा साफ है। उनके पास अतिरिक्त मक्का है, और भारत जैसे बड़े बाजार से निर्यात बढ़ाने से किसानों को लाभ होगा। अमेरिकी ऊर्जा विभाग के अनुसार, कम कीमतों के कारण उनका इथेनॉल निर्यात भी बढ़ा है। भारत अगर अमेरिकी मक्का आयात करता है, तो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बदल जाएगी। वियतनाम, बांग्लादेश जैसे देश, जो पहले भारतीय मक्का खरीदते थे, अब अमेरिका या दक्षिण अमेरिका की ओर रुख कर रहे हैं।लेकिन भारत के लिए चुनौतियां भी कम नहीं। सबसे बड़ी समस्या जीएम फसलें। भारत जीएम फसलों को खाद्य के लिए नहीं मानता, सिवाय कपास के। आयात पर 50-60 प्रतिशत टैरिफ है, जो अमेरिकी मक्का को महंगा बनाता है। बिहार जैसे राज्यों में, जो मक्का का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, विधानसभा चुनाव आने वाले हैं, इसलिए किसानों को नुकसान पहुंचाने का जोखिम नहीं लिया जा सकता। मुर्गी पालन उद्योग पहले से ही प्रभावित है – मक्का की कीमतें बढ़ने से चारा महंगा हो गया।
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (CSTEP) के अनुसार, E20 के लिए 2030 तक 80 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त जमीन मक्का के लिए चाहिए, वरना आयात बढ़ेगा।फिर भी, कुछ विशेषज्ञ सकारात्मक हैं। ग्रांट थॉर्नटन की रिपोर्ट कहती है कि मक्का से इथेनॉल बनाना आसान है – एक बुशेल मक्का से 2.7 गैलन इथेनॉल मिलता है। सरकार ने मक्का-आधारित इथेनॉल के लिए अलग मूल्य निर्धारित किया है, जो उत्पादन को प्रोत्साहित करेगा। यूएस ग्रेन्स काउंसिल के अनुसार, भारत ने अमेरिका, ब्राजील के साथ ग्लोबल बायोफ्यूल्स एलायंस बनाया है, जो सहयोग बढ़ा सकता है।क्या होगा आगे? अमेरिका दबाव डाल रहा है, लेकिन भारत सतर्क है। नीति आयोग सुझाव दे रहा है कि अमेरिकी मक्का आयात करें, लेकिन DDGS निर्यात करके जीएम मुद्दा हल करें। अगर समझौता होता है, तो भारत का इथेनॉल लक्ष्य पूरा होगा और अमेरिकी किसानों को राहत मिलेगी। लेकिन अगर टकराव बढ़ा, तो व्यापार युद्ध हो सकता है। फिलहाल, दोनों देश बातचीत कर रहे हैं। भारत सरकार ने कहा है कि कृषि क्षेत्र की रक्षा प्राथमिकता है, लेकिन बायोफ्यूल लक्ष्य भी महत्वपूर्ण।यह मुद्दा न सिर्फ व्यापार का है, बल्कि पर्यावरण और किसानों का भी। अगर सही संतुलन बना, तो भारत ऊर्जा आत्मनिर्भर बनेगा। लेकिन बिना सावधानी के, स्थानीय बाजार प्रभावित हो सकता है। दुनिया देख रही है कि इथेनॉल रेस में भारत-अमेरिका का समीकरण कैसे बनेगा।
