• December 29, 2025

डायलिसिस कराने वाले 28 प्रतिशत भारतीयों की 10 महीने के भीतर मौत

 डायलिसिस कराने वाले 28 प्रतिशत भारतीयों की 10 महीने के भीतर मौत

एक हालिया अध्ययन ने भारत में क्रोनिक किडनी रोग के लिए डायलिसिस से गुजरने वाले रोगियों की डरावनी तस्वीर सामने आई है। 13 मार्च 2024 को प्रख्यात मेडिकल जर्नल “द लैंसेट रीजनल हेल्थ” के दक्षिण पूर्व एशिया अंक में प्रकाशित परिणाम बताते हैं कि डायलिसिस से गुजरने वाले दस में से लगभग तीन मरीज (28 प्रतिशत) उपचार शुरू करने के एक साल के भीतर दम तोड़ देते हैं जो उच्च आय वाले देशों में दर्ज की गई मृत्यु दर से दोगुनी है।

इस अनुसंधान में यह बताया गया है कि 193 निजी डायलिसिस क्लीनिकों के अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ है कि डायलिसिस वाले मरीजों में छह महीने के भीतर मृत्यु दर 83-97 प्रतिशत तक पाई गई। चौंकाने वाली बात यह है कि शहरी क्लीनिकों की तुलना में ग्रामीण क्लीनिकों में छह महीने में मृत्यु दर लगभग 32 प्रतिशत अधिक थी।

हालांकि, वैज्ञानिकों ने यह स्वीकार किया है कि डायलिसिस वाले मरीजों की मृत्यु दर की ऐसी हालत पर अभी अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि चिंताजनक मृत्यु दर को रोकने के लिए डायलिसिस की तकनीक तथा प्रबंधन में गुणात्मक सुधार की जरूरत है।

भारत में डायलिसिस की बढ़ती पहुंच के बावजूद, डायलिसिस पर जीवित रहने के लिए एक राष्ट्रीय बेंचमार्क न होने के कारण प्रतिकूल परिणाम मिल रहे हैं। फिलहाल, अनुसंधान कर्ताओं ने सुझाव दिया है कि इस विषय पर गौर करने तथा इस समस्या पर गहराई से अध्ययन करने की जरूरत है।

द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के कार्यकारी निदेशक डॉ. विवेकानंद झा ने मृत्यु दर को प्रभावित करने वाले सामाजिक-आर्थिक कारकों की खोज के महत्व पर जोर दिया। शिक्षा और मरीज की आर्थिक स्थिति का डायलिसिस की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है। भारत में डायलिसिस मरीजों की 10 महीनों में 28 प्रतिशत मृत्यु दर देखी गई, जबकि उच्च आय वाले देशों में 16 महीनों के औसत में 14 प्रतिशत मृत्यु दर रिकॉर्ड की गई।

डॉ. झा ने सरकार से किडनी रोग की रोकथाम के लिए मरीज के आर्थिक सहयोग और डायलिसिस प्रबंधन में सुधार का आग्रह किया।

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