उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने खुद को सुनवाई से किया अलग

सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने हल्द्वानी में रेलवे लाइन पर 4 हजार झुग्गियों को हटाने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच के सदस्य जस्टिस सुधांशु धुलिया ने सुनवाई से खुद को अलग कर दिया। अब ये मामला उस बेंच के समक्ष लिस्ट होगा, जिसके सदस्य जस्टिस सुधांशु धुलिया नहीं होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी को हल्द्वानी में रेलवे लाइन पर 4 हजार झुग्गियों को हटाने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और रेलवे को नोटिस जारी किया था। उत्तराखंड सरकार ने 7 फरवरी को समाधान निकालने के लिए समय देने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पचास हजार लोगों को सात दिनों के अंदर हटाना संभव नहीं है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की वकील ने कहा था कि इस मामले में कुछ लोगों ने नीलामी में जमीन को खरीदा है। कोर्ट ने कहा था कि इसमें एक मानवीय पहलू शामिल है। किसी को इस स्थिति और समस्याओं का मूल्यांकन करना चाहिए। आप यह सुनिश्चित कीजिए कि वहां आगे से कोई अतिक्रमण न हो। जस्टिस कौल ने कहा था कि हमें इस मामले को सुलझाने के लिए व्यावहारिक रुख अपनाना होगा।
रेलवे की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि यह रातों रात नहीं किया जा रहा है। पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया है। उन्होंने कहा कि नियमों का पालन हुआ है। यह मामला अवैध खनन से शुरू हुआ था। याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा था कि भूमि का बड़ा हिस्सा राज्य सरकार का है। रेलवे के पास भूमि कम है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि जिन लोगों ने नीलामी में जमीन खरीदी है, उसे आप कैसे डील करेंगे। लोग 50-60 साल से रह रहे हैं, तो कोई तो पुनर्वास की योजना होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि आप विकास के लिए हटा रहे हैं। आप सिर्फ अतिक्रमण हटा रहे हैं। तब रेलवे ने कहा कि ये रातों रात नहीं हुआ है।
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने रेलवे की जमीन खाली करने का आदेश दिया था, जिससे 4365 परिवार प्रभावित होंगे। हाई कोर्ट के एक आदेश के बाद इस क्षेत्र को खाली करने के लिए सात दिन का समय दिया जाएगा। याचिका दायर करने वालों में हल्द्वानी के शराफत खान समेत 11 लोग शामिल हैं। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के आदेश जारी करते हुए कहा था कि अतिक्रमण हटाए बिना पुनर्वास की किसी याचिका पर सुनवाई नहीं होगी। इस मामले में रेलवे ने अखबार में भी नोटिस प्रकाशित कर दिया था।
