काशी से दुनिया को आध्यात्मिक सूत्र में पिरोयेंगे मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत पूर्वांचल से दुनिया को आध्यात्मिक सूत्र में पिरोएंगे ही, सांस्कृतिक राजधानी काशी से धार्मिक एकजुटता का शंखनाद करेंगे। गाजीपुर के सिद्धपीठ हथियाराम मठ के महंत महामंडलेश्वर भवानी नंदन यति, मीरजापुर के चुनार सक्तेशगढ़ स्थित परमहंस आश्रम पर स्वामी अड़गड़ानंद महाराज, मां विंध्यवासिनी की आंचल में विंध्याचल के महुआरी कला स्थित देवरहा हंस बाबा आश्रम पर देवरहा हंस बाबा का आशीर्वाद लेने व संत महात्माओं से मुलाकात करने के साथ अखंड भारत के निर्माण के लिए रामदूत हनुमान को 51 मन लड्डू का भोग लगाया।

मोहन भागवत ने आदिशक्ति जगत जननी मां विंध्यवासिनी व विंध्य पर्वत पर विराजमान मां काली व मां अष्टभुजा का दर्शन-पूजन किया। विंध्य धरा पर शक्ति साधना के बाद सरसंघचालक अब काशी की ओर बढ़ चले हैं, जहां दुनिया के 25 देशों के मंदिरों के प्रतिनिधि व महंतों का समागम होगा। रूद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर सिगरा में 22 जुलाई को आयोजित होने वाले तीन दिवसीय महासम्मेलन सरसंघचालक शामिल होंगे।।

आइए जानते हैं उन मठ-आश्रमों के बारे में, जहां गए मोहन भागवत…

गाजीपुर: 800 साल पुरानी है हथियाराम मठ की परंपरा

गाजीपुर में सिद्धपीठ हथियाराम मठ है। साकार ब्रह्म के उपासक शैव समुदाय के हथियाराम मठ की परंपरा 800 साल पुरानी है। दत्तात्रेय और शंकराचार्य से शुरू हुई गद्दी परपंरा का प्रमाण प्राचीन किताबों में मिलता है। गाजीपुर के इस मठ की शाखाएं हरिद्वार के ज्वालापुर में शंकर आश्रम, इंदौर में विश्वनाथ धाम, हल्द्वानी में महालक्ष्मी अष्टादास का विख्यात मंदिर, वाराणसी में चार, बलिया, मऊ के साथ ही हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, बिहार आदि प्रांतों के साथ ही विदेशों में भी हैं। यहां बड़ी संख्या में उनके अनुयायी हैं। मठ से जूना अखाड़े में पांच महंतों ने जगह पाई। पांचवें महामंडलेश्वर भवानी नंदन यति वर्तमान महंत हैं। इनके पहले जूना महामंडलेश्वर बालकृष्ण यति, परेशानंद यति, आत्मप्रकाश यति और सोमेश्वर यति हथियाराम मठ से महंत बने।

मीरजापुर: अमेरिका और नेपाल समेत देश में स्वामी अड़गड़ानंद के 64 आश्रम

मीरजापुर के सक्तेशगढ़ में स्वामी अड़गड़ानंद का आश्रम है। यथार्थ गीता को साधारण शब्दों में व्याख्यान करने वाले स्वामी अड़गड़ानंद 23 साल की उम्र में अपने गुरु संत परमानंद के पास वर्ष 1955 में सत्य की खोज में आए थे। सक्तेशगढ़ में आश्रम के लिए राजा विजयपुर ने एक किमी परिक्षेत्र की जमीन दान में दी थी। आश्रम की स्थापना 1991 में हुई। स्वामी अड़गड़ानंद का प्रमुख आश्रम मीरजापुर में है। इसके अलावा देशभर में 64 जगहों पर उनकी शाखाएं हैं। मुंबई के पालघर, मध्यप्रदेश के बरचर, दिल्ली के फरीदाबाद, उत्तराखंड के चकोरी, पिथौरागढ़, देहरादून में आश्रम के अलावा मीरजापुर में कछवां के बरैनी स्थित जगतानंद आश्रम भी है। मठ के अमेरिका में दो और नेपाल में भी एक आश्रम है। सक्तेशगढ़ के स्वामी अड़गड़ानंद आश्रम में 100 साधु रहते हैं।

स्वामी अड़गड़ानंद आश्रम में मंत्रियों की कतार

स्वामी अड़गड़ानंद आश्रम का संचालन संत नारद महाराज की देखरेख में होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत वर्ष फोन कर उनका हालचाल जाना था। आश्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, विहिप के अशोक सिंघल, कैबिनेट मंत्री सूर्य प्रताप शाही, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाई समेत बड़ी संख्या में देश के सांसद और विधायक महाराज का आशीर्वाद लेने आते रहे हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी दो बार आश्रम आए।

कई बार देवरहा बाबा आश्रम में आ चुके हैं मोहन भागवत

विंध्याचल स्थित देवरहा बाबा आश्रम शक्ति और तपोस्थली के साथ राजनीति का प्रमुख केंद्र है। आश्रम में कांग्रेस से लेकर भाजपा के कई दिग्गज नेता दर्शन के लिए आते हैं। देवरहा बाबा आश्रम में मोहन भागवत इससे पहले भी कई बार आ चुके हैं। ।

सिद्धी योग से 250 वर्ष जीवित रहे बाबा देवरहा

योगी देवरहा बाबा आश्रम मीरजापुर के विंध्यवासिनी धाम से कुछ दूर विंध्य पर्वत पर है। तीन मंजिला आश्रम में 108 कमरे हैं। सिद्धी योग से देवरहा बाबा 250 साल तक जीवित रहे। बाबा देवरहा 19 मई 1990 को समाधि ली। पाण्डुलिपियों के अनुसार बाबा मथुरा में यमुना के किनारे रहा करते थे। उन्होंने कभी अन्न नहीं खाया। बाबा केवल यमुना नदी का पानी, दूध, शहद और श्रीफल के रस का सेवन करते थे। उत्तर प्रदेश सहित बिहार, झारखंड, दिल्ली, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, जम्मू और महाराष्ट्र आदि प्रांतों से बड़ी संख्या में शिष्य आश्रम आते हैं।

प्रथम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री भी देवरहा बाबा आश्रम में टेक चुके हैं मत्था

देवरहा बाबा आश्रम का पूर्वांचल में खासा प्रभाव है। बड़ी हस्तियों ने यहां मत्था टेका है। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पूर्व गृहमंत्री नेता भूटा सिंह, कांग्रेस की सोनिया गांधी, देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद शामिल हैं।

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