• December 29, 2025

इतिहास के पन्नों में 09 अक्टूबरः क्यूबा के क्रांतिकारी चे ग्वेरा को सलाम

 इतिहास के पन्नों में 09 अक्टूबरः क्यूबा के क्रांतिकारी चे ग्वेरा को सलाम

क्यूबा के क्रांतिकारी चे ग्वेरा को सलाम

देश-दुनिया के इतिहास में 09 अक्टूबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख सत्ता विरोधी संघर्ष के प्रतीक क्यूबा के क्रांतिकारी चे ग्वेरा की पुण्य तिथि की याद दिलाती है। 14 जून, 1928 को अर्जेंटीना में चे ग्वेरा का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम अर्नेस्तो चे ग्वेरा था। लोग उन्हें प्यार से चे बुलाते थे। चे ने मेडिसिन की पढ़ाई की। वो चाहते तो डॉक्टर का पेशा अपनाकर आराम से अपनी जिंदगी गुजार सकते थे, लेकिन अपने आसपास भीषण गरीबी देखकर उन्होंने क्रांति का रास्ता चुना।

युवावस्था में ही चे ने मोटरसाइकिल से तकरीबन 10 हजार किलोमीटर की यात्रा की। इस दौरान वे दक्षिण अमेरिका के कई देशों में गए और उन्होंने भीषण गरीबी, मजदूरों की दुर्दशा और पूंजीवादी सत्ता का दमन देखा। अपनी इस यात्रा पर चे ने एक डायरी लिखी। इसे उनकी मौत के बाद ‘द मोटरसाइकिल डायरी’ के नाम से छापा गया। यात्रा से लौटते ही उन्होंने पूंजीवादी सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया।

इस दौरान उनकी मुलाकात फिदेल कास्त्रो से हुई। दोनों ने मिलकर क्यूबा की तानाशाह सरकार को उखाड़ फेंकने की कसम खाई। उन्होंने गुरिल्ला लड़ाकों की फौज बनाई। धीरे-धीरे चे का आंदोलन तेजी पकड़ने लगा और साल 1959 में चे ने क्यूबा में तख्तापलट कर दिया। कुछ सालों में चे और कास्त्रो के बीच रूस और चीन के साथ संबंधों को लेकर मतभेद होने लगे। चे ने क्यूबा छोड़ दिया और दूसरे लैटिन अमेरिकी देशों में क्रांति करने निकल पड़े। कुछ समय वे कांगो में रहे उसके बाद बोलीविया आ गए। इस दौरान सीआईए उनके पीछे पड़ी रही। बोलीविया के जंगलों से चे को गिरफ्तार कर लिया गया और 09 अक्टूबर 1967 को चे को गोली मार दी गई।

यह तारीख मलाला यूसुफजई के लिए खास है। मलाला का जन्म पाकिस्तान में 1999 में हुआ और 2009 में जब उन्होंने गुल मकई के नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखनी शुरू की, तो सुर्खियों में आईं। यह डायरी बाहरी दुनिया के लिए थी। यह डायरी स्वात घाटी में तालिबान के जुल्म बयां करती थीं। मलाला से आतंकवादी नाराज थे। इस वजह से 2012 में 09 अक्टूबर को तालिबान ने मलाला के सिर पर गोली मार दी। हालत इतनी खराब थी कि कोमा में ही उसे इलाज के लिए यूके लेकर जाना पड़ा। 2014 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उस समय वह सिर्फ 17 वर्ष की थीं।

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