मोबाइल की जिद में खो गई बचपन की मुस्कान: 13 साल की मासूम ने क्यों चुना मौत का रास्ता?
25 नवंबर 2025, नागपुर: चंकापुर की तंग गलियों में वो मासूम हँसी, जो ऑनलाइन गेम्स की चकाचौंध में खो गई। 13 साल की एक लड़की, कक्षा आठवीं की होनहार छात्रा, जिसके सपनों में स्मार्टफोन की चमक थी। लेकिन माता-पिता ने मना कर दिया – पढ़ाई बर्बाद न हो जाए। जिद बनी, गुस्सा उफान पर। रविवार की वो खामोशी भरी दोपहर, जब घर अकेला था। दुपट्टा, फंदा और एक अनकही पीड़ा। जब माँ-बहन लौटीं, तो सन्नाटा। पुलिस आई, शव पोस्टमॉर्टम के लिए गया। लेकिन सवाल बाकी: क्या डिजिटल दुनिया ने बच्चों की दुनिया इतनी कैद कर ली है कि एक ‘ना’ मौत का बहाना बन जाए? और ये सिर्फ एक कहानी नहीं, एक चेतावनी है…
कब से शुरू हुई वो जिद जो घर हिला गई
चंकापुर के हनुमान मंदिर के पास बसी झुग्गी बस्ती में रहने वाली 13 वर्षीय लड़की आठवीं कक्षा की छात्रा थी। पड़ोसियों के मुताबिक, वो शांत स्वभाव की थी, लेकिन पिछले कुछ महीनों से मोबाइल फोन के दीवाने हो चुकी थी। ऑनलाइन गेम्स – पब्जी, फ्री फायर – उसके दिन-रात का साथी। परिवार के पुराने फोन पर खेलती, लेकिन नया स्मार्टफोन चाहिए था, बेहतर ग्राफिक्स के लिए। माता-पिता ने साफ मना कर दिया। पिता मजदूर, माँ घर संभालतीं – पढ़ाई पर असर पड़ने का डर। “बेटी, गेम्स छोड़ो, किताबें पढ़ो,” कहते, लेकिन जिद बढ़ती गई। रिश्तेदारों ने बताया, वो रातें जागकर वीडियो देखती, दोस्तों से बातें करती। मनोवैज्ञानिकों का कहना है, ये लत डोपामाइन रिलीज से आती है, जो बच्चों के दिमाग को कंट्रोल कर लेती है। परिवार ने कोशिश की – समय सीमित किया, लेकिन बात बिगड़ती गई। ये जिद सिर्फ फोन की नहीं, आजादी की थी, जो अनियंत्रित हो गई।
दुपट्टे से लटकी मासूम, माँ की चीख गूँजी
रविवार, 23 नवंबर की दोपहर। माँ और बड़ी बहन बाजार गईं, घर में सिर्फ वो अकेली। जिद फिर भड़की, फोन माँगा, मना सुनकर गुस्सा फूटा। कुछ मिनटों में फैसला – घर का दुपट्टा, छत का हुक, और फंदा। जब माँ लौटीं, तो दरवाजा बंद। अंदर का सन्नाटा, फिर वो भयानक दृश्य। चीखें गली में गूँजीं, पड़ोसी दौड़े। तुरंत 112 पर कॉल, पुलिस हिंगना थाने से पहुँची। शव को फंदे से उतारा, पंचनामा भरा। प्रारंभिक जांच में आत्महत्या साफ, कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। लेकिन फोन के मैसेजेस में गेम्स की बातें, दोस्तों से शिकायतें। परिवार सदमे में – “हमने तो प्यार से समझाया, कब इतना गहरा दर्द था?” डॉक्टरों ने कहा, पोस्टमॉर्टम से पुष्टि होगी, लेकिन लक्षण फाँसी के ही। इलाके में सन्नाटा छा गया, बच्चे डरे, माता-पिता सोच में डूबे।
क्यों बढ़ रहे ऐसे मामले, चेतावनी या सबक?
पुलिस ने दुर्घटनावश मौत का केस दर्ज किया, जांच जारी। लेकिन ये अकेली घटना नहीं। महाराष्ट्र में इस महीने छत्रपति संभाजीनगर में 16 वर्षीय लड़के ने फोन न मिलने पर छलांग लगाई। पिछले साल 15 वर्षीय किशोर की मौत, नया फोन न मिला। नवी मुंबई में 18 वर्षीय को iPhone न मिला। विशेषज्ञ चेताते हैं – डिजिटल लत डिप्रेशन लाती है, बच्चे भावनाएँ छिपाते हैं। अभिभावकों को सलाह: संवाद बढ़ाओ, काउंसलिंग लो, स्क्रीन टाइम लिमिट करो। एनजीओ चल रहे जागरूकता कैंप, स्कूलों में सेशन। लेकिन सवाल वही: क्या हम देर कर रहे? ये मौत सिर्फ एक परिवार की नहीं, पूरे समाज की हानि। समय है सोचने का – तकनीक दोस्त बने, दुश्मन न।